अटल जी के स्नेहिल अपनत्व की छाप
मेरे दिल में जीवन भर रहेगी
(गतांक से आगे)
आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट दिल्ली
27-1-1977
मैंने जो दरखास्त केन्द्र तथा प्रान्त को अपनी
बीमारी के इलाज के लिए भेजे थे, आज उसी के साथ एक पत्र
लिखकर माननीय अटल जी तथा भंडारीजी को भी भेजा है जिसमें मैंने लिखा है कि- सरकार
हमारे साथ क्यों ऐसा गलत व्यवहार कर रही है। उन्होंने कुछ थोड़े से लोगों को छोड़
दिया। इस समय विभिन्न जेलों में हमारे लगभग 90 प्रतिशत साथी बंद हैं। 14 से 25 साल
तक के बच्चे और युवा हजारों की तादात में जेलों में सड़ रहे हैं, हम कुछ लोग यदि छूट भी गए तो
क्या हम इन सबके के साथ न्याय कर पाएँगे? ऐसे में हमारा छूटना क्या शोभा देता है। यदि किसी को छोडऩे का ऑर्डर दिया भी
जाता है तो उस आर्डर को जेलों तक पहुँचने में महीनों लग जाते हैं। लालफीताशाही
पहले से कई गुना बढ़ गई है, भ्रष्ट्रचार, घूसखोरी, आतंक, अन्याय के विरूद्ध कोई भी
बोलने वाला नहीं। जनता इन सरकारी अन्याय और अत्याचार को देखकर भी चुप है, कोई आवाज नहीं उठा सकता। पर सरकारी तौर से चारों ओर यह प्रचारित किया जा रहा
है कि इस देश में जनता ही मालिक है, यहाँ सब लोग बहुत सुखी हैं, गरीबी खत्म हो गई, मँहगाई खत्म हो गई, घूसखोरी, जमाखोरी, अन्याय का अंत हो गया है। कानून का शासन है। लोगों को इस आपातकालीन ने बहुत
राहत दिया है तथा सभी प्रकार के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है, फसल अच्छी हुई, कल- कारखाने ठीक चल रहे हैं।
मैं कहता हूँ जब कानून ही ऐसा बना दिया गया हो तो
भला कौन आवाज उठाने की हिम्मत करेगा। शासन के विरूद्ध जिसने भी आवाज उठाने की
कोशिश की वह तुरंत जेल में बंद कर दिया जाता है। न कोई बोल सकता, न तालाबंदी कर सकता, न काम बंद कर सकता, न न्यायालय जा सकता, न सभा कर सकता, न अपनी बात अखबारों में छपवा
सकता, न प्रदर्शन कर सकता और न
रैली निकाल सकता।
जिस देश में जनता के सारे अधिकार छीन लिये गए हों, जिस देश की सारी अर्थव्यवस्था
तहस- नहस हो गई हो, बेकारी बढ़ गई हो, मुद्रास्फिति और भी खराब हो गई
हो वहाँ अपनी इन्हीं नाकामियों को छिपाने के लिए इंदिरा सरकार ने चुनाव का ऐलान
किया है और विरोधी दल को चुनाव की तैयारी का समय भी नहीं दिया। लोगों को आतंकित
करके, डरा- धमकाकर उन्होंने
अपना संगठन मजबूत किया, संसद व विधानसभा के सदस्यों को लालच व डर दिखाकर दल बदल करा लिया, ऐसी स्थिति में चुनाव का यह नाटक, क्या यही प्रजातंत्र है? इन सबके बाद भी अब जनता को फैसला करना होगा कि वह क्या चाहती है। उसके सामने
सिर्फ एक ही सवाल है कि वे ‘प्रजातंत्र चाहते हैं या एकतंत्र।‘तानाशाही चाहते हैं या जनता का राज्य?
