किसी जंगल में अपने दो छोटे बच्चों के साथ टिक्की नाम की एक लोमड़ी रहती थी । उसी जंगल में उसका एक मित्र भी था-मिक्की भालू । टिक्की जितनी अधिक चालाक थी, मिक्की उतना ही मूर्ख ।
वे लोग लगभग रोज ही मिलते थे । पर एक बार ऐसा हुआ
कि कई दिन बीत गए और मिक्की टिक्की से मिला ही नहीं । सो उसका हालचाल जानने के
लिए टिक्की उसके घर पहुँच गई । वहाँ उसने मिक्की को ढेर सारा शहद एक ड्रम में
रखते हुए पाया । इतना सारा शहद देख टिक्की का मन ललचा गया । असली बात पूछना भूल
वह मिक्की से चिरौरी करने लगी, “अरे मित्र, तुम्हारे पास तो खूब सारा शहद है, इतने शहद का तुम
करोगे क्या ? ऐसा करो, इसमे से आधा
मुझे दे दो ।”
पर ये क्या? मिक्की ने तो
साफ़ इंकार कर दिया, “नहीं टिक्की, ये
शहद मैं तुम्हे नहीं दे सकता। कई दिनो की लगातार मेहनत के बाद तो मैं इस जाड़े के
लिए शहद इकट्ठा कर पाया हूँ । तभी तो इतने दिनो से तुमसे भी मिलने नहीं आ पाया ।
अगर मैं तुम्हे शहद दे दूँगा, तो जाड़े में मैं क्या खाऊँगा ?”
टिक्की को बुरा तो बहुत लगा; पर उसने जाहिर नहीं किया । उस
समय तो वह इधर-उधर की बातें करके वापस घर चली आई; पर उसका पूरा दिमाग इसी उधेड़बुन
में लगा था कि किस तरह वह शहद का ड्रम हथिया सकती है। वह चाहती थी कि उसे मेहनत भी
न करनी पड़े और इस जाड़े में उसे भूखा भी न रहना पड़े ।
काफ़ी सोचने के बाद आखिर टिक्की को एक तरकीब सूझ
ही गई । दूसरे दिन वह मिक्की के घर रोते हुए पहुँची और कारण पूछने पर बोली, “भाई मिक्की, तुम तो जानते ही हो कि नदी के उस तरफ
वाले जंगल में मेरी बहन रहती है । आज सवेरे ही मेरे पास ख़बर आई है कि उसके पति की
मृत्यु हो गई है । मेरा इस वक़्त वहाँ जाना बहुत जरूरी है, पर
समझ नहीं आ रहा कि अपने बच्चों को किसके सहारे छोड़ कर जाऊँ । मुझे बस एक तुम्हारा
ही आसरा है । अगर तुम कुछ दिनों के लिए मेरे घर पर रुककर उनकी देखभाल कर सको,
तो बहुत मेहरबानी होगी । मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूँगी ।”
इतना कह कर टिक्की फिर फूट-फूटकर रो पड़ी ।
टिक्की को इस तरह रोते देख कर मिक्की को उसपर
बड़ी दया आई। वह उसके घर जाकर उसके बच्चों की देखभाल करने को राजी हो गया। टिक्की
अपनी योजना सफ़ल होते देख मन-ही-मन बड़ी खुश हुई और मिक्की को शीघ्र अपने घर
पहुँचने को कह, उसे धन्यवाद देती वहाँ से चली गई।
दिखाने को तो टिक्की दूसरे जंगल की ओर निकल गई; पर असल में वह थोड़ी दूर जाकर
मिक्की की नज़र बचाकर घने पेड़ों के पीछे इस तरह से छुप गई कि वह तो मिक्की को देख
सके; पर मिक्की उसे न देख पाए। कुछ देर ही बाद उसने मिक्की
को अपने (टिक्की के) घर की ओर जाते देखा। कुछ देर और वहीं छुपी रहने के बाद वह
सीधे मिक्की के घर पहुँच गई। वह निश्चिंत थी कि अपने वायदे का पक्का मिक्की उसके
वापस पहुँचने तक वहीं रहने वाला था। सो पूरे दिन आराम करने के बाद टिक्की ने रात
होने पर मिक्की के घर से शहद का बर्तन निकाला और उसे दूर एक सुरक्षित स्थान पर
छिपा दिया, जिसे उसने इस मकसद के लिए पहले से ही देख रखा
था। उसके बाद वह निश्चिंत होकर वापस आकर सो गई।
दूसरे दिन वह सुबह होते ही अपने घर वापस पहुँच गई।
उसे इतनी जल्दी वापस आया देखकर मिक्की हैरान रह गया, “अरे
टिक्की, इतनी जल्दी क्यों लौट आई? सब
ठीक है न?”
