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Jun 1, 2022

पर्यावरणः भयावह है वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव

-  सुदर्शन सोलंकी

93 प्रतिशत भारतीय ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से अधिक है। यह निष्कर्ष अमेरिका के हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट द्वारा जारी वार्षिक स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इसके परिणामस्वरूप भारत में औसत आयु लगभग 1.5 वर्ष कम हो गई है।

ऐटमॉस्फेरिक एन्वॉयरमेंट में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि ब्लैक कार्बन की वजह से समय से पहले मृत्यु हो सकती है। यही नहीं, ब्लैक कार्बन का इंसान के स्वास्थ्य पर अनुमान से कहीं ज़्यादा बुरा असर पड़ता है।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, एचएसबीसी बैंक के स्वामित्व व हिस्सेदारी वाली कंपनियों द्वारा निर्मित और नियोजित नए कोयला संयंत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण से प्रति वर्ष अनुमानित 18,700 मौतें होंगी। अर्थात इन संयंत्रों से प्रतिदिन 51 लोगों की मौत होने की संभावना होगी। इन कोयला संयंत्रों के कारण प्रति वर्ष भारत में अनुमानित 8300, चीन में 4200, बांग्लादेश में 1200, इंडोनेशिया में 1100, वियतनाम में 580 और पाकिस्तान में 450 मौंतें हो सकती हैं।

एक मनुष्य दिन भर में औसतन 20 हज़ार बार सांस लेता है और इस दौरान औसतन 8000 लीटर वायु अंदर-बाहर करता है। यदि वायु अशुद्ध है या उसमें प्रदूषक तत्वों का समावेश है तो वह सांस के साथ शरीर में पहुंचकर विभिन्न प्रकार से शरीर को प्रभावित करती है और अनेक भयंकर रोगों का कारण बन जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 70 लाख लोगों की मृत्यु प्रदूषित हवा के कारण होती है। हेल्‍थ इफेक्‍ट इंस्टीट्यूट के मुताबिक 2015 में भारत में 10 लाख से ज़्यादा असामयिक मौतों का कारण वायु प्रदूषण था। 2019 में वायु प्रदूषण के चलते 18 फीसद मृत्‍यु हुई। इंडियन कॉउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में वायु-प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख मौतें हुई हैं। अब भी भारत के कई राज्यों में प्रदूषण की समस्या साल भर बनी रहती है।

कणीय पदार्थों (पार्टिकुलेट मैटर, पीएम) से होने वाला वायु-प्रदूषण मुख्यतः जीवाश्म ईंधन के जलने का परिणाम होता है। इसे दुनिया भर में वायु प्रदूषण का सबसे घातक रूप माना जाता है, जो सिगरेट पीने से भी ज़्यादा खतरनाक है।

इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण का वनस्पति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसे अम्लीय वर्षा, धूम-कोहरा, ओज़ोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड इत्यादि पेड़-पौधों को प्रभावित करते हैं। वायु प्रदूषण के कारण पौधों को प्रकाश कम मिलता है जिसके कारण उनकी प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है। अधिक वायु प्रदूषण के क्षेत्र में पौधे परिपक्व नहीं हो पाते, कलियां मुरझा जाती हैं तथा फल भी पूर्ण विकसित नहीं हो पाते।

डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के टॉप 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत के हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा है कि इन शहरों में 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण (पीएम 2.5) की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है। पीएम 2.5 प्रदूषण में शामिल सूक्ष्म तत्व हैं जिन्हें मानव शरीर के लिए सबसे खतरनाक माना जाता है। आइक्‍यू एयर की रिपार्ट के अनुसार वर्ष 2020 में पूरे विश्‍व में सबसे खराब वायु गुणवत्‍ता वाले देशों की सूची में भारत तीसरे नंबर पर था। वहीं हाल में दिल्ली में प्रदूषक पीएम 2.5 का सूचकांक 462 था, जो 50 से भी कम होना चाहिए। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में पीएम 2.5 का स्तर 17, बर्लिन में 20, न्यूयार्क में 38 और बीजिंग में 59 है।

डालबर्ग एडवाइज़र के साथ क्लीन एयर फंड और कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने मिलकर काम किया और बताया कि वायु प्रदूषण पर तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता है क्योंकि इसकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव पड़ रहा है और स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। डालबर्ग का अनुमान है कि भारत के दिहाड़ी मज़दूर वायु प्रदूषण की वजह से सेहत खराब होने के कारण जो अवकाश लेते हैं उसकी वजह से राजस्‍व में 6 अरब अमरीकी डॉलर का नुकसान होता है। वायु प्रदूषण की वजह से दिहाड़ी मज़दूरों के कार्य करने की क्षमता के साथ उनकी सोचने-समझने की शक्ति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण उनकी श्रम शक्ति भी कम होती है जिससे राजस्‍व 24 अरब डॉलर तक कम हो रहा है।