मेरे पत्र के इन सब प्रश्नों को पढ़ कर अटलजी बीमार
होते हुए भी मुझसे मिलने आ गए। और मुझसे कहा-हम सब दलों ने मिलकर जिस ‘जनता पार्टी’का निर्माण किया है वह इन सब ज्यादतियों का किस तरह से मुकाबला कर सकती है, यही अब हमें तय करना होगा। अब
सिर्फ जनसंघ का प्रश्न नहीं रह गया है, अब तो सभी दलों का प्रश्न है। सभी राजनैतिक मीसा बंदियों को जल्द छोडऩा
पड़ेगा। हम सब मिल कर सरकार पर दबाब
डालेंगे और अपने सभी साथियों को जेल से जल्द से जल्द बाहर करेंगे।
अटल जी के इस जवाब से मैं संतुष्ट हुआ। मैंने अपने
प्रति हमेशा ही अटल जी का अत्यधिक प्रेम महसूस किया है। जब भी मेरे ऊपर कोई कठिनाई
आती है, भले ही वे स्वयं बीमार
क्यों न हों उसे हल करने में जुट जाते हैं। वे मुझसे बड़े प्यार से समझाते हैं कि
उग्र मत हो, ईश्वर हमारा साथ देगा।
चुनाव हम सब मिलकर ही लड़ेंगे। हमने जनता के सामने इंदिरा कांग्रेस के विकल्प के
रूप में एक पार्टी ‘जनता पार्टी’सामने रख दिया। जनता हमें अब यह
नहीं कह सकती कि हम आपस में बंटे हुए हैं।
अब तो सभी विरोधी दल के नेता, एक सिद्धांत, एक झंडा, एकचुनाव चिन्ह, एक प्रोग्राम को लेकर सामने आ गए हैं। मैं विश्वास के साथ कहता हूँ कि जनता
हमारा साथ देगी और हम चुनाव जीतेंगे।
चुनाव अभियान का शुभारंभ
30 जनवरी महात्मा गाँधी के शहीद दिवस के दिन जनता
पार्टी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की। अध्यक्ष मोरारजी देसाई तथा अटल बिहारी
वाजपेयी ने दिल्ली के रामलाल ग्राउण्ड से
तथा जयप्रकाश जी ने पटना में यह अभियान शुरू किया। इसी दिन कई प्रान्तों में भी
नेतागणों ने चुनाव अभियान शुरू किया। पर अभी भी कईप्रान्तों के मान्यता प्राप्त
पार्टी कार्यकारणी के सदस्यों तथा
अध्यक्षों को छोड़ा नहीं गया है। चुनाव 14 मार्च तक होगा कहते हैं जबकि जनता
पार्टी के सभी उम्मीदवार, नेता, प्रचारक, कार्यकर्ता जेलों में बंद है।
ऐसे में चुनाव किस तरह हो पाएगा? मैं तो चुनाव का बहिष्कार करने के पक्ष में हूँ। मेरी राय में जब तक सभी
राजनैतिक मीसा बंदियों को बिना शर्त नहीं छोड़ा जाता तब तक चुनाव नहीं लडऩा चाहिए।
वर्तमान परिस्थतियों को देखकर तो मुझे यह भी शंका है कि वे सभी चुनाव अधिकारियों
को यह हिदायत भी दे देंगी कि जनता पार्टी के सभी उम्मीदवारों की नामजदगी फार्म
रद्द कर दो, न रहेगा की बाँस न बजेगी
बाँसुरी। जिस प्रकार कम्युनिस्ट देशों में तानाशाही तरीके से चुनाव करवाए जाते हैं
उसी तरह अब हमारे देश में भी चुनाव होगा ऐसा अंदेशा है। शहीद दिवस के दिन इस विषय
पर विचार करना जरुरी है।
31-1-1977
आज मैं फिर इंतजार कर रहा हूँ अपनी रिहाई के कागज़ातों
का, अगर नहीं आया तो मैं फिर
से एक आखरी निवेदन सरकार को दूँगा, जिसमें यह तो माँग करूँगा ही कि या तो रिहा करो
या मुझे इलाज के लिए जहाँ भी ठीक स्थान है, बंबई या बेंगलोर भेज दो, साथ ही यह भी कि मुझे मेरी
बीमारी के संबंध में गलत जानकारी दे कर, झूठा आश्वासन दिया जा रहा
है और समाचार पत्रों में जिस तरह से गलत प्रचार किया जा रहा है उसपर भी कुछ न कुछ
कदम उठाना पड़ेगा; क्योंकि यहाँ मैं इलाज के लिए जिस हालत में आया था, आज भी वैसा
ही हूँ उल्टेहृदय रोग से और पीडि़त हो गया हूँ, जबकि गत 4-5 वर्षों से मैं इस रोग से मुक्त था।
आज पुन: समाचार-पत्रों में यह समाचार है कि ‘जनता पार्टी’प्रान्त के संचालन के लिए जो 9
व्यक्ति चुने गए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत अभी भी जेलों में हैं। इसमें अखिल भारतीय जनसंघ के संगठन मंत्री संचालक कुशाभाऊ ठाकरे तथा
मध्यप्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष बृजलाल वर्मा के नाम भी हैं, जिन्हें छोडऩे का ऑर्डर होने के
बाद भी नहीं छोड़ा गया।
रामलीला
ग्राउंड में अटल जी ने अपने भाषण में एक रहस्य खोला कि जब जनता पार्टी के लोग इंदिरा
गांधी से मिलने गये और उन्होंने इंदिरा जी के सामने अपनी माँग रखी कि सभी राजनैतिक
दलों के मीसाबंदी छोड़ क्यों नहीं दिए जाते, जबकि आप चुनाव कराने की इच्छा करती हैं, तो उनका जवाब था कि मैंने सभी प्रान्तों को आर्डर दे दिया है कि वे सभी
मीसाबंदियों को छोड़ दें; परंतु वे (प्रान्त के लोग) मेरी बात नहीं सुन रहे हैं।
उनका यह जवाब बड़ा विचित्र लगा, साफ जाहिर था कि वे झूठ
बोल रही हैं।
रामलीला ग्राउंड में आयोजित जनता पार्टी के पहले
चुनावी आम सभा में एक लाख से भी अधिक लोग तीन घंटे तक, ठंड में बैठे हुए शांति से नेताओं की बातों को सुनते रहे। उन सबके बावजूद
जबकि सभा में दिल्ली के बाहर से आने वाली जनता को सरकार ने जबरन रोका। शहर की बसों
को रामलीला ग्राउंड की ओर जाने नहीं दिया गया। ओटोरिक्शा जिसमें लाउडस्पीकर लगाकर
ऐलान किया जा रहा था उसे भी रोका गया। यह भीड़ इस बात का संकेत है कि जनता अब
बदलाव चाहती है, वह आपतकाल के विरोध में जनता पार्टी का साथ देगी इस सभा से यह स्पष्ट संकेत
मिल रहे हैं।
जनता का आक्रोश साफ नजर आ रहा है। पटना में
जयप्रकाश की सभा में भी लाखों की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि जनता हमारे साथ
है। इंदिरा कांग्रेस की तानाशाही जो 19 माह तक चली, जिस दौरान महँगाई, गरीबी, अव्यवस्था, भ्रष्ट्राचार, घूसखोरी, बेईमानी, नौकरशाही का नंगा नाच हुआ। आतंक, गैरकानूनी कार्य, अन्याय, जनता के मूलभूत अधिकारों को छीनना, संविधान में मनमाना परिवर्तन करना यह सब अब कोई भी बर्दाश्त नहीं करेगा।
अभी दो दिन पहले ही न्याय पालिका के अधिकारों पर भी
कुठाराघाट किया गया है- खन्ना जो सबसे सीनियर जज थे, उसे चीफ जस्टिस न बनाकर उनके
जूनियर बेग को, चीफ जस्टिस बना दिया गया, बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार 1963 में किया गया था, तब रे को चीफ जस्टिस बनाकर तीन
सीनियर जजों के अधिकारों को खत्म किया गया था। उस समय भी उन तीनों जजों ने इसे
अपना अपमान कहते हुए इस्तीफा दे दिया था, वैसे ही खन्ना ने भी इस्तीफा दे दिया, जो कि न्याय संगत ही है। उस वक्त यह कहा गया कि ये तीनों जज समय की प्रगति
को ख्याल न करके फैसला करते हैं जो कि देशहित व जनहित में बाधक होता है। अब कह रहे
हैं कि क्योंकि खन्ना 6 माह बाद रिटायर होगा इसलिए बेग को चीफ जस्टिस बनाया गया
है।
राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ जो कि सबसे ज्यादा राष्ट्रवादी, राष्ट्र प्रेमी पार्टी है, उसे वे राष्ट्रद्रोही कहती हैं; क्योंकि वह
कांग्रेस के खिलाफ है।
20 सूत्रीय
कार्यक्रम कांग्रेस पार्टी का नहीं इंदिरा का प्रोग्राम है। यहाँ तो इंदिरा ही
पार्टी है, इंदिरा ही देश है। इंदिरा
ही इंडिया यह कहा जा रहा है। व्यक्ति ही राज्य है, देश है, जनता या देश नहीं। अगर इंदिरा गाँधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला नहीं
देता तो शायद आपातकाल नहीं लगता। वह अपने को जनता का प्रतिनिधि नहीं ;बल्कि उसका
मालिक मान रही हैं, वह अपने को अदालत और संविधान तथा पार्लियामेन्ट से ज्यादा शक्तिशाली मानती
हैं।
30 जनवरी को हमने गाँधी जी को याद करके उनके
विचारों पर उनके कार्य करने की विधियों, उनके सत्य और अहिंसा के आचरण को याद किया ; लेकिन आज इंदिरा गाँधी उनके
विपरीत कार्य करके देश में द्वेष, भ्रष्ट्रचार, भ्रम अविश्वास, दुर्भावना तथा गरीब अमीर में भेद पैदा करके वर्ग संघर्ष का एक रूप सामने
खड़ा कर रहीं है और लोगों के दिलों में एकता के बजाय दुराभाव, देश प्रेम के बजाय व्यक्तिगत
उपासना पर जोर दे रही हैं। तभी तो वे कहती हैं कि इंदिरा भारत है, इंदिरा नहीं तो भारत नहीं। देश
की सत्ता और शक्ति एक व्यक्ति में समाहित हो गई है। जबकि गाँधी जी ने सत्ता को
बिखेरा था, जन-जन, ग्राम-ग्राम में, क्योंकि यह किसानों का देश है, ग्रामों का देश है इसलिए ग्राम
राज्य तथा गरीबों के राज्य जिसे आज के शब्दों में जनता का राज्य, प्रजा का राज्य, प्रजातंत्र कहते हैं। वे चाहते
थे कि देश की सत्ता ग्राम के हाथों में रहे, देश की सत्ता विकेन्द्रित रहे, देश ग्राम पर निर्भर रहे। वे खुद तीसरे दर्जें पर चलते थे, सूत कातकर कपड़ा पहनते थे, एक कुटिया में रहते थे, अपना तथा अपने गाँव व आश्रम का
कार्य खुद करते थे।
हमें भी
चाहिए कि हम अपनी पूंजी, हैसियत अपनी संस्कृति, अपने आदर्शों को देखकर समझकर आगे बढ़े, हम गरीब देश के वासी हैं, गाँव में किसान हैं, हमें गाँव की तरक्की करनी है, गाँव को बढ़ाना है, हर गाँव रिपब्लिक हो। अपने में स्वयं पूर्ण हो। सारी सत्ता का केन्द्र ग्राम
हो, ऐसी व्यवस्था को गाँधी जी
रामराज्य कहते थे। पर हम यह सब आज भूल गये हैं। लेकिन हमें आज उसी महात्मा, देश के उद्धारक, देश के निर्माता के आदर्शों पर
चलना है। जनता पार्टी उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए, देश के सभी वर्गों को खासतौर से नौजवानों का आह्वान कर रही है कि वे संगठित
होकर देश को भ्रष्ट्रचार, दुराचार, गरीबी तथा बेरोजगारी से बचाएँ और उत्थान के लिए आगे बढ़ें।
अब देखना यह है कि देश किस ओर जाता है। हमने तो देश
को एक रास्ता दिया, गाँधी का रास्ता, सत्य और अहिंसा का रास्ता, कानून का रास्ता, प्रजातांत्रिक रास्ता। 'जनता पार्टीका निर्माण करके
जयप्रकाश जी के मार्गदर्शन में इंदिरा गाँधी
के इस तानाशाही राज को खत्म करना होगा ताकि एक प्रजातांत्रिक देश का निर्माण हो
