उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Apr 1, 2023

कविताः प्रेम की अपूर्णता

  -  सांत्वना श्रीकान्त

स्त्री ने अपने पाँव के नाखून को 

ध्यान से देखा

सौन्दर्य की परिभाषा से

स्वआकलन किया

रोटी की गोलाई और ब्रह्माड के आकार में, 

अंतर खोजा

आँखों के नमक और समुद्र के 

खारेपन तक की  थाह ली

पाया कि

प्रकृति का समर्पण 

और वह स्त्री पूरक थे ।

पूर्णता की समस्त परीक्षा में 

अव्वल आने पर ही

चुना गया था उसे । 

देर तक सोचती रही।।

प्रेम हमेशा अपूर्ण ही क्यों रहा 

उसके लिए

कभी ईश्वर के गूँगेंपन को कोसती 

कभी प्रेमी के  स्वभाव को 

दरअसल वह प्रेम की अपूर्णता 

और अपने अभागेपन में 

अपूर्ण होती गई।

No comments: