सात आगर सात कोरी
- डी.पी. देशमुख
रानी
दुर्गावती, लक्ष्मीबाई और रजिया सुल्तान भारत की वे वीरांगनाएँ
हैं, जिनके शौर्य और साहस की गाथा विश्व इतिहास में अमर है। छत्तीसगढ़ में
बहादुर कलारिन की गाथा-शौर्य और साहस का पाठ पढ़ाती है। आज विभिन्न मंचों के
माध्यम से इस वीरांगना के साहस और त्याग की अभिव्यक्ति भी जनमानस में होने लगी है।
नारी जाति पर हुए अत्याचार के लिए इस कलार जाति की महिला ने जिस साहस और त्याग का
परिचय दिया था। उसका लेसमात्र भी आज की महिलाओं में होता तो पुरुषों में नारी के
प्रति सम्मान की भावना अधिक होती। प्रस्तुत गाथा दुर्ग जिले के गुरूर से बाहर
कि.मी. दूर पश्चिम में स्थित सोरर गाँव की है, जिसका प्राचीन नाम सरहगढ़ था। इसका एक
नाम बुजुर्गो के अनुसार सोरढ़ भी है। यहाँ प्राप्त शिलालेख और प्राचीन मंदिर तथा
अन्य अवशेष बरबस कलचुरी शासन की याद ताजा करते हैं। उपलब्ध सामग्रियों से ज्ञात
होता है कि बहादुर कलारिन की स्मृतियाँ सोरर सरहरगढ़ के साथ जुड़ी हुई हैं।

घने
जंगल के बीचों-बीच एक कुटिया थी, जहाँ कलारिन जाति की अति सुन्दर युवती
अपनी वृद्ध माँ के साथ निवास करती थी। युवती प्रतिदिन मचौली में बैठकर जीवकोपार्जन
के लिए शराब बेचती थी। उन दोनों के भरण-पोषण का वही एकमात्र साधन था। गाँव के बाहर
खुले मैदान में स्थित पत्थरों की नक्काशीदार विशाल मचौली अतीत के साक्ष्य रुप में
आज भी विद्यमान है। कुटिया पहुँचकर राजा ने अपना परिचय दिया और अन्य साथियों से
बिछुड़ जाने की आप बीती सुनाई। रात्रि भर विश्राम के लिए उसने युवती से जगह माँगी।
राजा को आश्रय मिल गया। राजा युवती के रूप सौन्दर्य को देख मंत्रमुग्ध हो गया।
राजा अपना होशोहवाश खो बैठा और युवती को पाने की लालसा में उसने उसकी वृद्ध माँ के
समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। गंधर्व विवाह के साथ राजा व युवती दाम्पत्य सूत्र
में बँध गये। एक सुबह राजा को अपने राज्य एवं परिवार की सुधि आई। राजपाट की
मुश्किलें बताकर तथा पुन: वापस आने का बहाना कर राजा वहाँ से चला गया और फिर वह
कभी सरहरगढ़ नहीं आया।

छछानछाडू
ने सुनियोजित ढंग से अपनी फौज के साथ छत्तीसगढ़ एवं अन्य राज्यों के 147
राजकुमारियों का अपहरण किया। सरहरगढ़ में उन्हें बन्दी बनाकर रखा गया। उन्हें
कू्रर यातनाएँ दी गई। उसने 147 ओखलियाँ बनाई और राजकुमारियों को धान कूटने की
आज्ञा दी। गाँव में आज भी सात आगर सात कोरी अर्थात् 147 ओखलियों के अवशेष हैं। इस
इलाके से सात आगर सात कोरी लोकोक्ति भी बहुत प्रचलित है। छछानछाडू के आदेश पर राजकुमारियाँ महीनों-महीनों तक अनाज
कूटती थीं। राजकुमारियों पर छछानछाडू का कठोर जुल्म माँ को अच्छा नहीं लगा। उसकी
नजरों में यह नारी जाति का अपमान था। निरपराध राजकुमारियों को जुल्म से मुक्त
कराने का उसने भरसक प्रयास किया, लेकिन छछानछाडू ने उसकी एक न सुनी और
यातनाओं का क्रम चलता ही रहा। अंतत: बहादुर कलारिन ने अपने ही बेटे के लिए ऐसा
कार्य किया जो सामान्यत: एक माँ के लिए असंभव था।

नारी
अत्याचार के विरुद्ध किसी महिला द्वारा अपने ही बेटे के बलिदान की यह गाथा अपने आप
में बेजोड़ है। जनमानस के बीच कलारिन के इस साहसिक कार्य ने उसे बहादुर कलारिन बना
दिया। जिसकी गाथा सम्पूर्ण इलाके में मुँह-जबानी आज भी सुनने को मिलती है। कटार
लिये वीरांगना की मूर्ति ग्राम सोरर के प्रांगण में आज भी स्थित है।
जिस
बावली में छछानछाडू की मृत्यु हुई थी कलांतर में वहाँ एक विचित्र वृक्ष उगा। कहते
हैं उस वृक्ष में प्रतिदिन सात रंग के फूल खिलते थे। आज से तीन-चार दशक पूर्व इस
सत्य को वहाँ के लोगों ने देखा भी है। छछानछाडू ने परिस्थितिवश अपहृत राजकुमारियों
को बदनियती का शिकार बनाया, उन्हें शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ दीं।
इसे नैसर्गिक नियति की परिणति मानकर आसपास के ग्रामवासी आज भी माँ-बेटे की
स्मृतियों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि छछानछाडू की पुण्य
स्मृति को आदर देते हुए गाँव सोरर में आज भी धूर का त्योहार प्रतिबंधित है।
4 comments:
बहुत ही बेहतरीन ऐतिहासिक जानकारी दी है आपने सर जी
जय मां बहादुर कलारिन
बहुत ही सुन्दर एवं प्रेरणादायक एतिहासिक जानकारी मिला बहुत बहुत बधाई।
Mujhe aaj hi puri jankari mili mai bahut abhibhut hu ki pass mai ranker jankari nahi le saka mai gram arjuna say hu mera education sorar say hi hua hai aur mai shree jivan lal bhardwaj ji ka chota pura hu
सात आगर सात कोरी (7*20+7=147) लोकोक्ति एवं जीवट स्त्री क्लारिन की शानदार कथा. इन ऐतिहासिक और सशक्त चरित्रों का हबीब साहब के नाटकों के साथ अटूट संबंध था. आज यह लुप्तप्राय हो गया है... शानदार पोस्ट के लिए साधुवाद.
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