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May 10, 2011

धुएं से तबाह होती जिंदगी

- कृष्ण कुमार यादव

अकेले भारत में हर साल लगभग आठ लाख मौतें तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के कारण होती हैं। आज बच्चे- बूढ़े- जवान से लेकर पुरुष- नारी तक सभी वर्गों में तम्बाकू की लत देखी जा सकती है। कभी फैशन में तो, कभी नशे के चस्के में और कई बार थकान मिटाने या गम भुलाने की आड़ में भी इसे लिया जा रहा है।
31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है। मई माह की भी अपनी महिमा है। मजदूर दिवस से आरंभ होकर यह तम्बाकू निषेध दिवस पर खत्म हो जाता है। दुनिया के 170 राष्ट्रों ने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं पर वास्तव में इस सम्बन्ध में कोई ठोस पहल नहीं की जाती है। इसके पीछे राजस्व नुकसान से लेकर कार्पोरेट जगत के निहित तत्व तक शामिल हैं, जिनकी सरकारों में जबरदस्त घुसपैठ होती है। ऐसे में तम्बाकू के धुँए का यह जहर धीरे- धीरे सुरसा के मुँह की तरह पूरी दुनिया को निगलने पर आमदा है। 450 ग्राम तम्बाकू में निकोटीन की मात्रा लगभग 22.8 ग्राम होती है। इसकी 6 ग्राम मात्रा से एक कुत्ता 3 मिनट में मर जाता है। तम्बाकू के प्रयोग से अनेक दंत रोग, मंदाग्नि रोग हो जाता है। आंखों की ज्योति कम हो सकती है तो दुष्प्रभाव रूप में व्यक्ति बहरा व अन्धा तक हो जाता है। तम्बाकू के निकोटीन से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, रक्त संचार मंद पड़ जाता है। फेफड़ों की टीबी में तो इसका सीधा प्रभाव देखा जा सकता है। यही नहीं तम्बाकू के सेवन से व्यक्ति नपुंसक भी हो सकता है। कहना गलत न होगा कि तम्बाकू का नियमित सेवन धीरे- धीरे व्यक्ति को मृत्यु के करीब ला देता है और वह असमय ही काल- कवलित हो जाता है।
अकेले भारत में हर साल लगभग आठ लाख मौत तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के कारण होती हैं। आज बच्चे- बूढ़े- जवान से लेकर पुरुष- नारी तक सभी वर्गों में तम्बाकू की लत देखी जा सकती है। कभी फैशन में तो, कभी नशे के चस्के में और कई बार थकान मिटाने या गम भुलाने की आड़ में भी इसे लिया जा रहा है। घर में बड़ों द्वारा लिया जा रहा तम्बाकू कब छोटों के पास पहुँच जाता है, पता ही नहीं चलता। दुर्भाग्यवश भारत में धर्म की आड़ में भी तम्बाकू का स्वाद लेने वालों की कमी नहीं है। गौरतलब है कि आयुर्वेद के चरक तथा सुश्रुत जैसे हजारों वर्ष पूर्व रचे गए ग्रन्थों में धूम्रपान का विधान है। वैसे, वहाँ पर उसका वर्णन औषधि के रूप में हुआ है, जैसे कहा गया है कि आम के सूखे पत्ते को चिलम जैसी किसी उपकरण में रखकर धुआं खींचने से गले के रोगों में आराम होता है। दमा तथा श्वास संबंधी रोगों में वासा (अडूसा) के सूखे पत्तों को चिलम में रखकर पीना एक प्रभावशाली उपाय माना गया है। आज भी ऐसे लोग मिल जायेंगे जो तम्बाकू को दवा बताते हैं। पवित्र तीर्थ स्थलों पर धुनी पर बैठकर सुलफा, गांजा अथवा तम्बाकू के दम लगाने वाले तथाकथित बाबाओं की तो पूरी फौज ही भरी पड़ी है। सरकारी दफ्तरों में तम्बाकू या धूम्रपान का सेवन करते पकड़े गए तमाम लोगों ने इसे अपने पक्ष में उपयोग किया है। पर ऐसे लोग उस पक्ष को भूल जाते हैं, जहाँ स्कन्दपुराण में कहा गया है कि- 'स्वधर्म का आचरण करके जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह धूम्रपान से नष्ट हो जाता है। इस कारण समस्त ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि को इसका सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।'
इधर हाल के वर्षों में जिस तरह से इसने तेजी से महिलाओं को चंगुल में लेना आरंभ किया है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक बन चुका है। अधिकतर महिलाओं का यह नशा उनकी अगली पीढ़ी में भी जा रहा है क्योंकि मातृत्व की स्थिति में इसका बुरा असर बच्चों पर पडऩा तय है। अब तो महिलाओं के लिए बाकायदा अलग से तम्बाकू उत्पाद भी बनने लगे हैं। स्कूल जाते लड़के- लड़कियां कम उम्र में ही इनका लुत्फ उठाने लगे हैं। उस पर से विज्ञापनों की चकाचौंध भी उन्हें इसका स्वाद लेने की तरफ अग्रसर करती है। फिल्मों- धारावाहिकों में जिस धड़ल्ले से नायक- नायिकाएं तम्बाकू वाले सिगरेट या सिगार को स्टाइल में पीते नजर आते हैं, वह नवयुवकों- नवयुवतियों पर गहरा असर डालता है। ऐसे में यह पता होते हुए भी कि यह स्वस्थ्य के अनुकूल नहीं है, यह स्टेट्स सिम्बल या फैशन का प्रतीक बन जाता है।