उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Apr 1, 2023

श्रद्धांजलिः वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक का चले जाना

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक का हृदय गति रुक जाने से 14 मार्च को सुबह निधन हो गया। उनकी उम्र 79 वर्ष थी। डॉ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ानेवाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्षित करने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डॉ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को इंदौर में हुआ। वे रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार थे । उन्होंने अपनी पीएच. डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया युनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।

वैदिकजी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। उनका निष्कासन हुआ। वह राष्ट्रीय मुद्दा बना। 1965-67 में संसद हिल गई। डॉ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपालानी, इंदिरा गांधी, गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरूआ, भागवत झा आजाद, प्रकाशवीर शास्त्री, किशन पटनायक, डॉ. जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद जैसे लोगों ने वैदिकजी का डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से वैदिकजी ने विजय प्राप्त की, नया इतिहास रचा। पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले।

वैदिकजी ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ 13 वर्ष की आयु में की थी। हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और भाषायी आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएँ की ! 

अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन! राष्ट्रीय राजनीति और भारतीय विदेश नीति के क्षेत्र में सक्रिय भूमिका ! कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार। लगभग 80 देशों  की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएँ। 1999 में संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व! इसी वर्ष विस्कोन्सिन युनिवर्सिटी द्वारा आयोजित दक्षिण एशियाई विश्व-सम्मेलन का उद्घाटन! छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार। भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान। अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व। आकाशवाणी और विभिन्न टीवी चैनलों पर 1962 से अगणित कार्यक्रम। 

पुस्तकें: अफगानिस्तान में सोवियत- अमेरिकी प्रतिस्पर्धा, अंग्रेजी हटाओ: क्यों और कैसे?, हिन्दी पत्रकारिता- विविध आयाम, भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत, एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका: इंडियाज ऑप्शन्स, हिन्दी का संपूर्ण समाचार- पत्र कैसा हो?, वर्तमान भारत, अफगानिस्तान: कल, आज और कल, महाशक्ति भारत, भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान, कुछ मित्र और कुछ महापुरुष, मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय, हिंदी कैसे बने विश्वभाषा, स्वभाषा लाओ: अंग्रेजी हटाओ, आदि। अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित! 

पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख और भाषण! वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे हैं। फिलहाल दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते हैं।

प्रस्तुत है पाँच मार्च 2023 को  लिखा गया उनका आलेख- ‘मिलावटखोरों की सजा ऐसी हो’-

मिलावटखोरों की सजा ऐसी हो 
- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हमारी दो दवा-निर्माता कंपनियों के कारनामों से सारी दुनिया में भारत की बदनामी हो रही है। इस बदनामी से भी ज्यादा दर्दनाक बात यह है कि इन दोनों कंपनियों- मेडेन फार्मा और मेरियन बायोटेक- की दवाइयों से गांबिया में 60 बच्चों और उजबेकिस्तान में 16 बच्चों की मौत हो गई। जब पहले-पहल ये खबरें मैंने अखबारों में देखी तो मैं दंग रह गया। मुझे लगा कि भारत से अरबों रुप्ये की दवाइयों का जो निर्यात हर साल होता है, उस पर इन घटनाओं का काफी बुरा असर पड़ेगा। भारत की प्रामाणिक दवाइयों पर भी विदेशियों के मन में संदेह पैदा हो जाएगा। हमारी दवाएँ अमेरिका और यूरोप की तुलना में बहुत सस्ती होती हैं। मुझे यह भी लगा कि इस मामले ने यदि तूल पकड़ लिया तो एशिया और अफ्रीका के जिन गरीब मरीजों की सेवा इन दवाइयों से होती हैं, अब वे वंचित हो जाएँगे। हो सकता है कि गांबिया और उजबेकिस्तान के उन बच्चों की मौत का कारण कुछ और रहा हो। लगभग दो माह पहले जब ये खबरें आईं तो यह भी अपुष्ट सूत्रों ने कहा कि इन दवाइयों के नमूनों की जांच यहीं की गई है और वे ठीक पाई गई हैं लेकिन इन देशों के जाँच कर्ताओं ने अब जांच पूरी होने पर कहा है कि इन दवाइयों में कुछ नकली और हानिकर तरलों को मिला देने के कारण ही ये जानलेवा बन गई थीं। इस निष्कर्ष की पुष्टि अब एक अमेरिका की एक जांच कंपनी ने भी कर दी है। भारत सरकार ने इन कंपनियों के खिलाफ पुलिस में रपट लिखवा दी है और उनके कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार भी कर लिया है लेकिन दोनों कंपनियों के मालिक और वरिष्ठ प्रबंधक फरार हैं। यदि उनको विश्वास है कि उनकी दवाइयों में कोई मिलावट नहीं की गई है तो उन्हें डरने की जरूरत क्या है? यह भी हो सकता है कि मालिकों और मैनेजरों की जानकारी के बिना भी मिलावट की गई होगी। यदि ऐसा है तो उन कर्मचारियों को कठोरतम सजा दी जानी चाहिए और यदि मालिक और प्रबंधक भी इस जानलेवा मिलावटखोरी के लिए जिम्मेदार हैं तो उनकी सजा तो और भी सख्त होनी चाहिए। इन लोगों पर दस-बीस लाख या करोड़ रुपये. का जुर्माना बेमतलब होगा। इन सबको 76 बच्चों की सामूहिक हत्या का जिम्मेदार मानकर इनकी सजा भी इतनी भयंकर होनी चाहिए कि भावी मिलावटखोरों की नींद हराम हो जाए। यह सजा जल्दी से जल्दी दी जानी चाहिए ताकि आम लोगों को पता चले कि किस कुकर्म के लिए उन्हें दंडित किया गया है। उन्हें जेल के बंद दरवाजों के पीछे नहीं, चौराहों पर लटकाया जाना चाहिए और हर टीवी चैनल पर उसका जीवंत प्रसारण किया जाना चाहिए। उसके बाद आप देखेंगे कि देश में किसी भी तरह के मिलावटखोर आपको ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे।
05.03.2023

No comments: