एक दिन वह गाँव के सबसे धनी आदमी के घर पहुँचा
और बोला - शहर से कुछ मेहमान आने वाले हैं। खाना बनाने के लिए बर्तन कम पड़ रहे
हैं। थोड़े से बर्तन उधार दे दीजिए, शाम को लौटा
दूँगा।
अब भला बर्तनों के लिए कौन मना करता है।
उन्होंने गिनकर ढेर सारे बर्तन दे दिए।
शाम को जब बर्तन वापिस आए, तो धनी आदमी ने देखा कि दो-एक कटोरी और कुछ चम्मच ज्यादा हैं। पूछने पर
शहरी ने लापरवाही से बताया कि बर्तनों ने बच्चे दे दिए होंगे।
धनी आदमी हैरान - ये तो अनहोनी बात है कि बर्तन
भी बच्चे देते हैं। अब वह भला घर आए अतिरिक्त बर्तनों को कैसे ठुकराता।
अब तो ये अक्सर होने लगा। बर्तन माँगे जाते और
शाम को कुछ अतिरिक्त बर्तन भी मिल जाते। धनी व्यक्ति खुश।
अब होने ये लगा कि बहुत ज्यादा बर्तन माँगे जाने
लगे और बच्चों के रूप में बर्तन भी बड़े और ज्यादा आने लगे।
एक दिन हुआ ये कि शहरी आदमी ढेर सारे बर्तन ले
गया और कई दिन तक वापिस ही नहीं किए। सेठ घबराया और खुद चलकर शहरी के घर पहुँचा और
बर्तनों के बारे में पूछा।
शहरी आदमी लापरवाही से बोला - वो ऐसा हुआ कि
बीती रात सारे बर्तन मर गए।
सेठ हैरान - भला बर्तन कैसे मर सकते हैं।
शहरी बोला - ठीक उसी तरह से जिस तरह से बर्तनों
के बच्चे हो रहे थे।
डिस्क्लेमर - इस बोध कथा का उस देश से कुछ लेना
देना नहीं है, जहाँ पहले कुछ चतुर लोग बैंकों से पैसा
उठाकर वक्त पर लौटाते भी रहते हैं और बैंक कर्मियों को कीमती उपहार दे कर खुश रखते
हैं।
फिर एक दिन आता है कि बैंकों से चतुर लोगों के
पास गया सारा धन खुदकुशी कर लेता है। सुसाइड नोट भी नहीं मिलता।
कर लो जो करना है।
सम्पर्कः मो. नं. 9930991424
email- kathaakar@gmail.com
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