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Oct 3, 2018

उदंती.com अक्टूबर 2018

 उदंती.com  अक्टूबर 2018
चित्र- विकल्प कुमार
पहले आपको खुद बदलना पड़ेगा जैसा कि आप दुनिया को देखना चाहते हैं 
            – महात्मा गाँधी

नैतिकता का पतन...

नैतिकता का पतन...
       -डॉ. रत्ना वर्मा        
भारत का उल्लेख हमेशा ही यहाँ की सभ्यता- संस्कृति, शिक्षा और संस्कारों के लिए किया जाता है; परंतु वर्तमान में जिस प्रकार की घटनाएँ रोज़- रोज़ सुनने और पढ़ने को मिल रहीं हैं, उसके बाद हम एक संस्कारवान् देश के नागरिक हैं, कहते हुए शर्म आने लगी है। नारी को देवी के रूप में पूजने की जिस देश की परम्परा रही हो, उस देश में महिलाओं खासकर छोटी- छोटी बच्चियों के साथ लगातार हो रहे अत्याचार ने यह सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि हैवानियत का यह बीज आखिर कैसे इतना फल-फूल रहा है। ऐसे कौन से सामाजिक, आर्थिक कारक हैं कि व्यक्ति काज़मीर इतना नीचे गिर जाता है कि वह इंसान नहीं रह जाता; हैवान बन जाता है। आखिर इस नैतिक पतन के कौन से कारक है
एक घटना की आग अभी बुझ भी नहीं पाती कि हमें शर्मसार करने के लिए दूसरी  घटना फिर सामने घट जाती है। हाल ही में दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती 11 साल की लड़की के साथ वहीं, के सफाई कर्मी द्वारा बलात्कार की घटना ने फिर से कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि इस तरह की घटना को अंजाम देने वाले को कानून का खौफ़तो बिल्कुल भी नहीं है, तो फिर ऐसे लोगों के अंदर कौन-सी मानसिकता काम करती है कि उन्हें अपने पकड़े जाने का ज़रा भी भय नहीं होता।
छोटी बच्चियों के साथ की जा रही ज्यादतियों में ज्यादातर यह पाया गया है कि आरोपी उनकी जान- पहचान का या करीबी रिश्तेदार ही होता है। ऐसे लोगों की उम्र अलग-अलग होती है। वह युवा, अधेड़, बुजुर्ग कोई भी हो सकता है। हाँ हाल ही की घटनाओं में यह भी पाया गया कि स्कूल के 12-13 साल के लड़के अपनी ही स्कूल की छोटी लड़कियों से जबरदस्ती करने लगे हैं।
अफ़सोस तो इस बात का है कि कानून में हो रहे लगातार बदलाव और इस तरह की घटनाओं पर जल्दी फैसला सुनाए जाने और दोषियों को फाँसी तक पहुँचाने के बाद भी ऐसी हैवानियत से भरी घटनाएँ घटती ही चली जा रहीं हैं। ऐसे में सख्त कानून के साथ- साथ इन बीमार मानसिकता वालों की मानसिक स्थिति पर अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है; ताकि अन्य रोगों की तरह इस वीभत्स रोग का भी इलाज सोचा जा सके।
इसी परिपेक्ष्य में अब हम बात करते हैं अपने पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षिक माहौल की। देश की युवा पीढ़ी को आखिर हम कैसा माहौल दे पा रहे हैं?  हमारी सरकारें सबको शिक्षा की बात तो करती है, पर बेहतर शिक्षा देने के विषय में बिल्कुल भी बात नहीं करती। पाठ्यक्रम में लगातार बदलाव होते रहते हैं, पर इस बदलाव का मानक तय कौन करे; इस पर कोई बात नहीं करता। पाठ्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को दे दी जाती है, जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना ही नहीं होता। बच्चों की बुनियाद मजबूत होती है। प्राथमिक शिक्षा से, यदि आरंभ में ही नैतिक विकास की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाएगा ,तो इमारत की मजबूती की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
आज स्कूलों में दी जा रही शिक्षा नाममात्र को रह गई है, बच्चों को सिर्फ उतना ही पढ़ाया जाता है, जिससे वे असली कक्षा में जाने के लिए पास हो सकें। चरित्र- विकास और नैतिक शिक्षा अब बीते जमाने की बात हो गई है। हमारे पाठ्यक्रमों से आदर्श स्थापित करने वाले महापुरुषों कीजीवनियाँ, उनके कार्य, घटनाएँ आदि सब विलुप्त होते जा रहे हैं। हाँ बच्चों पर इन दिनो पढ़ाई का, बस्ते का, कुछ कर दिखाने का बोझ भर डालते चले जा रहे हैं, जिसके दबाव में भी मानसिक विकार के शिकार होते हैं।
मोबाइल क्रांति के युग में आज स्कूली बच्चों के हाथ में भी मोबाइल थमा दिया गया है। सोशल मीडिया के इस दौर में यदि ज्ञान के भंडार खुले हैं, तो उससे ज्यादा कहीं बच्चों को गलत मार्ग में ले जाने वाले रास्ते भी खुल गए हैं। इन सबने बच्चों का बचपन छीन लिया है। न वे बाहर खेलने जाते हैं, न दोस्ते से मिलते हैं। इस तरह वे अपने घर में रहते हुए भी अपनों से दूर हो गए हैं।
गुरु-शिष्य के रिश्ते भी बदल गए हैं। शिक्षक अब पहले की तरह न पूजनीय रहे,न आदर्श। वे भी मशीन बन गए हैं, जो बच्चों को रटंत विद्या के माध्यम से आगे बढऩे का सिर्फ वही रास्ता बताते हैं जिससे वे आगे जाकर पैसा कमाने की मशीन बन जाएँ। दरअसल माता- पिता की महत्त्वकांक्षाएँ भी बढ़ गईं हैं, वे बच्चों की इच्छा जाने बगैर उन्हें रोबोट बना देना चाहते हैं।
बदल रही परिस्थितियाँ, बदल रहे विचार और मूल्य, बदल रहीं इच्छाएँ- महत्त्वाकांक्षाएँ, बदल रही शिक्षा- व्यवस्था सबने मिलकर समाज के वातारवण को ही बदल दिया है। अच्छा वातावरण चाहिए, अच्छे विचारों वाले लोग चाहिए, तो परिवार, समाज और देश को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा। कानून बनाने वालों को बेहतर कानून बनाना होगा। देश चलाने वालों को अच्छी योजनाएँ बनानी होंगी। शिक्षा देने वालों को शिक्षा का उचित माहौल बनाना होगा। यानी सबको अपना-अपना काम जिम्मेदारी से करना होगा। यह नहीं कि यह मेरा काम नहीं है, मैं क्यों इसमें उलझूँ। ऐसी उपेक्षा हम सबके लिए नुकसानदेह होगी, जिसके दुष्परिणाम हम सब देख ही रहे हैं। वातावरण का प्रदूषण दूर करने के लिए सरकारी- गैरसरकारी संस्थाएँ रात-दिन जुटी हैं, क्या कभी मानसिक विकृति और मानसिक प्रदूषण दूर करने का उपाय सोचा हैसोचना पड़ेगा। अगर नहीं सोचा, तो भारत की गरिमा विश्व भर में धूल -धूसरित हो जाएगी।  