सके और देश के नागरिक अपने मूल अधिकारों को प्राप्त करके सुख पूर्वक रह सकें और
हमें पूरा विश्वास है जनता आगे आएगी।
अटल जी से मुलाकात व रिहाई के आदेश
1-2-1977
कल रात को करीब 9 बजे अटलजी मेरे पास आए, पहले उन्होंने मेरी रिहाई के
बारे में बताया कि आज मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी आ रहे हैं तथा ओम मेहता
गृहमंत्री से चर्चा करके मेरा नाम उन्हें लिखवा दिया है तथा मेरी रिहाई कल हो जाने
की आशा है।
तब मैंने उन्हें बताया कि मेरी रिहाई का आदेश भोपाल
से बहुत पहले तथा रायपुर कलेक्टर से 25 जनवरी को दिल्ली के लिए डिस्पैच हो गया है, ऐसा समाचार है ; पर 31 तारीख भी
बीत गई पर अभी तक वह आदेश यहाँ तक नहीं पहुँचा है। पूछने पर उनका जवाब होता था कि
पत्र आने में 10-12 दिन का लगना मामूली बात है।
अटल जी से मैंने ठाकरेजी तथा दूसरे साथियों की रिहाई के बारे में जानना
चाहा ,तो उन्होंने बताया कि बाकी सब भी छोड़े जाएँगे तथा ठाकरे जी भी जल्द ही
छोड़े जा रहे हैं।
इसके बाद उन्होंने रामलीला ग्राउण्ड में हुई जनता
पार्टी की पहली आमसभा जिसमें मोरारजी भाई तथा अटलजी मुख्य वक्ता थे, की जानकारी देते हुए कहा कि
-आमसभा में जनता का उत्साह देखते ही बनता था। वे सरकार के आतंक की परवाह नहीं कर
रहे हैं। कई बाधाओं जैसे पुलिस का भय तथा मोटर- गाडिय़ाँ को चारों ओर से बंद करने
के बाद भी वहाँ एक लाख से ज्यादा लोग उपस्थित थे। वे ठंड में भी शान्त होकर हमें
सुन रहे थे। इसी प्रकार पटना, कानपुर, जयपुर तथा अन्य कई स्थानों में, चरणसिंह व चंद्रशेखर की आमसभा भी अच्छी रही । पटना में जयप्रकाश जी की सभा
में लोगों की अथाह उपस्थिति थी। दिल्ली
में यह पहली और बड़ी ऐसी आमसभा थी जो सिर्फ एक पोस्टर से हुई। यह सब बड़ा
आश्चर्यजनक है?
अटलजी का यह उत्साह से भरा कमेन्ट था। उनके उत्साह
को देखते हुए मैंने अनुमान लगाया कि हमें
सम्पूर्ण देश में अच्छी सफलता मिलेगी। पाबंदी के बाद भी समाचार पत्रों ने
अच्छा कवरेज दिया। लेकिन आकाशवाणी ने जनता पार्टी के मीटिंग की मात्र सूचना ही दी।
शेष उन्होंने संजय गाँधी द्वारा की गई जनता पार्टी की आलोचना का प्रचार ही ज्यादा
किया। यह सब देखते हुए शंका है कि हमें चुनाव प्रचार में आकाशवाणी और टेलिविजन में
शायद ही स्थान मिलेगा।
इधर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने तो बयान ही दे
दिया कि वे राजनीति में भाग नहीं लेंगी, हाँ उनके पुत्र शायद कांग्रेस की ओर से प्रचार अगर नहीं करेंगे तो कम से कम
उन्हें हर प्रकार से मदद करेंगे, ऐसा मेरा अनुमान है। अब सरदार आंग्रे साहब क्या करते हैं यह देखना होगा। अभी
तक तो साथ हैं, हमारी 9 सदस्यों की कमेटी में भी प्रदेश के चुनाव संचालन के सदस्य हैं, वे अब जेल से छूट भी गये हैं।
यदि सभी सक्रिय हो जाएँ तो हमें म.प्र. में अच्छी सफलता मिल सकती है।
आज मुझे
शाम लगभग 6 बजे तिहार सेंट्रल जेल नई दिल्ली के असिस्टेन्ट सुपरिनटेनडेन्ट ने मेरा
डिटेन्शन का रिव्होकेशन आर्डर दिया, जो कि 18-12-1976 को
भोपाल से निकला था, पर अभी तक व्यवस्थित पहुँच
