पहने पीत लिबास
- महेश राठौर ‘मलय’
1 टूट न जाए कीमती, मर्यादा का बंध।
हवा
बसंती बह रही, शीतल, गंद, सुगंध।।
2 मन का आँगन सुन रहा, वासंती पदचाप।
जाने
यह क्या हो रहा, भीतर
आपने- आप।।
3 दहकाती है देह को, कोकिल द्रुम पर कूक
इस
वैरागी चित्त से, हो
जाए ना चूक।।
4 सरसों सरसे खेत में, पहने पीत लिबास।
चन्द्रमुखी के होंठ पर, सूर्यमुखी-सा हास।।
5 आक, ढाक, सेमल खिले, खिले कुमुद, अरविंद।
प्रीत
जताते लूटते, मधु
मकरंद मिलिंद।।
6 जूही, चंपा, केतकी ,और गुलाब, मदार।
जन-
मन- रंजन कर रहे, कुदरत
के किरदार।।
7 हरित, पीत, लाल फलित, लदा मेड़ पर बेर।
भरकर
कोष मिठास का, मानों
बना कुबेर।।
10 सजा डोकरा चुलबुला, जुल्फें
रंग ख़िजाब।।
कहाँ-कहाँ अब तक मरा, इसका नहीं हिसाब।।
सम्पर्क: प्रयोगशाला शिक्षक, शासकीय एम. एम. आर पी जी महाविद्यालय, चाँपा (छ.ग.)
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