- विजय जोशी
जीवन
में प्रेरणा हर एक से ली जा सकती हैं, बशर्ते आप खुले मन
मस्तिष्क से उसका स्वागत कर सकें। ऊँच - नीच, श्रेष्ठ - कनिष्ठ, गरीब - अमीर के मकड़जाल में उलझे हम
भ्रम के चश्मे से संसार देखने के आदी हो जाते हैं। हर व्यक्ति हर काम में निपुण हो
यह संभव नहीं। हर एक अपनी विशेषता का धारक और वाहक होता है और हमारा भला भी इसी
में है कि व्यक्ति की विशेषताओं का आदर करते हुए उनको अपने व्यक्तित्व में
अपनाएँ। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि आपका व्यक्तित्व बहुआयामी हो जाता है।
इसका
प्रत्यक्ष साक्षात्कार तो मुझे अपने सेवाकाल के दौरान हुआ। मेरा तत्कालीन नया
विभाग अनेक जगहों पर विस्तार लिये हुए था। विभाग के कामोबेश हर आदमी से मिलना मेरी
आदत रही है ; लेकिन व्यस्तता के मद्देनजर
यह तत्काल संभव नहीं पाया। शनैः- शनैः लोग भी खुद आकर अपना
परिचय देते रहे, लेकिन एक व्यस्ततम उपविभाग के प्रमुख कभी नहीं आए।
थोड़े अंतराल के बाद जब अधिक कार्यभार से लदे ; लेकिन बहुत सुंदर तरीके से प्रबंधित उनके कार्यस्थल मैं खुद
पहुँचा, तो देखा कि उसे कोई अधिकारी
नहीं : अपितु एक फोरमेन जो उस समय भी व्यस्त थे, अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे।
मुझे आश्चर्य भी हुआ और पूछा - सब लोगों से मिलना हुआ, लेकिन आप से नहीं। मैं न
सही आप भी एक बार आ तो सकते थे।
और उनका उत्तर अद्भुत था - मेरे लिये जीवन का दूसरा नाम काम है और काम छोड़कर फुर्सत
मिलती, तो ही आ पाता। वैसे भी बगैर काम के मिलकर क्या करता।
बात बहुत गहरी थी। मेरा राग दरबारी संस्कृति से बिलकुल
निरपेक्ष एक ऐसे आदमी से साक्षात्कार हुआ, जो काम का पूरक नहीं, अपितु पर्याय था।
आगे की बात बहुत संक्षिप्त
है। जरूरी कागजी डिग्री
के अभाव में नियम कानून से परे जाकर वे यानी श्री राम बरन सिंह
भदौरिया पहले प्रयास में ही फोरमेन से अधिकारी बने, जो लगभग असंभव था। उनका ध्येय के प्रति अद्भुत समर्पण मुझे आज तक
छूता और प्रेरणा देता है।
आदमी ऊपरी आवरण, चमक- दमक और ताम- झाम से नहीं अपितु कार्य
के प्रति समर्पण से ऊपर उठता हैं। कर्तव्य के प्रति सच्चाई आपके चरित्र को न केवल
ऊॅचाई देती हैं, अपितु गहन आत्मसंतोष भी। उपरी चमक तो धोखा है। किसी भी भवन
के मेहराब सुंदर तो हो सकते हैं, लेकिन स्थायी
नहीं, जबकि नीव के पत्थर उबड़ - खाबड़ होने के बावजूद जमीनी सच्चाई से वाकिफ़ और अपने दम पर दूसरों का भार उठाने की क्षमता
रखते हुए अपनी जगह पर कायम रहते हैं।
यही है जीवन का वह समग्र सत्य जिसे यदि एक बार आपने समझकर चरित्र में अंगीकार कर लिया और आपके सामने उपलब्धियों के असीमित अवसर और ऊँचाई दोनों है बशर्ते आपका समर्पण कार्य के प्रति हो न कि अवसरवादित या इंसान के प्रति।
यही है जीवन का वह समग्र सत्य जिसे यदि एक बार आपने समझकर चरित्र में अंगीकार कर लिया और आपके सामने उपलब्धियों के असीमित अवसर और ऊँचाई दोनों है बशर्ते आपका समर्पण कार्य के प्रति हो न कि अवसरवादित या इंसान के प्रति।
सम्पर्कः 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो. 09826042641,
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