मुन्ना : मेरा दोस्त
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
जब से जंगल कटने शुरू हुए, हमारी तो मुसीबत ही हो गई। जंगल में शिकार नहीं मिलता तो
बाघ और भेड़िए गाँव में घुस आते हैं। जो मिला, उसे ही मारकर खा जाते हैं। चाहे बछड़ा मिले चाहे भेड़-बकरी,
चाहे कुत्ता बिल्ली। हमारे गाँव में पिछले कई दिनों से कई
वारदात हो चुकी हैं। रात में चुपके से बाघ आया और गाय को मारकर खा गया। अगले दिन
हमारे पड़ोसी की गाय का बछड़ा मारकर खा गया। भेड़िए ने एक रात हमारे मालिक सरपंच के कुत्ते टोमी को ही निबटा
दिया। गाँववालों के मन में डर बैठ गया –ये बाघ और भेड़िए किसी दिन किसी आदमी को भी
मार डालेंगे।
सभी लोग यह समस्या लेकर सरपंच किशन लाल के पास आ गए। सब
अपनी –अपनी कह रहे थे– ‘इस बार बारिश नहीं हुई। सभी तालाब सूख गए हैं।’
सरपंच जी बोले–
‘तभी तो पानी की तलाश में भेड़िए और बाघ गाँव का रुख करने लगे हैं। जंगल भी लगातार
कट रहे हैं। छोटे-छोटे जंगली जानवरों का शिकार किया जा रहा है। ऐसे में बाघ और
भेड़िए कहाँ जाएँ?’
हरिया दुखी स्वर में बोला-‘बाघ ने मेरी तो गाय की बछिया
को ही मार दिया। कुछ उपाय सोचा जाए।’
चरणसिंह ने कहा-
‘रामकला लुहार से एक फंदा बनवा लेते हैं। जो बाघ या भेड़िया ऊधम मचा रहा है,
किसी तरह वह फँस जाए तो सब चैन से रहा सकेंगे।’
चरणसिंह की बात सबको ठीक लगी। रामकलालुहार ने कहा– ‘ऐसा
फंदा बना दूँगा कि बाघ हो चाहे भेड़िया पैर रखते ही फँस जाएगा। यह भी तय कर लिया
जाए कि इन्हें फँसाने के लिए क्या किया जाए? कोई भेड़ –बकरी फन्दे के पास बाँधनी पड़ेगी, तभी
तो बाघ वहाँ आएगा।’
‘बकरी मैं दे दूँगा’-सरपंच किशन लाल ने कहा।
मैं कुछ दूर खूँटे
से बँधी यह सब सुन रही थी। मेरे तो पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। मेरा सिर
चकराने लगा। मुझे सरपंच के ऊपर गुस्सा आने लगा। टोमी ने अपनी जान देकर मेरी जान
बचाई थी। वह ज़ोर-ज़ोर से भौंकता रहा था। किसी ने ध्यान ही नहीं दिया आख़िकार भेड़िए
ने उसी को अपना शिकार बना लिया।
मुन्ना भी चारपाई पर चुपचाप बैठा लोगों की बातें सुन रहा
था। वह बोल पड़ा- ‘मैं अपनी बकरी नहीं दूँगा। गाँव में कई लोगों के यहाँ कई-कई
बकरियाँ हैं। हम ही क्यों अपनी बकरी दें?’
