आमतौर पर वर्षगाँठ या सालगिरह के मौके पर कोई न
कोई प्रण लिया जाता है या कोई कसम खाई जाती है। अक्सर तो कोई लत या बुरी आदत छोडऩे
का ही प्रण लिया जाता है। मैंने अपने कई दोस्तों को यह कसम खाते हुए देखा है कि आज
के बाद वे सिगरेट छोड़ देंगे, शराब से तौबा कर लेंगे,
चॉकलेट को हाथ न लगाएँगे, गाड़ी तेज़ नहीं
चलाएँगे, वक्त पर दफ्तर पहुँचेंगे वगैरह-वगैरह। यह फेहरिस्त
बहुत लंबी हो सकती है, लेकिन अमूमन ये कसमें लम्बे समय तक
निभाई नहीं जातीं। शायद ये कसमें लम्बे समय तक निभाए जाने के लिए होती भी नहीं
हैं।
पिछले शनिवार को मेरा जन्मदिन था। मैंने हर बार
की ही तरह अपना जन्मदिन मनाया। मैंने अपने रोजमर्रा के कामकाज से छुट्टी ली और उन
बातों पर विचार किया, जो मेरे लिए महत्त्वपूर्ण हो
सकती हैं। इनमें से कोई भी बात ऐसी न थी, जिससे किसी को बहुत
फर्क पड़ता या जिससे दुनिया इधर-उधर हो जाती। मैं अपना जन्मदिन मनाने के लिए एक
ऐसी जगह पर चला गया, जिसे मैं अपनी ‘शरणस्थली’ कहता हूँ। मैं
कभी-कभी वहाँ कुछ दिनों के लिए चला जाता हूँ। यह एक दिन है, जिसे
मैं अपने लिए बचाकर रखता हूँ। अपने जन्मदिन पर मैं किन्हीं नकारात्मक बातों पर
विचार नहीं करता, इसलिए कोई प्रण भी नहीं लेता। इसके उलट मैं
तो कुछ नई आदतें डाल लेने की कोशिश करता हूँ। मैं अपने जीवन को अधिक समृद्ध और
संपूर्ण बनाना चाहता हूँ। मैं कुछ नया सीखना चाहता हूँ।
हमें ‘हाँ’ को अपने जन्मदिन का प्रण बनाना चाहिए, ‘ना’ को नहीं। मैं स्वीकारता हूँ कि दुनिया बदल गई है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि लोगों ने जो कुछ किया, वह
सब गलत था। फिर चाहे वे ऑड्रे हापबर्न हों, जिन्होंने
ब्रेकफास्ट एट टिफनी में सिगरेट पीकर स्मोकिंग को एक चलन बना दिया था या फिर चाहे
डिलन टॉमस हों, जो दिन-रात शराबनोशी करते थे, लेकिन उन्होंने अपने समय की सबसे अच्छी कविता लिखी। यदि आपको मेरी बात पर
यकीन नहीं होता , तो रिचर्ड बर्टन, जो
सर्वकालिक महान अभिनेताओं में से एक हैं,
डिलन टॉमस की कविताओं का पाठ करते सुनिए। इसे ही मैं सही
मायनों में एक बदलाव कहता हूँ।
हमें न्यायाधीश बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
हम ड्रग्स लेने वाले जिम मॉरिसन के लिए कोई फैसला क्यों लें क्या? हम जिम मॉरिसन के गीतों और उनके संगीत को सुनकर उसके बारे में विचार नहीं
कर सकते? अल्डुअस हक्सले ने कहा था कि मेस्कलिन के बिना
दिमाग की खिड़कियाँ और विचारों के दरवाजे कभी नहीं खुल सकते। उन्होंने नोबेल
पुरस्कार जीता। एलेन गिंसबर्ग ने अपनी श्रेष्ठ कविताएँ गंगा नदी के किनारे श्मशान
पर सिगरेट फूँकते हुए लिखीं। कैनेडी ने इतनी अच्छी तरह से अपने प्रशासनिक
दायित्वों का निर्वाह किया था। तब क्या हमें उनके निजी जीवन के अविवेकपूर्ण
कार्यों के आधार पर उनके बारे में कोई निर्णय लेना चाहिए?