नहीं पाया था। वह आर्डर अब रायपुर कलेक्टर से वायरलेस द्वारा भेजी गई है। उसी आधार
पर मुझे रिव्होकेशन आर्डर मिला।
मुझे ऐसा लगता है कि अटल जी गृहमंत्री ओम मेहता से
मेरी रिहाई को लेकर एक दिन पहले मिले थे और भोपाल से चीफ सेक्रेटरी श्री
सुशीलचंद्र वर्मा को भी बुलाया था, यह सब बातें एक साथ हुई। 20-10-1976 से आजतक लगातार मुझे जेल से छोड़े जाने
का प्रयास मेरी तबियत को देखते हुए किया जा रहा था परंतु सरकार को किसी के जीवन-
मरन से क्या लेना देना। उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी मुझे पूरे समय जेल में रखा
और मेरे इलाज में भी लापरवाही बरती। अटलजी ने मेरे लिए काफी प्रयत्न किया। उनका
प्यार हमेशा मेरे साथ रहा। जब भी समय मिलता वे मुझसे जेल में मिलने आते रहे तथा
मेरी सुविधाओं का ख्याल रखते रहे, उनके इस स्नेहिल अपनत्व की अमिट छाप मेरे दिल में जीवन भर रहेगी।
हमारे जनसंघ पार्टी के बहुत से प्रमुख नेता तथा
हजारों कार्यकर्ता अभी भी जेलों में बंद है तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक के सदस्यगण
भी नहीं छोड़े गए हैं। चूंकि इस संस्था को गैरकानूनी करार दिया गया है, जबकि उसके
खिलाफ एक भी ऐसा चार्ज नहीं है, जिससे उन्हें गैरकानूनी कहा जाए। फिर भी इंदिरा जी को उन्हीं से डर है ; क्योंकि
वह एक संगठित राष्ट्रवादी, देशभक्त संस्था है जो किसी भी अराष्ट्रीय अथवा असामाजिक कार्य, जो देश को
विघटन की ओर ले जाएगी का विरोध करती है। वह भारत को एक समृद्धिशाली खुशहाल देश के
रुप में देखना चाहती है जहाँ भारतीय संस्कृति के मूल्यों की रक्षा हो सके। यही राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ की मूल भावना है। पर इंदिरा गाँधी ऐसा नहीं चाहतीं। वे यूरोपीय
सभ्यता तथा संस्कृति से ज्यादा प्रभावित हैं। उन्हें अपने देश की संस्कृति या
सभ्यता से कोई प्यार या लगाव नहीं है। उन्हें तो सिर्फ अपना कद अपना महत्व बढ़ाना
है। अपने व्यक्ति की सत्ता को ही महत्व
देना है। वे किसी से प्रभावित है तो वह है
रूस, क्योंकि उसी ने उन्हें गद्दी पर बिठाने में सबसे ज्यादा मदद की है। इसी
अहसान तले वे रूस से दबे हैं। वे पूर्णत: व्यक्तिवादी तानाशाह बनना चाहती हैं।
2-2-1977
कल शाम को जैसे ही मुझे जेल के अधिकारियों ने
रिव्होकेशन आर्डर दिया, पूरे अस्पताल में बात फैल गई। थोड़ी देर बाद म.प्र. के एम.पी. पांडे तथा
वर्माजी भी आ गए और उन्होंने जानकारी दी कि भोपाल में मीटिंग में क्या हुआ।
उन्होंने रायपुर से मुझे उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा के बारे में भी जानकारी दी
साथ ही यह भी बताया कि पुरुषोत्तम कौशिक जी रायपुर से चुनाव लडऩे के लिए तैयार
नहीं हैं। जबकि मेरे ख्याल से वही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। मेरा तो स्वास्थ्य भी जेल में रहते हुए खराब है तथा
लगातार 20-25 वर्षों से विधानसभा का सदस्य बनते रहा हूँ तो अब मेरी कहीं से भी
उम्मीदवार बनने की इच्छा नहीं है। मेरे विचार से अब नौजवानों को, नए लोगों को सामने लाना चाहिए।
