इस वर्ष पाकिस्तान सदी की सबसे भीषण बाढ़ का सामना कर रहा है। देश का एक-तिहाई हिस्सा जलमग्न हो गया है। बाढ़ ने लगभग 3.3 करोड़ लोगों को विस्थापित किया और 1200 से अधिक लोग मारे गए। कई ऐतिहासिक इमारतों को भी काफी नुकसान पहुँचा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार इस तबाही की शुरुआत इस
वर्ष भीषण ग्रीष्म लहर से हुई। अप्रैल और मई माह के दौरान कई स्थानों पर काफी लंबे
समय तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। जैकबाबाद शहर में तो तापमान 51
डिग्री सेल्सियस से भी अधिक रहा। पाकिस्तान के कुछ स्थान विश्व के सबसे गर्म
स्थानों में रहे।
गर्म हवा अधिक नमी धारण कर सकती है। लिहाज़ा
गर्म मौसम को देखते हुए कई मौसम विज्ञानियों ने इस वर्ष की शुरुआत में ही जुलाई से
सितंबर के बीच देश में सामान्य से अधिक वर्षा होने की चेतावनी दी थी।
जलवायु वैज्ञानिक अतहर हुसैन के अनुसार भीषण
गर्मी से हिमनदों के पिघलने से सिंधु की सहायक नदियों में जल-प्रवाह बढ़ा जो अंततः
सिंधु नदी में पहुंचा। सिंधु नदी पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी है जो देश के उत्तरी
क्षेत्र से शुरू होकर दक्षिण तक बहती है। इस नदी से कई शहरों और कृषि की ज़रूरतें
पूरी होती हैं। जुलाई माह में हिमाच्छादित क्षेत्रों का दौरा करने पर सिंधु की
सहायक हुनज़ा नदी में भारी प्रवाह और कीचड़ भरा पानी देखा गया। कीचड़ वाला पानी इस
बात का संकेत था कि हिमनद काफी तेज़ी से पिघल रहे हैं और तेज़ी से बहता पानी अपने
साथ तलछट लेकर बह रहा है। इसके अलावा कई झीलों की बर्फीली मेड़ें फूट गईं और उनका
पानी सिंधु में पहुँचा।
ग्रीष्म लहर के साथ ही एक और बात हुई - अरब सागर
में कम दबाव का सिस्टम बना जिसकी वजह से जून की शुरुआत में ही पाकिस्तान के तटीय
प्रांतों में भारी बारिश हुई। इस तरह का सिस्टम बनना काफी असामान्य था। इस वर्ष
पाकिस्तान के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से तीन गुना और दक्षिण पाकिस्तान
स्थित सिंध और बलूचिस्तान में औसत से पांच गुना वर्षा हुई। एक बार ज़मीन पर आने के
बाद इस पानी को जाने के लिए कोई जगह नहीं थी, सो इसने तबाही
मचा दी।
कुछ मौसम एजेंसियों ने ला-नीना जलवायु घटना की
भी भविष्यवाणी की थी जिसका सम्बंध भारत और पाकिस्तान में भारी मानसून से देखा गया
है। संभवत: ला-नीना प्रभाव इस वर्ष के अंत तक जारी रहेगा।
शायद मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग ने भी वर्षा को
तेज़ किया होगा। इस संदर्भ में 1986 से 2015 के बीच पाकिस्तान के तापमान में 0.3
डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की वृद्धि हुई है जो वैश्विक औसत से अधिक है।
तबाही को बढ़ाने में कमज़ोर चेतावनी प्रणाली, खराब आपदा प्रबंधन, राजनीतिक अस्थिरता और बेतरतीब
शहरी विकास सहित अन्य कारकों की भी भूमिका रही है। जल निकासी और जल भंडारण के
बुनियादी ढांचे की कमी के साथ-साथ बाढ़ संभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की
बड़ी संख्या भी एक गंभीर समस्या के रूप में उभरी है। (स्रोत फीचर्स)
No comments:
Post a Comment