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Sep 27, 2012

पीड़ा अब न सही जाती

पीड़ा अब न सही जाती
- डॉ. गीता गुप्त

अब भी हिन्दी दिवस मनाते हो
लाज तुमको तनिक नहीं आती?
राज करती है अब भी अंगरेजी
तुमको स्वीधीनता नहीं भाती?

वक्त यह आत्मनिरीक्षण का है
राष्ट्रभाषा के संरक्षण का है
तुम मनाते हो समारोह मगर
सोचो, हिन्दी है क्यों सिमटी जाती?

अब भी वर्चस्व क्यों विदेशी का?
क्यों न अब मान है स्वदेशी का?
क्यों न अपनाते हम हिन्दी भाषा?
अपनी हिन्दी किसे नहीं आती?

आत्मसम्मान खो रहे क्यों हम?
अब गुलामी को ढो रहे क्यों हम?
अपनी मां को सता रहे क्यों हम?
क्यों है अंगरेजियत नहीं जाती?

सिर्फ नारे न तुम लगाओ अब
झूठी रस्में न तुम निभाओ अब
देखो आंसू बहा रही है मां
उसकी पीड़ा न अब सही जाती।

न भरो देश प्रेम का दम तुम
कोई पाखंड मत रचो अब तुम
लानतें भेजता है हिन्दी दिवस
हिन्दी अब भी परायी कही जाती।

कर सको आज तो संकल्प करो
राष्ट्रभाषा को ही अपनाएंगे
मान देंगे न उसे बस एक दिन
नित्य हिन्दी दिवस मनाएंगे।

संपर्क-  ई-182/2, प्रोफेसर्स कॉलोनी, भोपाल 462002 (म.प्र.)
        मो. 09424439324

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