अन्नदाता की आय सुरक्षित करने की पहल

अन्नदाता की आय
 सुरक्षित करने की पहल
प्रमोद भार्गव
      समय पर किसान द्वारा उपजाई फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण अन्नदाता के सामने कई तरह के संकट मुँहबाए खड़े हो जाते हैं। ऐसे में वह न तो बैंकों से लिया कर्ज समय पर चुका पाते हैं और न ही अगली फसल के लिए वाजिब तैयारी कर पाते हैं। बच्चों की पढ़ाई और शादी भी प्रभावित होते हैं। यदि अन्नदाता के परिवार में कोई सदस्य गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो उसका इलाज कराना भी मुश्किल होता है। इन वजहों से उबर नहीं पाने के कारण किसान आत्मघाती कदम उठाने तक को मजबूर हो जाते हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए ही राजग सरकार ने पिछले दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि की है, जिससे किसान की आमदनी दोगुनी हो जाए और अब इसी कड़ी में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सरंक्षण नीतिको मंजूरी दी है। इसके तहत अगले दो वित्तीय वर्षों के लिए 15 हजार 53 करोड़ रुपये मंजूर किए है। अब यदि बाजार में फसल का मूल्य एमएसपी से कम होगा तो राज्य सरकारें इन योजनाओं में से किसी एक का चुनाव कर किसानों को धनराशि का भुगतान कर सकती है।   
राजग सरकार ने चार साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद अब किसानों की गंभीरता से सुध लेना शुरू कर दी है। अन्नदाता आय सरंक्षण नीति के तहत राज्य सरकारों को तीन प्रकार के विकल्प दिए गए हैं। एक, नीति के तहत राज्यों को केंद्र के साथ मिलकर फसलों की खरीद करनी होगी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत होगी। दूसरी भावांतर भुगतान योजना और तीसरी प्रायोगिक तौर पर निजी क्षेत्रों को भी एमएसपी पर खरीद में छूट दी गई है। इसके लिए इन्हें अलग से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। निसंदेह इन नीतियों से बाजार की सरंचना किसान के हित में मजबूत होगी। इसके साथ ही यदि फसल बीमा का समय पर भुगतान, आसान कृषि ऋण और बिजली की उपलब्धता तय कर दी जाती है तो किसान की आमदनी दूनी होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। ऐसे ही उपायों से खेती की लागत कम करने और आय में वृद्धि के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। ऐसा होता है तो किसान और किसानी से जुड़े मजदूरों का पलायन रुकेगा और खेती 70 फीसदी ग्रामीण आबादी के रोजगार का जरिया बनी रहेगी। खेती घाटे का सौदा न रहे इस दृष्टि से कृषि उपकरण, खाद, बीज और कीटनाशकों के मूल्य पर नियंत्रण भी जरूरी है। इन वस्तुओं के निर्माता किसानों को नकली खाद, बीज और कीटनाशक देकर भी बर्बाद करने में लगे हैं। 
 भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया भी था। अब इसे पूरा करना इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि अक्टूबर-नवंबर में पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव और इसके ठीक चार माह बाद मई 2019 में आम चुनाव होने हैं। हालाँकि कुछ खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले से ही लागत मूल्य का डेढ़ गुना है। लेकिन धान, रागी और मूँग आदि का समर्थन मूल्य लागत की डेढ़ गुनी कीमत से कम है। इन फसलों के उत्पादक किसानों को इस मूल्य वृद्धि से सबसे अधिक लाभ होगा। एमएसपी में न्यूनतम 3.7 प्रतिशत और अधिकतम 52.5 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी की गई है। इससे सरकारी खजाने पर 33000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार बढ़ेगा। इस नए मूल्य निधारण से धान की खरीद पर ही 15000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त बोझ की उम्मीद हैं। किसानों की आमदनी में यह बढ़ोतरी व्यापक रूप से देशहित में है। दरअसल किसान की आमदनी बढ़ने से चौतरफा लाभ होता है। फसलों के प्रसंस्करण से लेकर कृषि उपकरण और खाद-बीज के कारखानों की गतिशीलता किसान की आय पर ही निर्भर है। मंडियों में आढ़त, अनाज के भरा-भर्ती और यातायात से जुड़े व्यापरियों को भी जीवनदान किसान की उपज से ही मिलता है।         
किसान, गरीब और वंचित तबकों की हैसियत बढ़ाने की दृष्टि से आवास और उज्ज्वला योजनाओं के बाद प्रधानमंत्री अन्नदाता आय सरंक्षण नीति सरकार की चौथी बड़ी पहल है। हालांकि इसके पहले पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के गन्ना किसानों को बड़ी राहत देते हुए 8,500 करोड़ का पैकेज दिया है। फसल बीमा योजना और भूमि स्वास्थ्य कार्ड भी इसी कड़ी के हिस्सा रहे हैं। बीते चार आम बजटों में भी कई सिंचाई योजनाओं को मंजूर किया गया है, जिससे वर्षा पर निर्भरता कम हो। गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों को बीमार होने पर पाँच लाख रुपए तक की आर्थिक मदद के अहम् प्रावधान किए हैं। मोदी सरकार के ये ऐसे काम हैं, जिन पर यदि उचित व ईमानदारी से क्रियान्वयन होता है तो किसान और गरीब मजदूर का कल्याण तो होगा ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी की वापसी हो सकती है। इन योजनाओं के वजूद में आ जाने से कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार को किसान विरोधी सरकार साबित करने के प्रयास किए जा रहे थे, उनको भी पलीता लगना तय है।
ये उपाय किए जाना इसलिए जरूरी थे, क्योंकि अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसे प्राकृतिक प्रकोपों के बावजूद देश में कृषि उत्पादन चरम पर है। सरकार द्वारा पेश आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में करीब 275 मिलियन टन खाद्यान्न और करीब 300 मिलियन टन फलों व सब्जियों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। बावजूद किसान सड़कों पर उपज फेंकते हुए आंदोलित थे और आत्महत्या भी कर रहे थे, लिहाजा किसी भी संवेदनशील सरकार के लिए किसान चिंतनीय पहलू होना चाहिए था। गोया, इसकी पृश्ठभूमि 2018-19 के आम बजट में ही रख दी गई थी। हालाँकि  कृषि, किसान और गरीब को सर्वोच्च प्राथमिकता देना सरकार की कृपा नहीं बल्कि दायित्व है, क्योंकि देश की आबादी की आजीविका और कृषि आधारित उद्योग अंततः किसान द्वारा खून-पसीने से उगाई फसल से ही गतिमान रहते हैं। यदि ग्रामीण भारत पर फोकस नहीं किया गया होता तो जिस आर्थिक विकास दर को 8 प्रतिशत तक लाया जा सका है, वह संभव ही नहीं थी। इस समय पूरे देश में ग्रामों से मांग की कमी दर्ज की गई है। निसंदेह गाँव और कृषि क्षेत्र से जुड़ी जिन योजनाओं की शृंखला को जमीन पर उतारने के लिए 14.3 लाख करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया था, उसका उपयोग अब सार्थक रूप में होते लग रहा है। ऐसे ही उपायों से किसान की आय सही मायनों में 2022 तक दोगुनी हो पाएगी। इस हेतु अभी फसलों का उत्पादन बढ़ाने, कृषि की लागत कम करने, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि आधारित वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने की भी जरूरत है। दरअसल बीते कुछ सालों में कृषि निर्यात में सालाना करीब 10 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं कृषि आयात 10 अरब डॉलर से अधिक बढ़ गया है। अब इस दिशा में भी सुधार होने की उम्मीद है।
      केंद्र सरकार फिलहाल एमएसपी तय करने के तरीके में ए-2फॉमूर्ला अपनाती रही है। यानी फसल उपजाने की लागत में केवल बीज, खाद, सिंचाई और परिवार के श्रम का मूल्य जोड़ा जाता है। इसके अनुसार जो लागत बैठती है, उसमें 50 फीसदी धनराशि जोड़कर समर्थन मूल्य तय कर दिया जाता है। जबकि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश है कि इस उत्पादन लागत में कृषि भूमि का किराया भी जोड़ा जाए। इसके बाद सरकार द्वारा दी जाने वाली 50 प्रतिशत धनराशि जोड़कर समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए। फसल का अंतरराष्ट्रीय भाव तय करने का मानक भी यही है। यदि भविष्य में ये मानक तय कर दिए जाते हैं तो किसान की खुशहाली और बढ़ जाएगी। एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय आयोग ने भी वर्ष 2006 में यही युक्ति सुझाई थी। समर्थन मूल्य में की गई इन वृद्धियों से ऐसा लग रहा है कि भविष्य में कृषि भूमि का किराया भी इस मूल्य में जोड़ दिया जाएगा। इन वृद्धियों से कृषि क्षेत्र की विकास दर में भी वृद्धि होने की उम्मीद है। यदि देश की सकल घरेलू उत्पाद दर को दहाई अंक में ले जाना है तो कृषि क्षेत्र की विकास दर 4 प्रतिशत होनी चाहिए। साफ है, कालांतर में इस दिशा में भी अनुकूल परिणाम निकलेंगे।
सम्पर्कः शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र.


