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Feb 10, 2015

लघुकथाएँः


अमंगल
जनवरी की ठिठुरती ठंड में दो दिन से रुक- रुक कर कुत्ते के रोने की आवाज सुनाई पड़ रही थी। जिस घर के दर के पास जाकर कुत्ता रोने लगता, घर का मालिक डंडा दिखाकर उसे वहाँ से भगा देता। कुत्ते का रोना पूरी गली में चर्चा का विषय बन गया था।
एक ने कहा, 'कुत्ते का रोना अशुभ संकेत है। बाईस नंबर वालों के यहाँ रामेश्वर जी बीमार हैं, कहीं?'
दूसरे ने पहले की बात का समर्थन करते हुए कहा, 'सुना है कुत्ते को यम के दूत दिखाई दे जाते हैं। राम भला करे!'
तीसरे ने कहा, 'कल गली के नुक्कड़ पर कार और स्कूटर का एक्सीडेंट हुआ था। स्कूटर वाले लड़के को बहुत चोट लगी थी। भगवान उसकी रक्षा करे!'
चौथा कहाँ चुप रहने वाला था, तुरंत बोला, 'लगता है किसी आदमी की आत्मा इसमें प्रवेश कर गई है। तभी तो यह आदमी की तरह रो रहा है।'
पाँचवाँ जो चुपचाप सबकी बातें सुन रहा था, क्षोभ से भरकर बोला, 'वह कुत्ता अब मेरे घर में है। उसके पाँव में काँच का टुकड़ा गड़ा हुआ था, जिससे उसे बहुत कष्ट हो रहा था। किसी ने भी उसके दर्द को समझने की कोशिश नहीं की। सभी उसके रोने को अपशकुन समझ कर उसे भगाते रहे।'

बीस जोड़ी आँखें

'रीमा, तुम्हारी सहेली पूजा का फोन था। आज उनके यहाँ किटी-पार्टी है। तुम जरूर जाना। थोड़ा माहौल बदलेगा तो मूड ठीक हो जाएगा।' सुकेश ने ऑफिस जाते हुए पत्नी से कहा।
पिछले दिनों हृदयगति रुक जाने से रीमा के पिता जी का देहांत हो गया था। बहुत समझाने के बावजूद भी वह इस सदमे से उबर नहीं पा रही थी।
जैसे ही रीमा किटी पार्टी में पहुँची, बीस जोड़ी आँखें उसे घूरने लगीं। वहाँ आई औरतों के बीच खुसुर- फुसुर होने लगी। कुछ वाक्य रीमा के कानों में पिघले शीशे की तरह पड़े।
'ऐसी भी क्या जल्दी थी किटी में आने की। बाप को मरे सवा महीना भी नहीं हुआ।'
'देख तो, माथे पर बिंदिया सजा कर आई है!'
'हमें तो इसके यहाँ शोक प्रकट करने जाना था। अब कैसा शोक? यह महारानी तो यहाँ ही आई हुई है।'
'चलो अच्छा है, हम सहानुभूति के दो शब्द कहकर औपचारिकता यहीं पूरी कर लेते हैं। इतनी दूर इनके घर कहाँ जाएँगे।'
एक के बाद एक संवाद रीमा के कानों तक पहुँच रहे थे। उसकी डबडबाई आँखें वहाँ सच्ची सहानुभूति खोज रही थीं।

मिसाल

'रामदीन, एक साथ बीस हजार रुपए निकलवा रहे हो, क्या करोगे? बैंक कर्मी ने पैसे निकलवाने आए चपरासी से पूछा।
'बहुत दिनों से मन में इच्छा थी, स्कूल में वाटर- कूलर लगवाना है।'
'स्कूल में वाटर- कूलर! क्यों? अब तुम रिटायर हो गए हो। तुम्हारे अकाऊंट में बस पचास हजार रुपये ही जमा हैं। कभी भी हारी- बीमारी में जरूरत पड़ सकती है।' बैंक कर्मी ने पड़ोसी होने के नाते उसे समझाया।
'हाँ सब जानता हूँ। इतने साल स्कूल में नौकरी की है। प्रिंसिपल और अध्यापकों के लिए आधा किलोमीटर दूर अस्पताल में लगे वाटर- कूलर से फील्टर का ठंडा पानी लाता रहा। बच्चे बेचारे काई लगी पुरानी टंकी से गर्म पानी पीते हैं। मैंने मन में ठान रखा था कि रिटायरमेंट पर जो पैसै मिलेंगे, उससे स्कूल में बच्चों के लिए वाटर- कूलर जरूर लगवाना है।' रामदीन का चेहरा दमक रहा था।
सम्पर्कः  मेजर हाउस-17, सैक्टर-20, हुड्डा, सिरसा (हरियाणा)-125055, मो. 9416847107

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