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Jun 1, 2022

प्रदूषणः प्लास्टिक का विकल्प खोजना होगा

 - अली खान

मौजूदा वक्त में सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा है। आज यह जलवायु परिवर्तन की बहुत बड़ी वजह बन रहा है। इसी के मद्देनज़र सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर 1 जुलाई 2022 से देश भर में प्रतिबंध लगने जा रहा है। लेकिन, सबसे बड़ी चुनौती तो प्लास्टिक के विकल्प तलाशने को लेकर है।

इस संदर्भ में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की स्टेट ऑफ इंडियाज़ एन्वायरमेंट रिपोर्ट 2022 ने चौंकाने वाले तथ्य प्रस्तुत किए हैं। प्लास्टिक पर निर्भरता को देखते हुए यह प्रतिबंध लगाना इतना आसान नहीं होगा। वह भी तब जब इसका कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं खोजा जा सका है। रिपोर्ट में रोज़ाना निकलने वाले प्लास्टिक कचरे के आंकड़े शहरों की प्लास्टिक-निर्भरता को बखूबी बयां करते हैं। महानगरों की स्थिति तो और भी खराब है। भारत में रोज़ाना 25 हज़ार 950 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। वायु प्रदूषण के साथ-साथ दिल्ली इस मामले में भी पहले नंबर पर है जहाँ रोजाना 689.8 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। कोलकाता (429.5 टन प्रतिदिन) दूसरे और चेन्नई (429.4 टन प्रतिदिन) तीसरे नंबर पर है।

रिपोर्ट बताती है कि देश में पिछले तीन दशकों के दौरान प्लास्टिक के उपयोग में 20 गुना बढ़ोतरी हुई है। चिंता की बात यह है कि इसका 60 फीसदी हिस्सा सिंगल यूज़ प्लास्टिक का है। सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1990 में प्लास्टिक का उपयोग करीब नौ लाख टन था और वर्ष 2018-19 तक बढ़कर 1.80 करोड़ टन से ज़्यादा हो गया। यही नहीं, सिंगल यूज़ प्लास्टिक का 60 फीसदी हिस्सा यानी लगभग 1.10 करोड़ टन अलग-अलग पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जाता है। लगभग 30 लाख टन प्लास्टिक अन्य कार्यों में उपयोग होता है। 75 लाख टन से अधिक प्लास्टिक अलग-अलग तरह की परेशानी पैदा करता है।

लिहाज़ा, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को पूरी तरह से रोकना होगा। और सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए इसका विकल्प खोजा जाना निहायत ज़रूरी है।

आँकड़े बताते हैं कि भारत में हर व्यक्ति प्रति वर्ष औसत 11 किलोग्राम प्लास्टिक वस्तुओं का इस्तेमाल करता है। विश्व के लिए यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 28 किलोग्राम प्रति वर्ष है। देखा जाए तो आजकल लोग अपनी सहूलियत के तौर पर प्लास्टिक का अधिक से अधिक इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, एक प्लास्टिक बैग अपने वज़न से कई गुना अधिक वज़न उठाने में सक्षम होता है। इसी वजह से लोग कपड़े और जूट के थैले की बजाय प्लास्टिक थैली को तरजीह देते हैं।

लेकिन, हमें यह समझना होगा कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल हमारे स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित करता है। दरअसल, इससे ज़हरीले पदार्थ निकलते हैं, जो मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। साथ ही, प्लास्टिक का इस्तेमाल जीव-जंतुओं के जीवन को भी खासा प्रभावित करता है। युनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के कारण लगभग 10 करोड़ समुद्री जीव-जंतु प्रति वर्ष असमय काल के गाल में समा जाते हैं। यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर प्लास्टिक जीव-जंतुओं के जीवन को किस प्रकार प्रभावित करता है? बता दें कि प्लास्टिक की ज़्यादातर वस्तुएँ एक बार उपयोग में लेने के बाद खुले में फेंक दी जाती हैं। ये इधर-उधर जमा होती रहती हैं और जब बारिश होती है तो ये पानी के बहाव के संग नदी-नालों से होकर समुद्र में चली जाती हैं। प्लास्टिक की वस्तुएँ वर्षों तक समुद्र में पड़ी रहती हैं। इनसे धीरे-धीरे ज़हरीले पदार्थ निकलना शुरू हो जाते हैं जो जल को दूषित करते हैं। शोध से सामने आया है कि कई बार समुद्री जीव प्लास्टिक को भोजन समझकर निगल लेते हैं। यह प्लास्टिक उनकी सांस नली या फेफड़ों में फंस जाता है और वे बैमौत मारे जाते हैं।

आज यह सर्वविदित है कि प्लास्टिक प्रदूषण ने धरती की सेहत को बिगाड़ने का काम किया है। प्लास्टिक को पूरी तरह खत्म करना तो संभव नहीं है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि इसके उपयोग को कम से कम किया जाए। साथ ही सरकारों को भी प्लास्टिक के विकल्प अतिशीघ्र तलाशने होंगे, ताकि प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम किया जा सके। इसके अलावा, समूचे देश में एक ऐसी मुहिम चलाने की आवश्यकता है जो प्लास्टिक, और खासकर सिंगल यूज़ प्लास्टिक, के खतरों के प्रति आम लोगों में जागरूकता और चेतना पैदा कर सके। लोगों की व्यापक भागीदारी के बगैर प्लास्टिक प्रदूषण पर कारगर नियंत्रण संभव नहीं है। (स्रोत फीचर्स)

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