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद घाटे की भरपाई और बदलते मूल्यों के चक्कर में व्यावसायिक कंपनियों ने तम्बाकू उत्पादों की बिक्री के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करना आरंभ किया। लारीवार्ड कंपनी ने पहल करते हुए पहली बार तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन हेतु सर्वप्रथम 1919 में महिलाओं के चित्रों का उपयोग किया। इसके अगले साल ही सिगरेट को नारी- स्वतंत्रता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया। 1927 के दौर में तो बाकायदा मार्लबोरो ब्रांड में सिगरेट को फैशन व दुबलेपन से जोड़ कर पेश किया गया। इसी के साथ ही कई नामी- गिरामी कंपनियों ने तमाम अभिनेत्रियों को तम्बाकू उत्पादों के कैम्पेन से जोडऩा आरंभ किया। बाद के वर्षों में जैसे- जैसे नारी- स्वतंत्रता के नारे बुलंद होते गए, स्लिम होने को फैशन माना जाने लगा, इन कंपनियों ने भी इसे भुनाना आरंभ कर दिया। फिलिप मौरिस कंपनी ने 60 के दशक में बाकायदा वर्जिनिया स्लिम्स नाम से मार्केटिंग अभियान आरंभ किया, जिसकी पंच लाइन थी - 'यू हैव कम ए लांग वे बेबी।' इसके बाद तो लगभग हर कंपनी ही तम्बाकू उत्पादों के प्रचार के लिए नारी मॉडलों व फिल्मी नायिकाओं का इस्तेमाल कर रही है। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस को महिलाओं पर फोकस किया जाना महत्वपूर्ण व प्रासंगिक भी है।
गौरतलब है कि भारत कि कुल जितनी आबादी है, लगभग उतने ही लोग दुनिया में धुम्रपान करने वाले भी हैं, अर्थात 1 अरब से ज्यादा। इस 1 अरब में धूम्रपान करने वाली करीब 20 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं। आज महिलाओं में धूम्रपान का यह शौक भारत में भी बढ़ते चला जा रहा है। यह हाई सोसायटी तथा समाज के निचले तबके में बखूबी देखने को मिलता है। आंकड़े गवाह हैं कि भारत में करीब 1.4 फीसदी महिलाएं धूम्रपान और करीब 8.4 फीसदी महिलाएं खाने योग्य तम्बाकू का सेवन करती हैं। ऐसे में तम्बाकू सेवन से उनमें तमाम रोग व विकार उत्पन्न होते हैं। इनमें सांस सम्बन्धी बीमारी, फेफड़े का कैंसर, दिल का दौरा, निमोनिया, माहवारी सम्बंधित समस्याएं एवं प्रजनन विकार जैसी बीमारियाँ शामिल हैं। यही नहीं तम्बाकू का नियमित सेवन करने वाली महिलाओं में अक्सर पूर्व- प्रसव भी देखा गया है तथा पैदा होने वाले बच्चे औसत वजन से लगभग 400- 500 ग्राम कम के पैदा होते हैं। इसके साथ ही तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर भी सामान्य महिलाओं की तुलना में 95 फीसदी ज्यादा होती है।
आज जरुरत है कि इस ओर गंभीर पहल की जाय। इन्हीं सबके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन अब तम्बाकू- उत्पादों का भ्रामक बाजारीकरण, जिसमें परोक्ष- अपरोक्ष रूप में तम्बाकू कंपनियों द्वारा प्रायोजित किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रतिबन्ध लगाना भी शामिल है, के बारे में भी सोच रहा है।
जानकर आश्चर्य होगा कि तम्बाकू कंपनियाँ हर साल विज्ञापन पर करीब दस अरब रूपये खर्च करतीं हैं। पर बेहतर होगा कि सरकारों और संगठनों की बजाय इस सम्बन्ध में अपने घर और उससे पहले खुद से शुरुआत की जाय। क्योंकि सक्रियरूप में जहाँ यह खुद के लिए घातक है, वही निष्क्रिय रूप में हमारे परिवेश, परिवार, समाज और अंतत: पूरी सभ्यता को लीलने के लिए तैयार बैठी है!

मेरे बारे में-
जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर आजमगढ़ से इंटर तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति-शास्त्र में परास्नातक। डाक सेवाओं मूलत: चिट्ठियों से मेरा गहरा नाता है, इसलिए नहीं कि मैं डाक विभाग से जुड़ा हूं बल्कि इसलिए भी कि मैं साहित्य से जुड़ा हूं। 250 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं व वेब-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। आकाशवाणी पर कविताओं के प्रसारण के साथ तीन दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य संकलनों में कविताएं प्रकाशित। एक काव्य संकलन 'अभिलाषा' सहित दो निबंध-संकलन 'अभिव्यक्तियों के बहाने' तथा 'अनुभूतियाँ और विमर्श' एवं संपादित कृति 'क्रांति-यज्ञ' का प्रकाशन।
पता: निदेशक, भारतीय डाक सेवा, अंडमान- निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर- 744101,
मो. 09476046232, ईमेल: kkyadav.y@rediffmail.com

1 comment:

D.P. Mishra said...

BAHUT HE SUNDAR
DHUYE ME JINDAGE KO URA DENA SAMAJHDARE KATYE NAHE HAI