1. हार नहीं मानती है चिड़िया
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
तिनका तिनका चुनकर
नीड़ बनाती है चिड़िया
घोर एकांत में
अपनी चहचाहट से
किसी के होने का
आभास कराती
द्वार खुलने के इंतज़ार में
सुबह से
खिड़की के पास वैठकर
मधुरता बिखेरती है
पंखे की हवा से
उड़ जाते सब तिनके
बैठकर पल भर गुमसुम
निहारती है चिड़िया ।
दूसरे ही पल फुर्र से उड़ जाती
फिर कहीं से
तिनके उठा लाती है चिड़िया
एक भी पल
नहीं
गवाँती है चिड़िया
वार-बार
हारकर भी
हार नहीं
पाती है
नीड़ बनाती है चिड़िया !
2. बीते पल
मन की मुँडेर पर बैठ गया
जो पंछी चुपके से आकर
बैठे रहने दो बस यूँ ही
पछताओगे उड़े उड़ाकर।
यह वह
पंछी नहीं बाग़ का
डाल-डाल जो गीत सुनाए,
यह वह
पंछी नहीं द्वार का
दुत्कारो
वापस आ जाए।
दर्पण में जब रूप निहारो
छाया आँखों में उतरेगी
बाँधो
काजल -रेख सजाकर ।
बीते पल हैं रेत नदी का
बन्द मुट्ठी से बिखर गए गए हैं
किए आचमन खारे आँसू
सुधियों के रंग निखर गए हैं ।
सात
जनम की पूँजी हमको
बिना
तुम्हारे धूल पाँव की
बात
सही यह आखर-आखर।
जो भी पाती मिली तुम्हारी
छाती से हम रहे लगाए,
शायद जो हो मन की धड़कन
इस मन में भी आज समाए ।
छुए पोर से हमने सारे
गीले वे सन्देश तुम्हारे
जो हमको भी रहे रुलाकर।
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