सभी दलों ने एक होकर जिस ‘जनता पार्टी’का निर्माण किया है, उम्मीद है उसको सबकी मदद मिलेगी और हमारी पार्टी बहुमत से जीतेगी। मेरे
ख्याल से पुरुषोत्तम कौशिक को रायपुर से चुनाव लड़ना चाहिए एक तो उनकी अभी उम्र कम
है, नये हैं, उत्साही हैं, अभी-अभी उसका व्यक्तित्व भी जनता
के सामने उभर कर आया है। यह सब मैं तो सोच रहा हूँ पर सभी बाते वहाँ पँहुचकर ही
स्पष्ट हो पाएँगी, देखते हैं कि वे रायपुर से चुनाव लड़ने को राजी होते हैं या नहीं; क्योंकि रायपुर से किसी अच्छे
प्रभावशाली उम्मीदवार को ही खड़ा करना होगा। यूँ तो हमें म.प्र. के सभी 40 सीटों
पर ही अच्छे उम्मीदवार खड़ा करना है। 9 व्यक्तियों की जो समिति चुनाव संचालन तथा
पार्टी संगठन के लिए बनी है, जिसमें ठाकरे साहब सरीखे अनुभवी व्यक्ति हमारे मार्ग
दर्शन के लिए संयोजक बनाए गए हैं, ऐसे में स्थितियाँ बेहतर होंगी ऐसी उम्मीद मुझे है। मेरी तबियत को देखते हुए
मैं जेल से छूटने के बाद 8-10 दिन आराम
करना चाहता हूँ। क्योंकि तुरंत भाग-दौड़ करने से तबियत और बिगड़ सकती है, जिससे आगे काम करने में और
कठिनाईयाँ आ सकतीं हैं। यद्यपि परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि मैं एक दिन भी आराम नहीं
कर पाऊँगा ऐसा लग रहा है।
हमें मध्य प्रदेश में सरदार आंग्रे साहब का ज्यादा
से ज्यादा फायदा उठाना है, क्योंकि राजमाताजी तो अलग हो ही गई है तथा उनका लड़का
विरोधी पार्टी में चला गया है। यह बात जरूर है कि उन्हें सरकार बहुत परेशान कर रही
है आर्थिक रूप से, गलत-गलत आरोप लगाकर सता रही है, पर बेटे के मन में क्यों इतना डर व भय समा गया यह समझ से परे हैं ;क्योंकि
वे एक खानदानी स्वाभिमानी माँ - पिता के बेटे हैं। सिंधिया खानदान को मैं इतना
कमजोर नहीं मानता था पर वे भी सभी राजा महाराजाओं की तरह शासन के आगे दब गये।
लगता है
इसी करण उनकी माँ राजमाता ने भी राजनीति से चुप्पी साधने का फैसला कर लिया है। ऐसा
घर की परिस्थिति के कारण हो सकता है पर जो भी हो मैं तो राजमाता के ही कारण ही
जनसंघ में आया था, मेरे लिए अभी भी राजमाता के प्रति वही सम्मान व आदर है जो पहले था। मेरी
हार्दिक इच्छा है कि वे पुन: विचार करें। फिलहाल हमें उनका फायदा नहीं मिलेगा, जबकि हम बहुत ही ज्यादा आपत्ति
में हैं। मैं एक बार जाकर राजमाता जी से बात करने का प्रयत्न करूँगा कि वे हमें
सहयोग दें।
जगजीवन राम ने दिया इस्तीफा
आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण रहा कि जगजीवनराम जी
ने कैबिनेट से तथा कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया सरकार पर उनका आरोप था कि इंदिरा
गाँधी तानाशाह बन रही हैं, और गरीबी को खत्म करने के बजाय उनकी हालत और भी बद्तर कर रही हैं। हरिजन
आदिवासियों का नाम लेकर अपना व्यक्तिगत फायदा उठा रही हैं। वे अपने अस्तित्व को ही
ज्यादा महत्व दे रहीं हैं और अपने लड़के को सामने ला रही है। वे इमरजेंसी-मीसा
लागू करके नागरिकों के मूलभूत अधिकार खत्म
करके देश का नाश कर रही हैं। वे कांग्रेस को अपने व्यक्तिगत हित में इस तरह उपयोग
कर रही हैं मानो सभी कांग्रेसी उनके गुलाम हैं। वे पूरी सत्ता और संस्था को अपने