मो. 09425488224, फोन 07492 232007

आपातकाल- जेल डायरी के अंश

अटल जी के स्नेहिल अपनत्व की छाप
मेरे दिल में जीवन भर रहेगी
 बृजलाल वर्मा (संपादन डॉ. रत्ना वर्मा)
(गतांक से आगे)
आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट दिल्ली
27-1-1977
मैंने जो दरखास्त केन्द्र तथा प्रान्त को अपनी बीमारी के इलाज के लिए भेजे थेआज उसी के साथ एक पत्र लिखकर माननीय अटल जी तथा भंडारीजी को भी भेजा है जिसमें मैंने लिखा है कि- सरकार हमारे साथ क्यों ऐसा गलत व्यवहार कर रही है। उन्होंने कुछ थोड़े से लोगों को छोड़ दिया। इस समय विभिन्न जेलों में हमारे लगभग 90 प्रतिशत साथी बंद हैं। 14 से 25 साल तक के बच्चे और युवा हजारों की तादात में जेलों में सड़ रहे हैं, हम कुछ लोग यदि छूट भी गए तो क्या हम इन सबके के साथ न्याय कर पाएँगे? ऐसे में हमारा छूटना क्या शोभा देता है। यदि किसी को छोडऩे का ऑर्डर दिया भी जाता है तो उस आर्डर को जेलों तक पहुँचने में महीनों लग जाते हैं। लालफीताशाही पहले से कई गुना बढ़ गई है, भ्रष्ट्रचार, घूसखोरी, आतंक, अन्याय के विरूद्ध कोई भी बोलने वाला नहीं। जनता इन सरकारी अन्याय और अत्याचार को  देखकर भी चुप है, कोई आवाज नहीं उठा सकता। पर सरकारी तौर से चारों ओर यह प्रचारित किया जा रहा है कि इस देश में जनता ही मालिक है, यहाँ सब लोग बहुत सुखी हैं, गरीबी खत्म हो गई, मँहगाई खत्म हो गई, घूसखोरी, जमाखोरी, अन्याय का अंत हो गया है। कानून का शासन है। लोगों को इस आपातकालीन ने बहुत राहत दिया है तथा सभी प्रकार के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है, फसल अच्छी हुई, कल- कारखाने ठीक चल रहे हैं।
मैं कहता हूँ जब कानून ही ऐसा बना दिया गया हो तो भला कौन आवाज उठाने की हिम्मत करेगा। शासन के विरूद्ध जिसने भी आवाज उठाने की कोशिश की वह तुरंत जेल में बंद कर दिया जाता है। न कोई बोल सकता, न तालाबंदी कर सकता, न काम बंद कर सकता, न न्यायालय जा सकता, न सभा कर सकता, न अपनी बात अखबारों में छपवा सकता, न प्रदर्शन कर सकता और न रैली निकाल सकता।
जिस देश में जनता के सारे अधिकार छीन लिये गए हों, जिस देश की सारी अर्थव्यवस्था तहस- नहस हो गई होबेकारी बढ़ गई हो, मुद्रास्फिति और भी खराब हो गई हो वहाँ अपनी इन्हीं नाकामियों को छिपाने के लिए इंदिरा सरकार ने चुनाव का ऐलान किया है और विरोधी दल को चुनाव की तैयारी का समय भी नहीं दिया। लोगों को आतंकित करके, डरा- धमकाकर उन्होंने अपना संगठन मजबूत किया, संसद व विधानसभा के सदस्यों को लालच व डर दिखाकर दल बदल करा लियाऐसी स्थिति में चुनाव का यह नाटक, क्या यही प्रजातंत्र है? इन सबके बाद भी अब जनता को फैसला करना होगा कि वह क्या चाहती है। उसके सामने सिर्फ एक ही सवाल है कि वे प्रजातंत्र चाहते हैं या एकतंत्र।तानाशाही चाहते हैं या जनता का राज्य?
मेरे पत्र के इन सब प्रश्नों को पढ़ कर अटलजी बीमार होते हुए भी मुझसे मिलने आ गए। और मुझसे कहा-हम सब दलों ने मिलकर जिस जनता पार्टीका निर्माण किया है वह इन सब ज्यादतियों का किस तरह से मुकाबला कर सकती है, यही अब हमें तय करना होगा। अब सिर्फ जनसंघ का प्रश्न नहीं रह गया है, अब तो सभी दलों का प्रश्न है। सभी राजनैतिक मीसा बंदियों को जल्द छोडऩा पड़ेगा। हम सब  मिल कर सरकार पर दबाब डालेंगे और अपने सभी साथियों को जेल से जल्द से जल्द बाहर करेंगे।
अटल जी के इस जवाब से मैं संतुष्ट हुआ। मैंने अपने प्रति हमेशा ही अटल जी का अत्यधिक प्रेम महसूस किया है। जब भी मेरे ऊपर कोई कठिनाई आती है, भले ही वे स्वयं बीमार क्यों न हों उसे हल करने में जुट जाते हैं। वे मुझसे बड़े प्यार से समझाते हैं कि उग्र मत हो, ईश्वर हमारा साथ देगा। चुनाव हम सब मिलकर ही लड़ेंगे। हमने जनता के सामने इंदिरा कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक  पार्टी जनता पार्टीसामने रख दिया। जनता हमें अब यह नहीं कह सकती कि हम आपस में बंटे हुए  हैं। अब तो सभी विरोधी दल के नेता, एक सिद्धांत, एक झंडा, एकचुनाव चिन्ह, एक प्रोग्राम को लेकर सामने आ गए हैं। मैं विश्वास के साथ कहता हूँ कि जनता हमारा साथ देगी और हम चुनाव जीतेंगे।
चुनाव अभियान का शुभारंभ
