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Apr 1, 2023

18 अप्रैल- विश्व विरासत दिवसः भव्य इतिहास समेटे डीपाडीह का पुरातत्व

  -  डॉ. रत्ना वर्मा

प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध डीपाडीह छत्तीसगढ़ के सरगुजा सम्भाग के बलरामपुर जिले का महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल, है जो अंबिकापुर से 73  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सरगुजा जिले में सरगुजा का 50 फीसदी हिस्सा जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है, यहाँ के जंगलों में सरना  के पेड़ बहुतायत से पाए जाते हैं। 

रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों में भी सरगुजा का उल्लेख है। दक्षिण कौशल का ये भूभाग पाटलीपूत्र से जगन्नाथपुरी तक जाने का मुख्य मार्ग था। पुराणों के अनुसार यह प्रमाण भी मिलता है कि भगवान राम ने अपने 14 सालों के वनवास का कुछ समय सरगुजा में भी बिताया था।

 सन्‌ 1988 में डीपाडीह के बारे में अध्ययन के लिए जब पुरातत्व विभाग पहुँचा तो डीपाडीह के पहाड़ी टीले में नंदी की एक भव्य मूर्ति (जो छत्तीसगढ़ के अब तक ज्ञात प्रतिमाओं में विशालतम है) तथा सामंत राजा की एक मूर्ति दिखाई दे रही थी। जैसे- जैसे खुदाई का काम आगे बढ़ते गया डीपाडीह का भव्य इतिहास भी सामने आता गया। यहाँ कई मंदिरों के खंडित अवशेष प्राप्त हुए हैं जो प्राचीन इतिहास की कहानी कहते हैं। पुरातात्त्विक प्रमाणों के आधार पर डीपाडीह का सांस्कृतिक वैभव 7-8 वीं से 12-13 वीं सदी ईसवी का माना जाता है जहाँ शैव एवं शाक्य संप्रदाय के पुरातात्त्विक अवशेष बिखरे हुए हैं। खुदाई में अनेक शिवलिंग, नदी तथा देवी दुर्गा की कलात्मक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

 लगभग 6 किलोमीटर के दायरे में प्राचीन भग्न मंदिरों के अवशेष टीलों के रूप में यत्र- तत्र बिखरे हुए हैं। लगभग 30 मंदिरों के ध्वंसावशेष, शैव, सौर, वैष्णव, तथा शाक्य धर्म से सम्बंधित अवशेष, मानवाकार विशाल मूर्तियाँ- श्री गणेश, शिव, विष्णु, महिसासुरमर्दिनी, देवी गंगा, यमुना, सूर्य, भेरव, ब्रम्हा, कार्तिकेय, नृसिंह, सामत राजा, सिंह, कुबेर, मिथुन इत्यादि मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं । यहाँ का द्वारशाखा, अति विशिष्ट है इसके सिरदल में गजलक्ष्मी का अंकन है। इस क्षेत्र के दर्शनीय स्थालों में प्रमुख रूप से सामत झरना, रानी पोखर, चामुण्डा मंदिर, पंचायतन मंदिर है।

खुदाई के दौरान प्राप्त अनेक मंदिरों में  अधिकांश शिव मंदिर है। सामत झरना का शिव मंदिर इन मंदिरों में सबसे बड़ा एवं भव्य है। शाक्ये एवं शैव समुदाय के भी पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों में महिषासुर मर्दिनी, शिवलिंग, उमामहेश्ववर, एवं भैरव की रुद्र प्रतिमाएँ शामिल हैं। ब्रह्मा जी की एक मूर्ति भी प्राप्त हुई है, जिसकी दाढ़ी मूँछ नहीं है। इस पहाड़ में एक प्राचीन अभिलेख भी प्राप्त हुआ है, जिस पर नागरी लिपि में "ओम नमो विश्कपर्माय' अंकित है।

 प्राप्त साक्ष्य के आधार पर डीपाडीह प्राचीन काल में भगवान शिव के आराधना का एक बड़ा केन्द्र रहा होगा। खुदाई में प्राप्त विभिन्न देवताओं की प्रतिमाओँ से यह भी पता चलता है कि कलचुरी और सामंती राजा भगवान शिव के बहुत बड़े उपासक थे।

