मेरे सामने वाली गली
-मंजूषा मन
सुबह सबेरे मुँह अँधेरे
सुनाई देने लगती हैं पदचाप..
बुजुर्ग स्त्रियों की...
जो चुन रहीं होती हैं पूजा के फूल
साथ में करतीं बातें
किसी धार्मिक कहानी
बाबा के प्रवचन पर,
कुछ बुजुर्ग पुरुष
हाथों में छड़ी थामे
साझा कर रहे थे अपने सुख दुख
याद कर रहे हैं गुजरे दिन
टहलते हुए
मेरे घर के सामने वाली गली में,
इसी गली में
गूँजती है –‘’आलू,
टमाटर, भटा
ले लो....’’-की आवाज,
अलसुबह ही
सिर पर सब्जी की टोकरी लिये
निकल पड़ती है घर से
मेरी गली में टेर लगाती...
इसकी आवाज का इंतज़ार रहता है
कई घरों की रसोई को...
इसी गली में
बच्चे खेलते हैं क्रिकेट
तीन लकड़ियाँगाड़कर
हाँ...
कुछ बच्चों के स्कूल का ऑटो भी आता है
हॉर्न बजाते,
माँओं की टाटा... बाय बाय
सुनाई देती है...
और दिखाई देते हैं आंखों में तैरते
जाने कितने सपने,
यहीं सुनाई देती है.... एक पुकार
‘ओ सुनीता... हो गया तेरा
काम’
और बस....
इकट्ठी हो जातीं हैं स्त्रियाँ
अपने अपने काम का हाल लेकर,
सुख-दुख की बातें करतीं
चूड़ियाँ खनकतीं
टी. वी. सीरियल की बातें करतीं
बच्चों के ऊधम का बखान करतीं,
पति का प्यार और डाँट सुनातीं
नई साड़ी... नए गहने दिखातीं,
हँसी ठिठोली भी...
ये मिलकर करतीं हैं मोल-भाव
फेरीवालों से
दुआ सलाम कर
घुस जातीं हैं घर में
बचे काम निपटाने।
शाम ढले लौटने लगते हैं
काम पर गए पुरुष
गली में शोर मचाते बच्चे
भागने लगते हैं ‘पापा...
पापा’-कहते
अपना खेल छोड़...
रात ढले
मुन्नू, चुन्नू
के पापा.. और दूसरे पुरुष
देश -दुनिया की करते हैं चर्चा
सुनते हैं बढ़ रहे परिवार का खर्चा,
होतीं हैं समाचार की बातें...
और फिर शुभरात्रि...
जाने क्या क्या घटता है
मेरे घर के सामने वाली गली में
कितनी जिंदा है
मेरे घर के सामने वाली गली,
यहाँ जी रहा है अब भी
अपनापन... और प्रेम।
सम्पर्कः अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन- भाटापारा,ग्राम- रवान (Rawan),
जिला- बलौदा बाजार (Baloda Bazar) छत्तीसगढ़ -
493331 , मोबाइल – 09826812299
2 comments:
बहुँत ही बारीक नजर जैसे बैठे बैठे प्रत्येक घटना को देखा गया हो।सुंदर चित्रण। बधाई मंजूषा जी।आपने जो जिया है वही लिखा है।
बचपन की यादें ताजा हो गईं बढ़िया भावपूर्ण रचना सै पकिचय कराने का सादर धन्यवाद लेखनी यूं ही शब्दों को सार्थक बनाती रहे...बधाई शुभेच्छा
राजेश शुक्ल,जामुल ए सी सी सीमेंट.
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