30 जनवरी महात्मा गाँधी के शहीद दिवस के दिन जनता पार्टी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की। अध्यक्ष मोरारजी देसाई तथा अटल बिहारी वाजपेयी ने  दिल्ली के रामलाल ग्राउण्ड से तथा जयप्रकाश जी ने पटना में यह अभियान शुरू किया। इसी दिन कई प्रान्तों में भी नेतागणों ने चुनाव अभियान शुरू किया। पर अभी भी कईप्रान्तों के मान्यता प्राप्त पार्टी कार्यकारणी के सदस्यों  तथा अध्यक्षों को छोड़ा नहीं गया है। चुनाव 14 मार्च तक होगा कहते हैं जबकि जनता पार्टी के सभी उम्मीदवार, नेता, प्रचारक, कार्यकर्ता जेलों में बंद है। ऐसे में चुनाव किस तरह हो पाएगा? मैं तो चुनाव का बहिष्कार करने के पक्ष में हूँ। मेरी राय में जब तक सभी राजनैतिक मीसा बंदियों को बिना शर्त नहीं छोड़ा जाता तब तक चुनाव नहीं लडऩा चाहिए। वर्तमान परिस्थतियों को देखकर तो मुझे यह भी शंका है कि वे सभी चुनाव अधिकारियों को यह हिदायत भी दे देंगी कि जनता पार्टी के सभी उम्मीदवारों की नामजदगी फार्म रद्द कर दो, न रहेगा की बाँस न बजेगी बाँसुरी। जिस प्रकार कम्युनिस्ट देशों में तानाशाही तरीके से चुनाव करवाए जाते हैं उसी तरह अब हमारे देश में भी चुनाव होगा ऐसा अंदेशा है। शहीद दिवस के दिन इस विषय पर विचार करना जरुरी है।
31-1-1977
आज मैं फिर इंतजार कर रहा हूँ अपनी रिहाई के कागज़ातों का, अगर नहीं आया तो मैं फिर से एक आखरी निवेदन सरकार को दूँगा, जिसमें यह तो माँग करूँगा ही कि या तो रिहा करो या मुझे इलाज के लिए जहाँ भी ठीक स्थान है, बंबई या बेंगलोर भेज दो, साथ ही यह भी कि मुझे मेरी बीमारी के संबंध में गलत जानकारी दे करझूठा आश्वासन दिया जा रहा है और समाचार पत्रों में जिस तरह से गलत प्रचार किया जा रहा है उसपर भी कुछ न कुछ कदम उठाना पड़ेगा; क्योंकि यहाँ मैं इलाज के लिए जिस हालत में आया था, आज भी वैसा ही हूँ उल्टेहृदय रोग से और पीडि़त हो गया हूँ, जबकि गत 4-5 वर्षों से मैं इस रोग से मुक्त था।
आज पुन: समाचार-पत्रों में यह समाचार है कि जनता पार्टीप्रान्त के संचालन के लिए जो 9 व्यक्ति चुने गए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत अभी भी जेलों में हैं। इसमें अखिल भारतीय जनसंघ के संगठन मंत्री संचालक कुशाभाऊ ठाकरे तथा मध्यप्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष बृजलाल वर्मा के नाम भी हैं, जिन्हें छोडऩे का ऑर्डर होने के बाद भी नहीं छोड़ा गया।
 रामलीला ग्राउंड में अटल जी ने अपने भाषण में एक रहस्य खोला कि जब जनता पार्टी के लोग इंदिरा गांधी से मिलने गये और उन्होंने इंदिरा जी के सामने अपनी माँग रखी कि सभी राजनैतिक दलों के मीसाबंदी छोड़ क्यों नहीं दिए जाते, जबकि आप चुनाव कराने की इच्छा करती हैं, तो उनका जवाब था कि मैंने सभी प्रान्तों को आर्डर दे दिया है कि वे सभी मीसाबंदियों को छोड़ दें; परंतु वे (प्रान्त के लोग) मेरी बात नहीं सुन रहे हैं। उनका यह जवाब बड़ा विचित्र लगासाफ जाहिर था कि वे झूठ बोल रही हैं।
रामलीला ग्राउंड में आयोजित जनता पार्टी के पहले चुनावी आम सभा में एक लाख से भी अधिक लोग तीन घंटे तक, ठंड में बैठे हुए शांति से नेताओं की बातों को सुनते रहे। उन सबके बावजूद जबकि सभा में दिल्ली के बाहर से आने वाली जनता को सरकार ने जबरन रोका। शहर की बसों को रामलीला ग्राउंड की ओर जाने नहीं दिया गया। ओटोरिक्शा जिसमें लाउडस्पीकर लगाकर ऐलान किया जा रहा था उसे भी रोका गया। यह भीड़ इस बात का संकेत है कि जनता अब बदलाव चाहती है, वह आपतकाल के विरोध में जनता पार्टी का साथ देगी इस सभा से यह स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं।
जनता का आक्रोश साफ नजर आ रहा है। पटना में जयप्रकाश की सभा में भी लाखों की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि जनता हमारे साथ है। इंदिरा कांग्रेस की तानाशाही जो 19 माह तक चली, जिस दौरान महँगाई, गरीबी, अव्यवस्था, भ्रष्ट्राचार, घूसखोरी, बेईमानी, नौकरशाही का नंगा नाच हुआ। आतंक, गैरकानूनी कार्य, अन्याय, जनता के मूलभूत अधिकारों को छीनना, संविधान में मनमाना परिवर्तन करना यह सब अब कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
अभी दो दिन पहले ही न्याय पालिका के अधिकारों पर भी कुठाराघाट किया गया है- खन्ना जो सबसे सीनियर जज थे, उसे चीफ जस्टिस न बनाकर उनके जूनियर बेग को, चीफ जस्टिस बना दिया गया, बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार 1963 में किया गया था, तब रे को चीफ जस्टिस बनाकर तीन सीनियर जजों के अधिकारों को खत्म किया गया था। उस समय भी उन तीनों जजों ने इसे अपना अपमान कहते हुए इस्तीफा दे दिया था, वैसे ही खन्ना ने भी इस्तीफा दे दिया, जो कि न्याय संगत ही है। उस वक्त यह कहा गया कि ये तीनों जज समय की प्रगति को ख्याल न करके फैसला करते हैं जो कि देशहित व जनहित में बाधक होता है। अब कह रहे हैं कि क्योंकि खन्ना 6 माह बाद रिटायर होगा इसलिए बेग को चीफ जस्टिस बनाया गया है।
 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो कि सबसे ज्यादा राष्ट्रवादी, राष्ट्र प्रेमी पार्टी है, उसे वे राष्ट्रद्रोही कहती हैं; क्योंकि वह कांग्रेस के खिलाफ है।