लगभग एक दशक की खुदाई के बाद खुदाई  के दौरान मिले अवशेषों  के आधार पर  पुरातत्वविदों ने इन्हें चार समूहों में बांट दिया है- 

1. सामंत सरना , 2.बीरजा टीला, 3. रानी पोखर मंदिर , 4. उरांव टोला मंदिर

इनमें सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण समूह है सामंत सरना है। इस समूह में एक विशाल  शिवमंदिर, चामुंडा मंदिर और छोटे बड़े आकार के अनेक मंदिर स्थित हैं। प्रमुख शिव मंदिर के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल और मंदिर के चारों कोनो में चार अलग- अलग देवता विराजमान हैं। मंदिर के द्वार पर गंगा और यमुना नदी देवियाँ खड़ी है। मंदिर में मंडप के एक कोने में मोर की सवारी करते कार्तिकेय, दूसरी तरफ गणेश, तीसरी तरफ सोलह भुजी विष्णु की मुर्ति और चौथी तरफ महिषासुरमर्दिनी माँ नवदुर्गा की प्रतिमा स्थित है। भगवान शिव के इस विशाल मंदिर के पास ही वर्गाकार चबूतरे पर चामुण्डा मंदिर के भग्न अवशेष मिले हैं।

प्राचीन मंदिरों का दूसरा समूह बीरजा टीला के नाम से जाना जाता है इस समूह में सूर्य देवता को प्रमुख माना गया है। इस मंदिर के पास ही तत्कालीन आवासीय मठों के अवशेष भी मौजूद है। 

तीसरे समूह के रुप में रानी पोखर मंदिर समूह है। यहाँ चार मंदिर थे। लेकिन अब वहाँ सिर्फ चबूतरे ही शेष रह गये हैं। 

 चौथे समूह में उराँव टोला मंदिर आता है जिसका निर्माण 8वीं सदी का माना जाता है। यहाँ के स्तंभों में देव प्रतिमाएँ मिथुन युगल मूर्तियाँ और नायिकाओं की मूर्तियाँ अंकित है।

सोमवंशी, बंगाल और मगध के पालवंशी राजाओं के अलावा त्रिपुरी के कलचुरी राजाओं के बनवाए गए अवशेषों की भी इस जगह पर भरमार है। माना जाता है कि प्राचीन काल में इन मूर्तियों का निर्माण भी यही पर होता था। इस क्षेत्र की खुदाई में प्राप्त अनेक मूर्तियों को सहेजकर मूर्तिशाला में रखा गया है जिनमें भैरव, ब्रह्मा, कालमहेश्वर, गणेश, सूर्य और चामुंडा आदि देवी देवता शामिल हैं।

क्षेत्रीय किंवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम का भव्य महल था जहाँ रात-दिन अखण्ड रूप से एक विशाल दीपक जलता रहता था। इसका कारण इसका नाम दीपा पड़ा तथा बाद में इसका नाम डीपाडीह हो गया। एक दूसरी किंवदंती के अनुसार यहाँ टांगीनाथ और सामत राजा के बीच युद्ध हुआ था जिसमें राजा के वीरगति  प्राप्त होने के बाद उसकी रानियों ने बावड़ी में कूदकर प्राण त्याग दिए थे। 

 पुरातात्विक पर्यटन स्थलों को देखने में रुचि रखने वालों के लिए छत्तीसगढ़ से अच्छा और कोई स्थान हो ही नहीं सकता।  अनेक महत्त्वपूर्ण पुरातन क्षेत्रों के साथ डीपाडीह के प्राचीन मंदिर को देखने के लिए एक बार अवश्य जाना चाहिए। यहाँ पर आपको  मंदिरों के इतने अधिक अवशेष देखने को मिलेंगे कि उस काल के कारीगरों की कला की दाद दिए बगैर आप नहीं रह सरते। यहाँ मंदिरों के अवशेष 5 किमी. के क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। जो एक खुले मैदान में संग्रहालय की तरह है। तो एक बार छत्तीसगढ़ अवश्य आइए और मंदिरों की इस पुरातन नगरी डीपाडीह की भव्यता को निहारते हुए सरगुजा के जंगल और पहाड़ों का आनंद लीजिए। 

1 comment:

Anonymous said...

डीपाडीह मंदिरों की जानकारी देता तथा उत्सुकता जगाता उम्दा आलेख। सुदर्शन रत्नाकर