लड़के का महत्व बढ़ाने में तन, मन, धन से लगी हैं। इस तरह
कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति का चुनाव के पूर्व इस्तीफा देना बहुत बड़ी खबर
है। यही नहीं जगजीवन राम के साथ ही हेमवती नंदन बहुगुणा, नंदनी सतपती तथा और भी कई प्रमुख
लोगों ने एक साथ अपने पदों तथा कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। इससे कांग्रेस के
लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई तथा देश की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया। इस परिवर्तन
से निश्चित तौर पर कांग्रेस जनों, हरिजन वर्ग और खासतौर से
यू.पी. और बिहार में बहुत ज्यादा प्रभाव
पड़ेगा।
मुलाकात का सिलसिला
3-2-1977
जेल से बाहर आते ही मैं आज दिल्ली में अपने लोगों
से मिलता जुलता रहा। अटल जी से भी भेंट हुई। आज मैं सुबह उनके घर गया वहाँ पर
त्यागीजी, आडवाणी जी संजय जी, सेकलेचा जी आदि कई महत्वपूर्ण
नेताओं से मुलाकात हुई। चुनाव की रणनीति पर चर्चा चलती रही। बलरामपुर के लोग अटल
जी को वहाँ से ही खड़े होने के लिए विवश करने आये थे। लेकिन अटल जी ने भी अपने
स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर नहीं की। यद्यपि आडवाणी जी
ने भी उन्हें सलाह दी।
इन सबके बाद भी वातावरण ऐसा बन रहा है कि अटल जी को
नई दिल्ली क्षेत्र से खड़ा करेंगे। यद्यपि दिल्ली के बहुत से उम्मीदवार हैं। जनता
पार्टी अटल जी के व्यक्त्वि का फायदा देश दूसर कोने में भी ले सकती हैं।
इस बैठक
में हम सबने तय किया कि इस समय सभी सीटों पर जनता पार्टी चुनाव लड़ेगी भले ही कुछ
पार्टियों से जैसे डी.एम.के. तथा अकाली दल के साथ समझौता करके ही क्यों न लड़ें।
इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ सिर्फ एक ही उम्मीदवार खड़ा हो यही हम सबकी कोशिश
रहेगी।
जगजीवनराम जी के आ जाने से जनता पार्टी को और बल
मिल गया है और संजय गाँधी का युवक कांग्रेस लगभग निर्जीव-सा हो गया है।
इसी दौरान मैंने वीरेन्द्र सखलेचा तथा संजवेलकर जी
से मध्यप्रदेश के सीटों के बारे में बात की। इसी चर्चा मैं खंडेलवाल जी से पहले ही
कर चुका था। महाकौशल, छत्तीसगढ़ तथा रीवाँ की सीटों को लेकर जो भी मेरे सुझाव थे उससे वे सहमत
थे। मैंने अपनी राय 29 जनवरी को ही खंडेलवाल और सारंग जी को लिखित
रूप से भेज दी थी। अब आगे क्या रणनीति बनती है यह वहाँ पँहुच कर ही मालूम चलेगी।
उस समय तक पुरुषोत्तम कौशिक जेल से छूटे नहीं थे ;इसलिए
29 तारीख की मीटिंग में उपस्थित नहीं हो पाए थे। इस दौरान सभी ओर से मुझ पर दबाव आ
रहा है कि मैं महासमुंद सीट से चुनाव लड़ूँ , वह जनसंघ की सीट है और वहाँ की छह विधानसभा सीटों पर हमारा पूर्ण कंट्रोल है, दो सीटों पर समाजवाद का है। इस
प्रकार से वह मेरे लिए ठीक है, ऐसा महासमुँद के लोगों का विचार है। अब देखे आगे क्या होता। मेरी इच्छा
चुनाव लडऩे की बिल्कुल भी नहीं है, लेकिन साथी चाहते हैं कि मैं यह चुनाव अवश्य लड़ूँ, हमारी जीत निश्चित है।
संपादन- डॉ. रत्ना वर्मा
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