उसे बीच में इस तरह बोलता देखकर किशनलाल ने डपटकर
कहा-‘बच्चे इस तरह बड़ों के बीच में नहीं बोलते।’
कई लोगों ने एक साथ मुड़कर मुन्ना की तरफ़ देखा।
वह सबकी तरफ़ घूर रहा था।
मुझे बहुत अच्छा
लगा –चलो कोई तो है जो मेरे बारे में सोचता है। मेरी जान में जान आई।
मुन्ना ज़िद्दी है;
वह मेरे लिए कुछ भी कर सकता है। हमारे परिवार में केवल तीन
प्राणी हैं– मेरी माँ,
मेरी बहिन छुटकी और
मैं। माँ को फन्दे के पास बाँधा जाएगा तो उसे बाघ या भेड़िया खा जाएगा। मेरी बहिन
छुटकी अभी घास बहुत कम खाती है। वह सुबह-शाम दूँध ज़रूर चूँघती है। माँ के बिना वह
पलभर नहीं रह सकती और दूध के बिना एक भी दिन नही।
अब केवल मैं बची थी। रमकलालुहार ने लोहे का फन्दा बना दिया।
गाँव के किनारे वाले रास्ते पर बाँधने के लिए मुझे ले गए। मुन्ना ने बहुत हाय-तौबा मचाई। बहुत रोया भी,
पर उसकी बात किसी ने नहीं सुनी। मुझे एक खूँटे से बाँध दिया
गया। मेरे सामने हरी-हरी पत्तियाँ डाल दी
ईं। एक तसले में मेरे पीने के लिए पानी भी रख दिया गया। जिन पत्तियों को मैं चाव
से चपर-चपर करके खा जाती थी,
वे मुझे आज अच्छी
नहीं लग रही थी। गला सूखने पर थोड़ा –सा पानी ज़रूर पिया।
रात हो चली थी। जो
भी उधर से गुज़रता,
वही बोलता –सरपंच
की यह बकरी तो गई जान से। बाघ इसे चट कर जाएगा। चारों तरफ़ सन्नाटा छाने लगा। मेरे
तो होश ही उड़ गए। मुझे माँ की याद आने लगी। छोटी बहिन छुटकी मेरे साथ दिनभर कुदकती
रहती थी। अब क्या होगा? जंगल से तरह –तरह की आवाज़ें आ रही थीं। डर के मारे मेरी
टाँगे काँपने लगीं। मिमियाकर रोने का मन कर रहा था, लेकिन
मैं डर के मारे चुप थी। कहीं मेरी आवाज़ सुनकर ही बाघ न आ जाए। तभी पत्तों पर किसी
के चलने की आवाज़ आई। मेरी तो साँस ही अटक गई। अरे यह तो उछ्लू खरगोश है। मुझे बँधा
हुआ देखकर वह बिदककर भाग गया। बहुत दूर सियारों के हुआँ-हुआँ करने की वाज़ आने लगी।
डर के कारण मैं बैठ गई।
रात और गहरी हो गई
थी। मुझे लग रहा था कि बाघ अब आया तब आया। मुझे किसी के धीरे –धीरे चलने की आहट
महसूस हुई। बस अब मेरे प्राण गए। मैंने डर के मारे आँखें बन्द कर लीं। लगा कि बाघ
या भेड़िया अब मुझे दबोचने ही वाला है। किसी ने मेरे गले पर हाथ रखा। मैं डर के
मारे काँप रही थी। पर यह हाथ तो बहुत मुलायम है- मुन्ना के हाथ जैसा। हाँ यह
मुन्ना ही था। वह मेरे गले की रस्सी खोलकर
फुसफुसाया–“जा, घर भाग जा।”
मैंने पीछे मुड़कर
नहीं देखा। मैं ताबड़तोड़ घर की ओर दौड़ी। मेरी माँ मेरे बिना ज़ोर –ज़ोर से मिमिया रही
थी। मुझे वापस आया देखकर छुटकी उछलने लगी। मुझे आज पता चला कि मुन्ना मुझसे कितना
प्यार करता है।
अगले दिन पता
चला-तसले में रखा पानी पीने के चक्कर में एक भेड़िया उस फन्दे में फँस गया है। गाँव
वालों ने उसे वन –विभाग को सौंप दिया।
ई-मेल-rdkamboj@gmail.com
1 comment:
बहुत अच्छा लिखा; हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ।
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