 20 सूत्रीय कार्यक्रम कांग्रेस पार्टी का नहीं इंदिरा का प्रोग्राम है। यहाँ तो इंदिरा ही पार्टी है, इंदिरा ही देश है। इंदिरा ही इंडिया यह कहा जा रहा है। व्यक्ति ही राज्य है, देश है, जनता या देश नहीं। अगर इंदिरा गाँधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला नहीं देता तो शायद आपातकाल नहीं लगता। वह अपने को जनता का प्रतिनिधि नहीं ;बल्कि उसका मालिक मान रही हैं, वह अपने को अदालत और संविधान तथा पार्लियामेन्ट से ज्यादा शक्तिशाली मानती हैं।
30 जनवरी को हमने गाँधी जी को याद करके उनके विचारों पर उनके कार्य करने की विधियों, उनके सत्य और अहिंसा के आचरण को याद किया ; लेकिन आज इंदिरा गाँधी उनके विपरीत कार्य करके देश में द्वेष, भ्रष्ट्रचार, भ्रम अविश्वास, दुर्भावना तथा गरीब अमीर में भेद पैदा करके वर्ग संघर्ष का एक रूप सामने खड़ा कर रहीं है और लोगों के दिलों में एकता के बजाय दुराभाव, देश प्रेम के बजाय व्यक्तिगत उपासना पर जोर दे रही हैं। तभी तो वे कहती हैं कि इंदिरा भारत है, इंदिरा नहीं तो भारत नहीं। देश की सत्ता और शक्ति एक व्यक्ति में समाहित हो गई है। जबकि गाँधी जी ने सत्ता को बिखेरा था, जन-जन, ग्राम-ग्राम में, क्योंकि यह किसानों का देश है, ग्रामों का देश है इसलिए ग्राम राज्य तथा गरीबों के राज्य जिसे आज के शब्दों में जनता का राज्य, प्रजा का राज्य, प्रजातंत्र कहते हैं। वे चाहते थे कि देश की सत्ता ग्राम के हाथों में रहे, देश की सत्ता विकेन्द्रित रहे, देश ग्राम पर निर्भर रहे। वे खुद तीसरे दर्जें पर चलते थे, सूत कातकर कपड़ा पहनते थे, एक कुटिया में रहते थे, अपना तथा अपने गाँव व आश्रम का कार्य खुद करते थे।
 हमें भी चाहिए कि हम अपनी पूंजी, हैसियत अपनी संस्कृति, अपने आदर्शों को देखकर समझकर आगे बढ़े, हम गरीब देश के वासी हैं, गाँव में किसान हैं, हमें गाँव की तरक्की करनी है, गाँव को बढ़ाना है, हर गाँव रिपब्लिक हो। अपने में स्वयं पूर्ण हो। सारी सत्ता का केन्द्र ग्राम हो, ऐसी व्यवस्था को गाँधी जी रामराज्य कहते थे। पर हम यह सब आज भूल गये हैं। लेकिन हमें आज उसी महात्मा, देश के उद्धारक, देश के निर्माता के आदर्शों पर चलना है। जनता पार्टी उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए, देश के सभी वर्गों को खासतौर से नौजवानों का आह्वान कर रही है कि वे संगठित होकर देश को भ्रष्ट्रचार, दुराचार, गरीबी तथा बेरोजगारी से बचाएँ और उत्थान के लिए आगे बढ़ें।
अब देखना यह है कि देश किस ओर जाता है। हमने तो देश को एक रास्ता दिया, गाँधी का रास्ता, सत्य और अहिंसा का रास्ता, कानून का रास्ता, प्रजातांत्रिक रास्ता।  'जनता पार्टीका निर्माण करके जयप्रकाश जी के मार्गदर्शन में इंदिरा गाँधी के इस तानाशाही राज को खत्म करना होगा ताकि एक प्रजातांत्रिक देश का निर्माण हो सके और देश के नागरिक अपने मूल अधिकारों को प्राप्त करके सुख पूर्वक रह सकें और हमें पूरा विश्वास है जनता आगे आएगी।    
अटल जी से मुलाकात व रिहाई के आदेश
1-2-1977
कल रात को करीब 9 बजे अटलजी मेरे पास आए, पहले उन्होंने मेरी रिहाई के बारे में बताया कि आज मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी आ रहे हैं तथा ओम मेहता गृहमंत्री से चर्चा करके मेरा नाम उन्हें लिखवा दिया है तथा मेरी रिहाई कल हो जाने की आशा है।
तब मैंने उन्हें बताया कि मेरी रिहाई का आदेश भोपाल से बहुत पहले तथा रायपुर कलेक्टर से 25 जनवरी को दिल्ली के लिए डिस्पैच हो गया है, ऐसा समाचार है ; पर 31 तारीख भी बीत गई पर अभी तक वह आदेश यहाँ तक नहीं पहुँचा है। पूछने पर उनका जवाब होता था कि पत्र आने में 10-12 दिन का लगना मामूली बात है।  अटल जी से मैंने ठाकरेजी तथा दूसरे साथियों की रिहाई के बारे में जानना चाहा ,तो उन्होंने बताया कि बाकी सब भी छोड़े जाएँगे तथा ठाकरे जी भी जल्द ही छोड़े जा रहे हैं।
इसके बाद उन्होंने रामलीला ग्राउण्ड में हुई जनता पार्टी की पहली आमसभा जिसमें मोरारजी भाई तथा अटलजी मुख्य वक्ता थे, की जानकारी देते हुए कहा कि -आमसभा में जनता का उत्साह देखते ही बनता था। वे सरकार के आतंक की परवाह नहीं कर रहे हैं। कई बाधाओं जैसे पुलिस का भय तथा मोटर- गाडिय़ाँ को चारों ओर से बंद करने के बाद भी वहाँ एक लाख से ज्यादा लोग उपस्थित थे। वे ठंड में भी शान्त होकर हमें सुन रहे थे। इसी प्रकार पटना, कानपुर, जयपुर तथा अन्य कई स्थानों में, चरणसिंह व चंद्रशेखर की आमसभा भी अच्छी रही । पटना में जयप्रकाश जी की सभा में लोगों की अथाह उपस्थिति थी। दिल्ली में यह पहली और बड़ी ऐसी आमसभा थी जो सिर्फ एक पोस्टर से हुई। यह सब बड़ा आश्चर्यजनक  है