“अरे कहाँ, मुझसे तो
अपनी बेचारी बहन का दुःख देखा ही नहीं गया। फिर यहाँ की भी चिन्ता थी, इसीलिए मैं जल्दी ही लौट आई।” टिक्की ने बनावटी दुःख से कहा तो मिक्की
थोड़ी देर उसके पास रुक उसे सांत्वना देकर वापस आ गया।
टिक्की को इस तरह रोते देख मिक्की घबरा गया, “रो मत, मेरा यह मतलब नहीं था। आखिर तुम्ही बताओ मेरा सारा शहद कहाँ जा सकता है?”
“अरे और कहाँ...?” अपने
आँसू पोछते हुए टिक्की ने पासा फेंका, “तुम इतने तो भुलक्कड़
हो, हो सकता है तुम ही किसी दिन शहद खाकर भूल गए हो।”
मिक्की को अब भी यक़ीन नहीं हो रहा था। ऐसा कैसे
हो सकता है? अगर उसने शहद खाया होता, तो उसे जरूर याद होता। इसी लिए वह अब भी राजा से शिकायत करने को तैयार
था। यह देख कर टिक्की मन-ही-मन घबरा गई। सो उसे समझाते हुए बोली, “ऐसा करो, एक बार मेरी बात मान लो। इस जंगल में एक
ऐसा पेड़ है, जिसके नीचे सोने से तुमने जो खाया होता है,
उसका पता चल जाता है। आज रात को एक बार उस पेड़ के नीचे सोकर देखो,
फिर कल सुबह चले जाना राजा के पास। मैं खुद तुम्हारे साथ चलूँगी
फरियाद लेकर।”
टिक्की की बात सुनकर मिक्की सोच में पड़ गया। ठीक
है,
इसमे हर्ज़ ही क्या है। आज नहीं तो कल शिकायत कर लेगा, सो वह टिक्की की बात मान गया।
रात को मिक्की टिक्की के बताए पेड़ के नीचे जाकर
सो गया। मिक्की तो गहरी नींद सो गया; पर उसे पता नहीं था कि टिक्की भी
वहीं छुपी उसे देख रही है। उसे यूँ सोता देख टिक्की ने अपनी छुपाई जगह से थोड़ा
शहद लाकर उसके मुँह पर धीरे से मल दिया और वापस अपने घर जाकर सो गई।
सुबह जब मिक्की सोकर उठा तो अपने मुँह पर शहद
लगा देख बहुत शर्मिन्दा हुआ। वह सीधे टिक्की के घर पहुँचा और उसपर शक करने के लिए
उससे माफ़ी भी माँगी, साथ ही उसे धन्यवाद भी दिया कि
उसने राजा के पास झूठी शिकायत पहुँचाने से उसे बचा लिया।
मिक्की के जाने के बाद टिक्की कुछ देर तो उसकी
मूर्खता पर हँसती रही, फिर अपनी छुपाई जगह से सारा
शहद घर ले आई। एक तरफ़ मिक्की फिर से शहद जुटाने की मेहनत करता रहा, दूसरी तरफ़ धूर्त टिक्की मजे से शहद की दावत उड़ाती रही।
सच है, धूर्त मित्र
का यूँ विश्वास करने वाले मूर्ख का यही हाल होता है।
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1 comment:
वाह्ह्ह... अति सुखद... कहानी की गतिशीलता ही बाँध लेती है पाठकों को.... बधाई 🌹🙏
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