हमें धूम्रपान, शराबनोशी
वगैरह के बारे में फिक्र करने से ज्यादा इस बारे में सोचना चाहिए कि हम भारत को एक
श्रेष्ठ देश बनाने में क्या योगदान दे सकते हैं। हम कभी यह प्रण क्यों नहीं लेते
कि हम एक साल तक किसी को रिश्वत नहीं देंगे? यदि हम केवल
ट्रैफिक के नियमों का ही ठीक तरह से पालन करें तो इससे हमारे जीवन में बदलाव आ
सकता है।
हम यह प्रण क्यों नहीं ले सकते कि हम वर्ष भर
ऐसे शब्दों का उपयोग नहीं करेंगे, जो बीच में लकीरें खींचते हों? हम आतंकवाद की आलोचना
करेंगे, मुस्लिमों की नहीं। हम किसी के राजकाज की आलोचना
करेंगे, दलितों की नहीं। हम दूसरे समुदायों के लोगों के बारे
में अभद्र बातें नहीं करेंगे। हम गरीबों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे, जैसे कि उनका कोई अस्तित्व ही न हो। हम यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश
करेंगे।
छोटी-छोटी चीजें भी मददगार साबित हो सकती हैं
जैसे पुराने कपड़े, रजाई-कंबल, किताबें, पत्रिकाएँ। हर गरीब व्यक्ति अनपढ़-गँवार
नहीं होता। हम अपने घिसे-पिटे विचारों को बदलने का प्रण क्यों नहीं ले सकते?
रेस्तरां में जो खाना आपने अतिरिक्त बुलवा लिया था, उसे पैक करवाएँ और सड़क पर खेलने वाले बच्चों को खिला दें। आवारा कुत्तों
को बिस्किट खिलाएँ। मैं सालों से यह सब करता आ रहा हूँ। अपने घर की खिड़की पर
चिडिय़ों के लिए दाना-पानी रखें। अपने पड़ोस में मौजूद हर पेड़ को बचाने के लिए
संघर्ष करें। ये पेड़ ही हमारी सुरक्षा करते हैं, वह बिल्डर
नहीं, जो इन पेड़ों को काट डालना चाहता है और शहर की हर खुली
जमीन पर कब्जा लेना चाहता है।
बहुत से लोग हैं, जो
ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचाते हैं। सार्वजनिक संपत्तियों में तोड़-फोड़
करते हैं। कुछ ही दिनों में नई ट्रेन की सीटें उखाड़ दी जाती हैं, पंखें चोरी चले जाते हैं। सुर्खियों में आने के लिए बसें जलाने या पटरियों
की फिश प्लेट उखाडऩे से भी बेहतर कई रास्ते होते हैं। हम यह प्रण क्यों नहीं ले
सकते कि हम सीढिय़ों पर या लिफ्ट में पान चबाकर नहीं थूकेंगे? या भीड़भरी ट्रेनों या बसों में महिलाओं के साथ छेडख़ानी नहीं होने देंगे?
नए साल या वर्षगाँठ पर ये प्रण लेना कहीं ज्यादा
सरल और दिलचस्प साबित हो सकते हैं, बनिस्बत इससे
कि हम सिगरेट या शराब से तौबा करने की कसमें खाएँ और उन्हें निभा न सकें। दूसरों
को दोष देने के बजाय जिंदगी में खुद ही कुछ नए कदम उठाएँ और नई चीजें करें। कसमें
खाने की तुलना में यह कहीं ज्यादा सरल और मजेदार है। (हिन्दी ज़ेन से)
2 comments:
जीवन मे सकारात्मक चिंतन के महत्व को रेखांकित करता सुंदर आलेख।बधाई प्रीतीश नन्दी जी।
जीवनोपयोगी लेख।
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