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Jun 1, 2023

व्यंग्यः कमाल का आदमी

  - गिरीश पंकज 

वन्स अपॉन ए टाइम, किसी प्रदेश की किसी राजधानी में एक मज़ेदार आदमी रहता था। लोग उसे कहते थे कि वो कमाल का आदमी है।

वैसे आदमी तो वो ‘कमला’ का था  लेकिन अकसर कमाल करता रहता था इसलिए लोग कहते थे ‘कमाल का आदमी है’। यानी रामलुभाया। 

उनकी सुबह किसी मंत्री की चौखट से शुरू होती और शाम किसी अफसर की चौखट पर दम तोड़ती। 

अपने देश के  हर शहर में अनेक रामलुभाया मिल जाते है। जो दिन भर मिठाई के डब्बे और बुके या गिफ्ट देने के पुनीत-कार्य में युद्धस्तर पर लगे रहते हैं। ये लोग किसी को बुके थमा देंगे, किसी को काजू कतली वाला डब्बा भेंट करके आ जाएँगे।

 लोग भी सोचते है कि आखिर ये करता क्या है? किस तरह का ‘आइटम सांग’ है? राइट है या राँग है?  जिस मंत्री- अफसर को ये सज्जन काजू कतली या काजू- किशमिश के डब्बे भेंट करते हैं, वे भी यकबयक समझ नहीं पाते कि सामने वाले के मन में क्या चल रहा है। इसकी ‘पॉलीट्रिक्स’ क्या है, ये बिंदास बंदा चाहता क्या है? इस दुनिया में लोग बिना किसी स्वार्थ के कटे पर भी  लघु- शंका नहीं करते और ये पट्ठा दो- तीन सौ रुपये का बुके ले कर आ रहा है, साथ में पाँच सौ रुपये वाली मिठाई गिफ्ट कर रहा है। 

चक्कर क्या है,....?

लफड़ा क्या है..... ?

इसके दिल में किस काम को सुलटाने की पृष्ठभूमि तैयार हो कर बैठी है... ? 

रामलुभाया उस दिन एक मंत्री जी के घर बुके ले कर पधारे। 

मंत्री जी पहले भी इनसे बुके लेते रहे हैं इसलिए रामलुभाया को देख कर फौरन हाथ आगे बढ़ा कर बुके स्वीकार किया, फिर मिठाई का डब्बा भी ले लिया। और बत्तीसी दिखने लगे। कुछ देर तक घूरने के बाद रामलुभाया को बैठने के लिए कहा और फोन उठा कर अपने सेवक को आदेश दिया, ‘नाश्ता तो लगा दो।’ 

सेवक थोड़ी देर बाद चना- मुर्रा और मिर्ची-प्याज के साथ हाजिर हो गया। मंत्री जी का प्रिय नाश्ता।

 यह देख कर मंत्री जी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘अरे रामू, ये अपने गाँव के मतदाता-मेहमान नहीं है, जो तुम चना-मुर्रा में निबटा रहे हो? कमाल करते हो भाई। अरे, ये शहरी सेठ लोग हैं। काजू- किशमिश खाते है। जाओ बढ़िया नाश्ता ले आओ। और हाँ, मिठाई के इस डब्बे का भी पूरा उपयोग कर लेना।’ 

रामू ने बाद सेठीय- नाश्ता परोस दिया, रामलुभाया धन्य हो गए मंत्री जी ने पूछा- ‘और सब ठीक है?’

 रामलुभाया अपने शरीर को विनम्रता के साथ हिलाते हुए कहा, ‘ सब आपकी कृपा है।’ 

‘बाल -बच्चे राजी-खुशी से हैं?’ मंत्री ने फिर पूछा तो रामलुभाया ने फिर वही दुहराया, ‘सब आपकी कृपा है?’ 

राम लुभाया अपने काम की बात बोल ही नहीं रहे थे। मंत्री जी भी जान रहे थे कि ये पट्ठा अभी कुछ नहीं बोलेगा. जब जाने लगेगा, तब धीरे -से अपनी बात रखेगा। ये बुके-मिठाई और गिफ्ट देने वाले बड़े कलाकार होते हैं, सीधे- सीधे मुद्दे पर नहीं आते। सीधे-सीधे तो मूरख किस्म का आम आदमी आता है. न ससुरा बुके देता है, और न मिठाई, और कहता है मेरा ये काम है, हो जाना चाहिए।’ ऐसे लोगों का काम- काम ही रह जाता है और खास लोगो का काम दन्न से हो जाता है। 

तो रामलुभाया कुछ बोल ही नहीं रहे थे, और मंत्री जी मन -ही -मन मज़े ले रहे थे।

 मंत्री जी बोले, ‘मौसम कैसे पल-पल रंग बदल रहा है।’ 

रामलुभाया  ने स्वर से स्वर मिलाया, ‘जी, पल-पल बदल रहा है। क्या कीजिएगा.’  

मंत्री ने फिर रामलुभाया को पलटी मारने के लिए मज़बूर किया, ‘वैसे इस बार मौसम का रुख पहले से तो बेहतर है, क्यों?’ 

रामलुभाया ने छूटते ही कहा, ‘सही फरमा रहे हैं आप, पहले से काफी बेहतर हो गया है।’ 


रामलुभाया की बातें सुनकर मंत्री जी हँस पड़े ‘बड़े ही मजेदार आदमी हैं? और ये बुके कहाँ से बनवाते है आप? देख कर तबीयत खुश हो जाती है। हमारी पत्नी निहारती रहती है इसको, और मिठाई तो बहुतई लाज़वाब होती है।  हमारा टॉमी लपककर खाता है। माँ क़सम, उसे बड़ी प्रिय लगती  हैं।’ 

रामलुभाया को कुछ समय तक समझ नहीं आया कि टॉमी कौन? कुत्ता या इनका नौकर? वैसे अक्सर कुत्ते को ही टॉमी कहते हैं, मगर मंत्री के यहाँ पता नहीं किसको कहते हैं। 

रामलुभाया को बाद में जैसे ही समझ में आया कि उन्हें निबटाने में लगे हैं, तो जेब से एक लिफाफा निकाला और बोले, ‘इसे देख लीजिएगा . अब चलता हूँ। कुछ और लोगों से मिलना है।’

मंत्री जी मुस्कराते रहे और कमला के कमाल- पति ने फिर पलटकर नहीं देखा।

सम्पर्कः सेक़्टर -3, एचआईजी - 2/ 2 ,  दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010, मोबाइल : 87709 69574

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