अटलजी का यह उत्साह से भरा कमेन्ट था। उनके उत्साह को देखते हुए मैंने अनुमान लगाया कि हमें  सम्पूर्ण देश में अच्छी सफलता मिलेगी। पाबंदी के बाद भी समाचार पत्रों ने अच्छा कवरेज दिया। लेकिन आकाशवाणी ने जनता पार्टी के मीटिंग की मात्र सूचना ही दी। शेष उन्होंने संजय गाँधी द्वारा की गई जनता पार्टी की आलोचना का प्रचार ही ज्यादा किया। यह सब देखते हुए शंका है कि हमें चुनाव प्रचार में आकाशवाणी और टेलिविजन में शायद ही स्थान मिलेगा। 
इधर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तो बयान ही दे दिया कि वे राजनीति में भाग नहीं लेंगी, हाँ उनके पुत्र शायद कांग्रेस की ओर से प्रचार अगर नहीं करेंगे तो कम से कम उन्हें हर प्रकार से मदद करेंगे, ऐसा मेरा अनुमान है। अब सरदार आंग्रे साहब क्या करते हैं यह देखना होगा। अभी तक तो साथ हैं, हमारी 9 सदस्यों की कमेटी में भी प्रदेश के चुनाव संचालन के सदस्य हैं, वे अब जेल से छूट भी गये हैं। यदि सभी सक्रिय हो जाएँ तो हमें म.प्र. में अच्छी सफलता मिल सकती है।
 आज मुझे शाम लगभग 6 बजे तिहार सेंट्रल जेल नई दिल्ली के असिस्टेन्ट सुपरिनटेनडेन्ट ने मेरा डिटेन्शन का रिव्होकेशन आर्डर दियाजो कि 18-12-1976 को भोपाल से निकला थापर अभी तक व्यवस्थित पहुँच नहीं पाया था। वह आर्डर अब रायपुर कलेक्टर से वायरलेस द्वारा भेजी गई है। उसी आधार पर मुझे रिव्होकेशन आर्डर मिला।
मुझे ऐसा लगता है कि अटल जी गृहमंत्री ओम मेहता से मेरी रिहाई को लेकर एक दिन पहले मिले थे और भोपाल से चीफ सेक्रेटरी श्री सुशीलचंद्र वर्मा को भी बुलाया था, यह सब बातें एक साथ हुई। 20-10-1976 से आजतक लगातार मुझे जेल से छोड़े जाने का प्रयास मेरी तबियत को देखते हुए किया जा रहा था परंतु सरकार को किसी के जीवन- मरन से क्या लेना देना। उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी मुझे पूरे समय जेल में रखा और मेरे इलाज में भी लापरवाही बरती। अटलजी ने मेरे लिए काफी प्रयत्न किया। उनका प्यार हमेशा मेरे साथ रहा। जब भी समय मिलता वे मुझसे जेल में मिलने आते रहे तथा मेरी सुविधाओं का ख्याल रखते रहे, उनके इस स्नेहिल अपनत्व की अमिट छाप मेरे दिल में जीवन भर रहेगी।
हमारे जनसंघ पार्टी के बहुत से प्रमुख नेता तथा हजारों कार्यकर्ता अभी भी जेलों में बंद है तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सदस्यगण भी नहीं छोड़े गए हैं। चूंकि इस संस्था को गैरकानूनी करार दिया गया है, जबकि उसके खिलाफ एक भी ऐसा चार्ज नहीं है, जिससे उन्हें गैरकानूनी कहा जाए। फिर भी इंदिरा जी को उन्हीं से डर है ; क्योंकि वह एक संगठित राष्ट्रवादी, देशभक्त संस्था है जो किसी भी अराष्ट्रीय अथवा असामाजिक कार्य, जो देश को विघटन की ओर ले जाएगी का विरोध करती है। वह भारत को एक समृद्धिशाली खुशहाल देश के रुप में देखना चाहती है जहाँ भारतीय संस्कृति के मूल्यों की रक्षा हो सके। यही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मूल भावना है। पर इंदिरा गाँधी ऐसा नहीं चाहतीं। वे यूरोपीय सभ्यता तथा संस्कृति से ज्यादा प्रभावित हैं। उन्हें अपने देश की संस्कृति या सभ्यता से कोई प्यार या लगाव नहीं है। उन्हें तो सिर्फ अपना कद अपना महत्व बढ़ाना है।  अपने व्यक्ति की सत्ता को ही महत्व देना है। वे किसी से  प्रभावित है तो वह है रूसक्योंकि उसी ने उन्हें गद्दी पर बिठाने में सबसे ज्यादा मदद की है। इसी अहसान तले वे रूस से दबे हैं। वे पूर्णत: व्यक्तिवादी तानाशाह बनना चाहती हैं।
2-2-1977
कल शाम को जैसे ही मुझे जेल के अधिकारियों ने रिव्होकेशन आर्डर दिया, पूरे अस्पताल में बात फैल गई। थोड़ी देर बाद म.प्र. के एम.पी. पांडे तथा वर्माजी भी आ गए और उन्होंने जानकारी दी कि भोपाल में मीटिंग में क्या हुआ। उन्होंने रायपुर से मुझे उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा के बारे में भी जानकारी दी साथ ही यह भी बताया कि पुरुषोत्तम कौशिक जी रायपुर से चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। जबकि मेरे ख्याल से वही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। मेरा तो  स्वास्थ्य भी जेल में रहते हुए खराब है तथा लगातार 20-25 वर्षों से विधानसभा का सदस्य बनते रहा हूँ तो अब मेरी कहीं से भी उम्मीदवार बनने की इच्छा नहीं है। मेरे विचार से अब नौजवानों को, नए लोगों को सामने लाना चाहिए। सभी दलों ने एक होकर जिस जनता पार्टीका निर्माण किया है, उम्मीद है उसको सबकी मदद मिलेगी और हमारी पार्टी बहुमत से जीतेगी। मेरे ख्याल से पुरुषोत्तम कौशिक को रायपुर से चुनाव लड़ना चाहिए एक तो उनकी अभी उम्र कम है, नये हैं, उत्साही हैं, अभी-अभी उसका व्यक्तित्व भी जनता के सामने उभर कर आया है। यह सब मैं तो सोच रहा हूँ पर सभी बाते वहाँ पँहुचकर ही स्पष्ट हो पाएँगी, देखते हैं कि वे रायपुर से चुनाव लड़ने को राजी होते हैं या नहीं; क्योंकि रायपुर से किसी अच्छे प्रभावशाली उम्मीदवार को ही खड़ा करना होगा। यूँ तो हमें म.प्र. के सभी 40 सीटों पर ही अच्छे उम्मीदवार खड़ा करना है। 9 व्यक्तियों की जो समिति चुनाव संचालन तथा पार्टी संगठन के लिए बनी है, जिसमें ठाकरे साहब सरीखे अनुभवी व्यक्ति हमारे मार्ग दर्शन के लिए संयोजक बनाए गए हैं, ऐसे में स्थितियाँ बेहतर होंगी ऐसी उम्मीद मुझे है। मेरी तबियत को देखते हुए मैं जेल से छूटने के बाद  8-10 दिन आराम करना चाहता हूँ। क्योंकि तुरंत भाग-दौड़ करने से तबियत और बिगड़ सकती है, जिससे आगे काम करने में और कठिनाईयाँ आ सकतीं हैं। यद्यपि परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि मैं एक दिन भी आराम नहीं कर पाऊँगा ऐसा लग रहा है।