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वायु प्रदूषण सम्बंधी विभिन्न अधिनियम, नियम और अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, किंतु विभिन्न शोधों से पता चलता है कि इन सबके बावजूद भी वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। प्रदूषण के स्तर में स्थायी कमी लाने के लिए पराली जलाने पर नियंत्रण के साथ ही वाहनों, उद्योग, बिजली संयंत्रों इत्यादि से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कार्य योजना बनाने और उनके सही से क्रियान्वयन की आवश्यकता है अन्यथा इसके परिणाम भयावह होंगे।

नदियों में बढ़ता प्रदूषण


विश्व के अधिकांश भागों में पीने का पानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी नदियों से मिलता है। एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, कावेरी, नर्मदा, सिंघु, यांगत्सी नदियां, अफ्रीका में नील, नाइजर, कांगो, जम्बेजी नदियां, उत्तरी अमेरिका में हडसन, मिसिसिपी, डेलावेयर, मैकेंज़ी नदियां, दक्षिणी अमेरिका में अमेज़न नदी, युरोप में वोल्गा, टेम्स एवं ऑस्ट्रेलिया में मरे व डार्लिंग विश्व की प्रमुख नदियां हैं।

नदियां न केवल लोगों की प्यास बुझाती हैं, बल्कि आजीविका का उत्तम साधन भी होती हैं। उद्योगों और सिंचाई हेतु जल प्रमुख रूप से नदियों से लिया जाता है। नदियां न सिर्फ जल की पूर्ति करती हैं बल्कि घरेलू एवं औद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को भी अपने साथ बहाकर ले जाती हैं। नदियों पर बांध बनाकर बिजली प्राप्त की जाती है। नदियों से मत्स्य पालन जैसे लाभ हो रहे हैं। नदियों से पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा मिलता है। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक के अलावा स्वास्थ्य, कृषि, व्यापार, पर्यटन, शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण जैसे कई क्षेत्रों से सम्बंध रखती है। पारिस्थितिक तंत्र और भूजल स्तर को बनाए रखने में भी नदियां अहम योगदान देती हैं।

हमारे देश में आज शायद ही ऐसी कोई नदी हो जो प्रदूषण से मुक्त हो। नदियों में प्रदूषण के कारण जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव हो रहा है। नदियों पर न केवल प्रदूषण का बल्कि इसके मार्ग में बदलाव, बालू खनन, खत्म होती जैव विविधता और जलग्रहण क्षेत्र के खत्म होने का भी असर हो रहा है। नदियों के अलावा अन्य खुले जलाशय जैसे झील, तालाब आदि में अतिक्रमण हुआ है। कई नदियां और सतही जल स्रोत सीवेज और कूड़े का डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं।

हाल ही में नदियों में विभिन्न प्रकार की दवाइयों का प्रदूषण पाया गया है। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दवा उद्योग विश्व की लगभग हर नदी के पानी को प्रदूषित कर रहा है। भारत में यमुना व कृष्णा सहित देश की विभिन्न नदियों में इस तरह का प्रदूषण पाया गया है। विभिन्न सरकारी परियोजनाओं के बाद भी गंगा व अन्य नदियों में प्रदूषण को लेकर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्यों की प्रदूषण निगरानी एजेंसियों के एक विश्लेषण से पता चला है कि हमारे प्रमुख सतही जल स्रोतों का 90 प्रतिशत हिस्सा अब उपयोग के लायक नहीं बचा है। सीपीसीबी की एक रिपोर्ट के अनुसार “देश की 323 नदियों के 351 हिस्से प्रदूषित हैं।” 17 प्रतिशत जल राशियां गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। उत्तराखंड से गंगा सागर तक करीब 2500 किलोमीटर की यात्रा तय करने वाली गंगा 50 स्थानों पर प्रदूषित है।

सीपीसीबी की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से 31 में नदियों का प्रवाह प्रदूषित है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 53 प्रदूषित प्रवाह हैं। इसके बाद असम, मध्यप्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, मिज़ोरम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, मेघालय, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, नगालैंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, पंजाब, राजस्थान, पुडुचेरी, हरियाणा और दिल्ली हैं।

सीपीसीबी की एक रिपोर्ट में प्रदूषण के लिए घरेलू सीवरेज, साफ-सफाई की अपर्याप्त सुविधाएँ, खराब सेप्टेज प्रबंधन और गंदा पानी तथा साफ-सफाई के लिए नीतियों की गैर-मौजूदगी को ज़िम्मेदार माना गया है। (स्रोत फीचर्स) 0

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