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Mar 10, 2017

पहने पीत लिबास

 पहने पीत लिबास 
                      - महेश राठौर मलय
1 टूट न जाए कीमती, मर्यादा का बंध।
       हवा बसंती बह रही, शीतल, गंद, सुगंध।।
2 मन का आँगन सुन रहा, वासंती पदचाप।
       जाने यह क्या हो रहा, भीतर आपने- आप।।
3 दहकाती है देह को, कोकिल द्रुम पर कूक
       इस वैरागी चित्त से, हो जाए ना चूक।।
4 सरसों सरसे खेत में, पहने पीत लिबास।
       चन्द्रमुखी के होंठ पर, सूर्यमुखी-सा हास।।
5 आक, ढाक, सेमल खिले, खिले कुमुद, अरविंद।
       प्रीत जताते लूटते, मधु मकरंद मिलिंद।।
6 जूही, चंपा, केतकी ,और गुलाब, मदार।
      जन- मन- रंजन कर रहे, कुदरत के किरदार।।
7 हरित, पीत, लाल फलित, लदा मेड़ पर बेर।
       भरकर कोष मिठास का, मानों बना कुबेर।।
10 सजा डोकरा चुलबुला, जुल्फें  रंग ख़िजाब।।
      कहाँ-कहाँ अब तक मरा, इसका नहीं हिसाब।।

सम्पर्क: प्रयोगशाला शिक्षक, शासकीय एम. एम. आर पी जी महाविद्यालय, चाँपा (छ.ग.)

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