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Feb 1, 2021

चार लघुकथाएँ

1. सुंदरता

-सीमा व्यास

दो साल हो गए हमारी शादी को। बताओ मैं तुम्हें सबसे सुंदर कब लगी?

अं…चलो तुम ही बताओ। तुम्हारा रूप कब सबसे सुंदर लगा होगा?

हमारी शादी की पहली सालगिरह पर? जब मैं दूसरी बार दुल्हन की तरह तैयार हुई थी।

नहीं…तब नहीं।

तो जब हम शिमला गए थे और मैं भीगे बालों में तुम्हारे करीब आई थी तब?

ना…ना…तब भी नहीं।

अबकी बार तो बिल्कुल सही बताऊँगी। जब हमारी बिटिया परी आने वाली थी और मेरा रूप निखर आया था तब?

न…न…रहने दो तुम नहीं बता पाओगी। मैं ही बताता हूँ। याद है जब हम शिमला में मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे। तब एक बूढ़ी महिला को देख तुम्हें अपनी दादी की याद आ गई थी। तब दादी की दी हुई सीखों, हिदायतों के बारे में बताते हुए तुम इतना खो गई कि मुझे तुममें दादी का प्रतिरूप नर आने लगा। सच…तब इतनी सुंदर लगी तुम कि मैंने धीरे से तुम्हारे चरण छू लिये

2. वहाँ है पानी

पूरी बस्ती में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची थी। बंगलेवाले, जिनके घरों में बोरिंग थे, वे गाड़ी धोने और लॉन सींचने जैसे कामों में नागा नहीं करते। पर बस्ती में किसी को एक लोटा पानी देने को तैयार नहीं होते।

आखिरकार बस्तीवालों ने झुंड बनाकर नेता का घेराव किया। सरकारी मद से हैंडपंप का आश्वासन पाकर बस्ती वाले निहाल हो गए। हैंडपंप खुदवाएँ कहाँ? बड़े-बूढ़ों की सलाह पर ताबड़तोड़ छड़ी से पानी जाँचनेवाले बाबा की ढूँढवाई हुई। छड़ी लेकर बाबा चला। आगे-आगे बाबा, पीछे-पीछे पूरी बस्ती। सूरज आग बरसा रहा था। पसीने से तरबतर बाबा ने बस्ती का पूरा चक्कर लगा लिया। बाबा को कहीं पानी के आसार नजर न आए। लोगों के कहने पर बाबा ने भरी दुपहरी में दूसरी बार चक्कर लगाया। जैसे ही उन्होंने इनकार में सिर हिलाया, लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। पानी की उम्मीद से बाबा के साथ चल रहे युवक उन पर टूट पड़े। लात-घूसे चलाकर पल भर में बाबा को अधमरा कर जमीन पर पटक दिया।

तभी भीड़ को चीरकर एक वृद्ध आगे आ। बोले, ‘इन बंगलेवालों ने छेद दिया धरती की छाती को। चूस लिया सारा पानी। अब पानी कहाँ है धरती के पेट में? नाहक ही इस गरीब को सजा क्यों दे रहे हो?’ सबके हाथ रुक गए। वह फिर बोला, ‘देखो! बाबा सच्चा है। बेहोशी की हालत में भी उसकी छड़ी सही बता रही है। वहाँ है पानी।

सबकी निगाहें एक साथ बाबा की छड़ी की ओर गईं। नीचे पड़े बाबा की छड़ी आसमान की ओर उठी थी। सबने गर्दन ऊपर की। सच था, अब सिर्फ वहाँ है पानी।

3. चकमा

बरसों बाद भाई के घर आए दूर के चाचा बड़ी होती भतीजी को देख बहुत पास से दुलारने लगे। शाम को तो उसे रुनझुन बजने वाली पायल भी ला दी, जिसकी जिद वह हर मालवाले ठेले के आसपास घूमकर कर रही थी। पायल देने के समय चाचा ने कहा, चल, सामने बन रहे मकान में। पायल पहनकर उसकी सीढ़ियों पर चढ़ेगी तो बहुत मीठी छमछम आवाज होगी।

भतीजी पायल के उत्साह में चली तो गई, पर पायल पहनाते चाचा के हाथों का स्पर्श उसे अच्छा नहीं लगा और चाचा का देखना तो बिलकुल भी नहीं।

पायल पहनते ही बोली, चाचा एकबार सीढ़ी पर चढ़कर देखूँ, कैसी बजती है? और चाचा के उत्तर देने से पहले ही उसने सीढ़ियों से छत की ओर दौड़ लगा दी। छत पर खड़ी होकर नीचे देखते हुए ज़ोर-ज़ोर से कहने लगी, ओ सरिता, देख मेरे चाचा ने छुमछुम बजने वाली पायल दी है। मीना, सोनू देखो तो कितनी सुंदर है। जल्दी से यहाँ ऊपर आओ, मैं बजाकर दिखाती हूँ। रेखा, सरिता को लेकर आ तो सही…।

भतीजी ने चाचा के इरादों को पलक झपकते ही चकमा दे दिया।

4. मुझसे पूछा था क्या

उस किशोर का मन न, अधिक सुविधापूर्ण घर में भी अस्थिर सा था। जबकि माँ सामान्य होकर उससे बात कर रही थी।

क्या बनाऊँ आज तुम्हारे लिए?

जो मर्जी हो।

अच्छा यह टी.वी. कहाँ लगाएँ?

जहाँ आप चाहें।

तो डिनर आज होटल से बुलवा लेते हैं। क्या खाओगे?

आप ही तय कर लें।

सुनो, कल से तुम बस से स्कूल जाओगे या मैं छोड़ दूँ?

जैसा आप उचित समझें।

क्या हो गया है तुम्हें? कोई जवाब ढंग से नहीं दे रहे। क्या तुमसे कुछ भी न पूछूँ?

पापा से अलग होते वक्त मुझसे पूछा था क्या


सम्पर्कः 562, ए.एम., स्कीम नं. 140, पिपलियाहाना, इन्दौर (म.प्र.), मोबा. : 9406852215,

 ईमेल : seemasrc@gmail.com

2 comments:

Anita Manda said...

सभी अच्छी लगी

Sudershan Ratnakar said...

सभी लघुकथाएँ बहुत सुंदर।