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Jun 6, 2020

जसवीर त्यागी की दो कविताएँ

जसवीर त्यागी की दो कविताएँ
1. शहतूत

पेड़ से टूटकर
जमीन पर गिर रहे हैं
लंबे-लंबेमीठे-मीठे शहतूत

शहतूत के मासूम पेड़ को
क्या पता
कोरोना से मर रहे हैं लोग
और इन दिनों घर से बाहर निकलने की मनाही है

शहतूत के पेड़ पर चढ़कर 
मस्ती करते हुए 
ऊँची से ऊँची टहनी से शहतूत तोड़ने वाले नटखट बालक 
नदारद हैं आजकल

सम्भव है 
शहतूत का उदास खड़ा हुआ पेड़
राह तकता हो
उन बालकों की
जो अपनी झोली में
भर लेते थे रसीले शहतूत

रोज गिर रहे हैं 
टूट-टूटकर शहतूत जमीन पर

रसीले शहतूत
जमीन पर गिरकर
धब्बों में तब्दील हो रहे हैं

दूर से देखने पर लगता है
वे शहतूत के निशान नहीं 

पृथ्वी के गाल पर
शहतूत के पेड़ के
आँसुओं की छाप है ।

2. भूख और गरीबी

कोरोना के चलते
घर में ही रहने का 
सरकारी आदेश हुआ है
बाहर जाने पर पाबंदी है

फिर भी
सत्रह-अठारह साल का एक लड़का
गली-गली घूमकर
बेच रहा है आलू-प्याज
और दूसरी कई सब्जियाँ

सब्जी खरीदती महिला ने
जब पूछा उससे-

"तुम घर से बाहर
आ-जा रहे हो
घूम रहे हो गली-गली

कुछ हो गया तो
मरने से डरते नहीं ?"

लड़के ने आलू उठाते हुए
तौलकर दिया जवाब

"पिताजी नहीं है मेरे
माँ तथा तीन छोटे भाई-बहन हैं 

आंटी कोरोना से तो 
बच भी सकता हूँ 

भूख और गरीबी से
कैसे बच पाऊँगा?

आप ही बताइये।"
        
         *

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1 comment:

Latika said...

बहुत अच्छी कविताएँ!👌👌