माँ
आज मैं अपनी सहेली को लेकर अस्पताल गई थी। मैटरनिटी वार्ड में उसे भर्ती किया। सहेली की माँ या सास में कोई पहुँच नहीं पाई थीं इसलिए मैं ही लेकर गई थी। मैं वहीं बाहर बैठी थी। तभी वहीँ एक फैमिली आई। उनके घर भी नया मेहमान आने वाला था। लड़की कम उम्र की ही थी। बातों से लग रहा था कि लड़की के मैके और ससुराल, दोनों ही तरफ यह प्रथम सन्तान थी।
लड़की के साथ दो महिलाएँ आई थीं। दोनों के ही चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ साफ़ झलक रही थीं। लड़की जब अन्दर जाने लगी तो दोनों ने ही उसे प्यार किया। लड़की दोनों को माँ कहकर सम्बोधित कर रही थी। जब वह अन्दर चली गई तो दोनों महिलाएँ वहीं बैठ गईं।
मैं यह तय नहीं कर पा रही थी कि उनमें लड़की की माँ कौन है और सास कौन है। करीब एक घंटे के बाद पता चला कि लड़की ने बेटे को जन्म दिया था। दोनों महिलाओं ने गर्मजोशी से एक दूसरे को बधाइयाँ दीं। मैं अभी भी उलझन में थी कि कौन माँ है और कौन सास। तभी जच्चा और बच्चा दोनों ही बाहर आए। बच्चा नर्स की गोद में था। एक महिला दौड़कर नर्स के पास पहुँची और बच्चे को गोद में ले लिया। उसकी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी।
दूसरी महिला लड़की के पास गई और इस कष्ट से उबरने के लिए उसे प्यार करने लगी। एक झटके में ही मेरी समझ में आ गया कि लड़की की माँ कौन थी।
'माँ, आप क्या लिख रही हैं।‘
'बेटे, मेरे मन में कुछ विचार हैं,जिन्हें मैं
कलमबद्ध करना चाहती हूँ।‘
'तो कागज पर क्यों लिख रही हो।‘
'फिर कहाँ लिखूँ।‘
'लैपटाप पर लिखो।‘
'मुझे तो नहीं आती हमारे जमाने में कम्प्यूटर नहीं था न,
हमने तो कागज पर लिख कर ही पढ़ई की है।‘
'अब सीख लो।‘
'मुझसे नहीं हो पाएगा।‘
'ऐसा नहीं है। मैं आपको सिखाऊँगा।‘
बेटे ने माँ की उँगली पकड़ की-बोर्ड पर दौड़ानी शुरू की। स्क्रीन पर अक्षर के मोती उभरने लगे। माँ की आँखें बरबस ही गीली हो गईं।
उसे बसंत पंचमी का वह दिन याद आ गया जब उसने बेटे के हाथों में स्लेट पकड़ाईथी और उसकी उँगली पकड़कर प्रथम अक्षर लिखवाया था।
उस दिन मदर्स डे था और इससे अच्छा कोई उपहार हो ही नहीं सकता था।
अब हाथों में लेखनी की जगह की-बोर्ड और कागज़ की जगह स्क्रीन है। न स्याहियाँ खत्म होती हैं और न कागज़ फटते हैं। अच्छी हैंन्डराइटिंग के लिए कान भी नहीं मरोड़े जाते हैं।
यह युग परिवर्तन ही तो है।
छोटा- सा एक बालक, भूख से व्याकुल, निरीह आँखों से ताकता, ललचाई नजरों से सड़क के किनारे स्टाल पर सजे चटपटे समोसों को देखता है। चटखारे भर खाते लोग तिरछी निगाहों से देख मुँह फेर लेते हैं। नन्हा बालक अपनी छोटी-छोटी हथेलियाँ फैला पैसे माँगता है।
मिलती है झिड़की,
'अबे! तेरे पढ़ऩे की उम्र है। भीख माँगता है, जा भाग।‘
बेचारा बालक अपना सा मुँह लिए हथेलियाँ समेट लेता है। पेट की ज्वाला बढ़ती जाती है।
एकाएक वह झपट्टा मार एक समोसा लेकर भागता है।
'अबे! तेरे पढऩे की उम्र है,चोरी करता है।‘
बेचारा बालक देखता रह जाता है और एक कुत्ता उसे ले भागता है।
रोता हुआ बालक स्टाल पर गंदी प्लेटें साफ करने लगता है।
दुकानदार चुपचाप देखता हुआ सोचता है, कुछ काम कर दे .फिरसमोसे दे दूँगा।
तभी एक जीप आती है। एक अधिकारी उतरता है और बाल श्रम के लिए दुकानदार को खरी खोटी सुनाता है।
बालक भूखा ही रह जाता है।
नन्हा बालक नहीं जानता है कि भीख माँगना अपराध है,चोरी करना अपराध है,बाल श्रम अपराध है। उसे तो सिर्फ भूख लगी थी।
सम्पर्क: 206, Skylark Topaz,5th Main, Jagdish Nagar,Near BEML Hospital,New Thippasandra Post Bangaluru- 560075
No comments:
Post a Comment