उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Feb 10, 2015

लघुकथाएँ

जहर की जड़ें
दफ्तर से लौटकर मैं अभी खाना खाने के लिए बैठा ही था कि डॉली ने रोना शुरू कर दिया।
'अरे-अरे-अरे, किसने मारा हमारी बेटी को?' उसे प्यार करते हुए मैंने पूछा।
'डैडी.....हमें स्कूटर चाहिए।' सुबकते हुए वह बोली।
'लेकिन तुम्हारे पास तो पहले ही बहुत खिलौने हैं!' इस पर उसकी हिचकियां बंध गई, बोली, 'मेरी गुडिय़ा को बचा लो डैडी।'
'बात क्या है?' मैंने दुलारपूर्वक पूछा।
'पिंकी ने पहले तो अपने गुड्डे के साथ हमारी गुडिय़ा की शादी करके हमसे गुडिय़ा छीन ली।' डॉली ने जोरों से सुबकते हुए बताया, 'अब कहती है- दहेज में स्कूटर दो, वरना आग लगा दूंगी गुडिय़ा को।.....गुडिय़ा को बचा लो डैडी....हमें स्कूटर दिला दो...।'
डॉली की सुबकियां धीरे- धीरे तेज होती गईं और शब्द उसकी हिचकियों में डूबते चले गए।
निर्मल खूबसूरती
लड़की ने काफी कोशिश की लड़के की नजरों को नजरअंदाज करने की। कभी वह दाएं देखने लगती, कभी बाएं। लेकिन जैसे ही उसकी नजर सामने पड़ती, लड़के को अपनी ओर घूरता पाती। उसे गुस्सा आने लगा। पार्क में और भी छात्र थे। कुछ ग्रुप में तो कुछ अकेले। सब के सब आपस की बातों में मशगूल या पढ़ाई में। एक वही था जो खाली बैठा उसको तके जा रहा था।
गुस्सा जब हद से ऊपर चढ़ आया तो लड़की उठी और लड़के के सामने जा खड़ी हुई।
'ए मिस्टर!' वह चीखी।
वह चुप रहा और पूर्ववत ताकता रहा।
'जिंदगी में इससे पहले कभी लड़की नहीं देखी है क्या?' उसके ढीठपन पर वह पुन: चिल्लाई।
इस बार लड़के का ध्यान टूटा। उसे पता चला कि लड़की उसी पर नाराज हो रही है।
'घर में मां- बहन है कि नहीं।' लड़की फिर भभकी।
'सब हैं, लेकिन आप गलत समझ रही हैं।' इस बार वह अचकाचाकर बोला, 'मैं दरअसल आपको नहीं देख रहा था।'
'अच्छा' लड़की व्यंग्यपूर्वक बोली।
'आप समझ नहीं पाएंगी मेरी बात।' वह आगे बोला।
'यानी कि मैं मूर्ख हूं।'
'मैं खूबसूरती को देख रहा था।' उसके सवाल पर वह साफ- साफ बोला, 'मैंने वहां बैठी निर्मल खूबसूरती को देखा- जो अब वहां नहीं है।'
'अब वो यहां है।' उसकी धृष्टता पर लड़की जोरों से फुंकारी, 'बहुत शौक है खूबसूरती देखने का तो अम्मा से कहकर ब्याह क्यों नहीं करा लेते हो।'
'मैं शादी शुदा हूं, और एक बच्चे का बाप भी।' वह बोला, 'लेकिन खूबसूरती किसी रिश्ते का नाम नहीं है। न ही वह किसी एक चीज या एक मनुष्य तक सीमित है। अब आप ही देखिए, कुछ समय पहले तक आप निर्मल खूबसूरती का सजीव झरना थी- अब नहीं है।'
उसके इस बयान से लड़की झटका खा गई।
'नहीं हूं तो न सही। तुमसे क्या?' वह बोली।
लड़का चुप रहा और दूसरी ओर कहीं देखने लगा। लड़की कुछ सुनने के इंतजार में वहीं खड़ी रही। लड़के का ध्यान अब उसकी ओर था ही नहीं। लड़की ने खुद को घोर उपेक्षित और अपमानित महसूस किया और 'बदतमीज कहीं का' कहकर पैर पटकती हुई वहां से चली गई।

सम्पर्क : एम-70, नवीन शाहदरा, दिल्ली- 110032, मोबाइल- 09968094431


2 comments:

उदय श्री ताम्हणे said...

sundar laghukathaye

सीमा स्‍मृति said...

दोनों ल्‍घुकथाएं बहुत गहन भाव के साथ ।आप को हार्दिक बधाई