हमें मध्य प्रदेश में सरदार आंग्रे साहब का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना है, क्योंकि राजमाताजी तो अलग हो ही गई है तथा उनका लड़का विरोधी पार्टी में चला गया है। यह बात जरूर है कि उन्हें सरकार बहुत परेशान कर रही है आर्थिक रूप से, गलत-गलत आरोप लगाकर सता रही है, पर बेटे के मन में क्यों इतना डर व भय समा गया यह समझ से परे हैं ;क्योंकि वे एक खानदानी स्वाभिमानी माँ - पिता के बेटे हैं। सिंधिया खानदान को मैं इतना कमजोर नहीं मानता था पर वे भी सभी राजा महाराजाओं की तरह शासन के आगे दब गये।
 लगता है इसी करण उनकी माँ राजमाता ने भी राजनीति से चुप्पी साधने का फैसला कर लिया है। ऐसा घर की परिस्थिति के कारण हो सकता है पर जो भी हो मैं तो राजमाता के ही कारण ही जनसंघ में आया था, मेरे लिए अभी भी राजमाता के प्रति वही सम्मान व आदर है जो पहले था। मेरी हार्दिक इच्छा है कि वे पुन: विचार करें। फिलहाल हमें उनका फायदा नहीं मिलेगा, जबकि हम बहुत ही ज्यादा आपत्ति में हैं। मैं एक बार जाकर राजमाता जी से बात करने का प्रयत्न करूँगा कि वे हमें सहयोग दें।
जगजीवन राम ने दिया इस्तीफा
आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण रहा कि जगजीवनराम जी ने कैबिनेट से तथा कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया सरकार पर उनका आरोप था कि इंदिरा गाँधी तानाशाह बन रही हैं, और गरीबी को खत्म करने के बजाय उनकी हालत और भी बद्तर कर रही हैं। हरिजन आदिवासियों का नाम लेकर अपना व्यक्तिगत फायदा उठा रही हैं। वे अपने अस्तित्व को ही ज्यादा महत्व दे रहीं हैं और अपने लड़के को सामने ला रही है। वे इमरजेंसी-मीसा लागू करके  नागरिकों के मूलभूत अधिकार खत्म करके देश का नाश कर रही हैं। वे कांग्रेस को अपने व्यक्तिगत हित में इस तरह उपयोग कर रही हैं मानो सभी कांग्रेसी उनके गुलाम हैं। वे पूरी सत्ता और संस्था को अपने लड़के का महत्व बढ़ाने में तन, मन, धन से लगी हैं। इस तरह कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का चुनाव के पूर्व इस्तीफा देना बहुत बड़ी खबर है। यही नहीं जगजीवन राम के साथ ही हेमवती नंदन बहुगुणा, नंदनी सतपती तथा और भी कई प्रमुख लोगों ने एक साथ अपने पदों तथा कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। इससे कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई तथा देश की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया। इस परिवर्तन से निश्चित तौर पर कांग्रेस जनोंहरिजन वर्ग और खासतौर से यू.पी. और बिहार में  बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। 
मुलाकात का सिलसिला
3-2-1977
जेल से बाहर आते ही मैं आज दिल्ली में अपने लोगों से मिलता जुलता रहा। अटल जी से भी भेंट हुई। आज मैं सुबह उनके घर गया वहाँ पर त्यागीजी, आडवाणी जी संजय जी, सेकलेचा जी आदि कई महत्वपूर्ण नेताओं से मुलाकात हुई। चुनाव की रणनीति पर चर्चा चलती रही। बलरामपुर के लोग अटल जी को वहाँ से ही खड़े होने के लिए विवश करने आये थे। लेकिन अटल जी ने भी अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर नहीं की। यद्यपि आडवाणी जी ने भी उन्हें सलाह दी।
इन सबके बाद भी वातावरण ऐसा बन रहा है कि अटल जी को नई दिल्ली क्षेत्र से खड़ा करेंगे। यद्यपि दिल्ली के बहुत से उम्मीदवार हैं। जनता पार्टी अटल जी के व्यक्त्वि का फायदा देश दूसर कोने में भी ले सकती हैं।
 इस बैठक में हम सबने तय किया कि इस समय सभी सीटों पर जनता पार्टी चुनाव लड़ेगी भले ही कुछ पार्टियों से जैसे डी.एम.के. तथा अकाली दल के साथ समझौता करके ही क्यों न लड़ें। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ सिर्फ एक ही उम्मीदवार खड़ा हो यही हम सबकी कोशिश रहेगी।
जगजीवनराम जी के आ जाने से जनता पार्टी को और बल मिल गया है और संजय गाँधी का युवक कांग्रेस लगभग निर्जीव-सा हो गया है।
इसी दौरान मैंने वीरेन्द्र सखलेचा तथा संजवेलकर जी से मध्यप्रदेश के सीटों के बारे में बात की। इसी चर्चा मैं खंडेलवाल जी से पहले ही कर चुका था। महाकौशल, छत्तीसगढ़ तथा रीवाँ की सीटों को लेकर जो भी मेरे सुझाव थे उससे वे  सहमत  थे।  मैंने अपनी राय 29 जनवरी को ही खंडेलवाल और सारंग जी को लिखित रूप से भेज दी थी। अब आगे क्या रणनीति बनती है यह वहाँ पँहुच कर ही मालूम चलेगी।
उस समय तक पुरुषोत्तम कौशिक जेल से छूटे नहीं थे ;इसलिए 29 तारीख की मीटिंग में उपस्थित नहीं हो पाए थे। इस दौरान सभी ओर से मुझ पर दबाव आ रहा है कि मैं महासमुंद सीट से चुनाव लड़ूँ , वह जनसंघ की सीट है और वहाँ की छह विधानसभा सीटों पर हमारा पूर्ण कंट्रोल है, दो सीटों पर समाजवाद का है। इस प्रकार से वह मेरे लिए ठीक है, ऐसा महासमुँद के लोगों का विचार है। अब देखे आगे क्या होता। मेरी इच्छा चुनाव लडऩे की बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन साथी चाहते हैं कि मैं यह चुनाव अवश्य लड़ूँहमारी जीत निश्चित है।
संपादन- डॉ. रत्ना वर्मा

