1
तुम्हारी याद
- प्राण शर्मा
तुम्हारी याद ही तुमसे भली
है,
जो गम
में साथ देने आ गयी है।
भला
क्यों ना सराहूँ संग तेरा,
कि
तुझमें ताज़गी ही ताज़गी है।
कभी तो
डाल दे
तू आके डेरा,
बड़ी
सुनसान-सी दिल की गली है।
कोई करता नहीं दु:ख-सुख की बातें,
जिधर
देखो उधर सौदागरी है।
ह्रदय
में आस है मिलने की बाक़ी,
अभी इस
घर में कुछ-कुछ रोशनी है।
मुझे
अच्छा लगे क्योंकर न यारो,
लड़कपन
का मज़ा कुछ और ही है।
ग़ज़ल
कहता हूँ तेरा ध्यान करके,
यही ए 'प्राण’ अपनी आरती है।
2
ग़मों की उम्र
कहीं टूटे
नहीं कोमल बड़ी है,
वफ़ा के
मोतियों की जो लड़ी है।
ज़रा
तकलीफ फरमाओ तो जानें,
हमारी
जान होंठों पर अड़ी है।
यही
समझा, यही जाना है हमने,
ग़मों
की उम्र खुशियों से बड़ी है।
ज़रा
देखो मजाज़ उसका अनोखा,
खुशी
चौखट पे ही मेरी खड़ी है।
कहीं
तो मिल ही जाएगा ठिकाना,
अभी
इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है।
सँभाले
रखना उसको पास अपने,
शराफ़त
'प्राण’
दौलत
से बड़ी है।
संपर्क: 3, CRAKSTON CLOSE , COVENTRY CV25EB, U.K
Email- sharmapran4@gmail.com
2 comments:
प्राण जी के लेखन की यही खासियत है कि हर शेर मे प्राण फ़ूँक देते हैं ………लाजवाब गज़लें।
as usual, both ghajals are greatfrom agreat shyar.i am short of adjectives.
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