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Apr 5, 2021

तीन ग़ज़ले

 

- डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल 

एक

फूल सपनों के खिलेंगे, कामना करते चलें

साथ लाएँगे, बहारें, फ़ैसला करते चलें

 

जिदगी सुलझा ही लेगी अपने हर उलझाव को

उलझनें जितनी भी हैं, दिल से जुदा करते चलें

 

आने वालों को न करने दें अँधेरों का सफ़र

आँधियों के दरमियाँ रोशन दिया करते चले

 

चाहते हों जिदगी में लोग यदि अपना भला

उनसे यह कहिए कि वे सबका भला करते चलें

 

उठ न पाएगी कभी दीवार यह अलगाव की

हम ख़फ़ा होने से पहले ही गिला करते चलें

 

दो

गर नहीं है रास्ता तो रास्ता पैदा करो

जिदगी में जिदगी का हौसला पैदा करो

 

हर अँधेरे को नई इक दीपमाला भेंट दो

हर निराशा से नई संभावना पैदा करो

 

दे सको तो मोम को भी रूप दो फौलाद का

कर सको तो पत्थरों में आईना पैदा करो

 

दर्ज कर दो कल के काग़ज़ पर भी अपने दस्तख़त

आज के जीवन से कल का सिलसिला पैदा करो

 

ले के अंबर से धरा तक जितने भी संदर्भ हैं

सब तुम्हारे हैं, सभी से वास्ता पैदा करो

 

 तीन

रोशनी बनकर पिघलता है उजाले के लिए

शम्अ जल जाती है घर को जगमगाने के लिए

 

हमने अपनों के लिए भी मूँद रक्खा है मकाँ

पेड़ की बाहें खुली हैं हर परिदे के लिए

 

प्रेम हो, अपनत्व हो, सहयोग हो, सेवा भी हो

सिर्फ़ पैसा ही नहीं, हर बार जीने के लिए

 

जितने भी काँटे हैं पग-पग में वे चुनते जाइए

रास्ते को साफ़ रखना आने वाले के लिए

 

एक दिन जाना ही है, जाने से पहले दोस्तो

यादगारें छोड़ते जाओ, जमाने के लिए

 

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1 comment:

ज्योति-कलश said...

बहुत सुन्दर ग़ज़लें 👌🙏