प्रमाणिका छन्द

1.महातपा
 - ज्योत्स्ना प्रदीप

सिया बड़ी उदास है ।
न आस है न श्वास है ।।
अशोक के  तले रही ।
व्यथा कहाँ कभी कही ।।

सभी लगे विशाल थे ।
बड़े कई सवाल थे ।।
पिया- पिया पुकार के ।
सिया थकी न हार के ।।

पिया ,पिता न साथ रे ।

कहाँ अजेय नाथ रे ।।
धरा-सुता जया बड़ी ।
समेट पीर की घड़ी ।।

सहें  कहे न वेदना ।
हिया, जिया न भेदना ।।
‘पिया-पिया’ सदा जपा ।
सुकोमला महातपा ।।

रहे सभी डरे -डरे ।
सदेह भी मरे- मरे ।।
रक्षा करे सम्मान की ।
बड़ी महान जानकी ।।

2. हरी-भरी धरा करें

हिमाद्रि जो व्यथा सहे।
किसे वही कथा कहे।।
हरी भरी नहीं धरा।
विहंग का हिया भरा।।

न छाँव  है न ठौर है।
न पेड़  है न बौर है।।
न हास है न नीर है।
बयार भी अधीर है।।

चली नही उसाँस है ।
भला कहाँ विकास है।।
नदी  लुटी-पिटी घटी ।
कहाँ -कहाँ नहीं बँटी ।।

तरंग गंग-अंग की।
रही नहीं भुजंग-सी।।
मिटी नदी वसुंधरा।
इन्हें कभी नहीं तरा।।

दया नहीं तजें कभी।
न ज्ञान ही न मर्म ही।।
सुधा भरें उसे तरें।
हरी भरी धरा करें ।।
सम्पर्कः  मकान न.-32, गली न.-9, न्यू गुरु नानक नगर, गुलाब देवी रोड, जालंधर, पंजाब 144013