1.प्रतिभा का स्वागत
हरि जोशी
उस समय तक उसकी रचनाओं को पत्रिकाओं में स्थान नहीं मिलता था। फिर भी पत्र
पत्रिकाओं में उसके द्वारा रचनाएँ भेजते रहने का क्रमजारी था। वह नगर की साहित्यिक
गोष्ठियों में जाता ज़रूर, लेकिन सब कोई उसे गधा
समझते थे पर घास नहीं डालते थे।
बाद में कई बार उसके द्वारा गोष्ठियों में पढ़ी गई रचनाएँ, सर्वमान्य दिग्गजों
द्वारा अमान्य कर दी गयीं।
वह हीन भावना से ग्रस्त हो जाता किन्तु कुछ और बेहतर लिखने की कोशिश करता रहता। कभी
कभार पत्रिकाओं को भी प्रकाशनार्थ भेज देता।
दो वर्ष के अंतराल के बाद एक दिन सहित्यकार “क” ने उसे बताया कल गोष्ठी में कई लेखक तुम्हें भला बुरा
कह रहे थे।आजकल तुम आते नहीं। तुम्हारी घटिया रचनाओं को बढ़िया पत्रिकाओं में कैसे
स्थान मिल जाता है ?
अगले दिन “ख” ने उससे भेंट की। साहित्य जगत में तुम्हारी चर्चा है
तुम बहुत घमंडी हो गए हो। रचनाएँ छपने से कुछ नहीं होगा। लेखकों के बीच उठना बैठना
चाहिए।
उसके कार्यालयीन मित्र ने सूचना दी तुम्हारी उस रचना पर कई नेता बहुत नाराज़
हैं। शायद तुम्हारे विरुद्ध कोई कार्यवाही भी हो जाये ?
रचना के आधार पर कुछ दिनों बाद उसके विरुद्ध शासकीय कार्यवाही होने लगी। वह
आश्वस्त हो गया “उसकी प्रतिभा का समुचित
स्वागत होने लगा है ।”
2. मालिक तो हम हैं
दोनों वृद्ध हो चुके थे अतः एक दूसरे को सहारा देते हुए चल रहे थे।आर्थिक दशा
भी समान ही थी अतः दोस्ती में प्रगाढ़ता थी। एक की कमीज़ फटी हुई थी तोदूसरे की धोती। दोनों
के पाँव नंगे थे पर सिर गर्व से तने हुए।
कुछ मिनिट पूर्व एक कार बगल से गुज़री थी, किन्तु कार के मालिक की दृष्टि इन फालतू लोगों पर नहीं पड़ी थी।आगे जाकर कार
बाज़ार में रुक गई। दोनों मित्रों में से एक कुँअर विक्रम ने कार स्वामी से खुद ही
प्रश्न किया “बाबूजी आजकल बहुत व्यस्त
रहने लगे हैं, व्यापार में इतने रम गए
हैं की पुराने परिचितों को ही भुला बैठे ?”
“नहीं नहीं।अरे हुज़ूर
आपका ही तो खा रहे हैं। धंधे की परेशानियों में इतना उलझा हुआ हूँ कि बगल से निकल
आया पर आपको ही नहीं देख पाया? माफ़ करेंगे।जल्दी ही आपके
दर्शन करने आऊँगा।आज्ञा हो तो अभी चलूँ ? थोडा
जल्दी में हूँ।”आँख की शर्म करते हुए कार
मालिक ने झुककर उत्तर दिया।
राजाराम ने कुँअर विक्रम की ओर ससम्मान देखा और पूछ लिया “ यह कौन सज्जन थे? आपसे
कितनी विनम्रता से बात कर रहे थे ?”
बात असल में यह है कि मेरे पिता इस राज्य के राजा थे। बाबूलाल के पिता उस ज़माने
के कोषागार के मुंशीजी। बहुत विश्वसनीय और कर्मठ। इतने विश्वसनीय कि पिताजी का पूरा
पैसे का हिसाब किताब यही देखते थे।बाद में राज्य भले ही चला गया,मुंशीजीलम्बे
समय तक बने रहे।धीरे -धीरे मुंशीजी संपन्न होते गए और पिताजी कंगाल। जब पूरा खजाना
खाली हो गया तो मुंशीजी ने भी नौकरी छोड़ दी, व्यापार करने लगे। नदी सूख जाये तो सारे पक्षी भी उड़ जाते हैं ।
किन्तु आपने अपनी आँखों से देखा वह कार से उतरे, झुककर मुझे हुज़ूर ही कहा?कुमार विक्रम ने मूँछों
पर हाथ फेरते हुए कहा-कुछ भी कहो “आज भी वह हमें मालिक ही
मानता है और खुद को सेवक।”
“ मैं भी मालिक हूँ, तभी तो आपसे गहरी मित्रता है?”राजाराम ने भी अपनी फटी कमीज़ का कॉलर दोनों हाथों से
उचकाते हुए कहा।
“वह कैसे “ कुँअर विक्रम ने प्रश्न किया।
राजाराम ने अपनी स्मृति को कुरेदते हुए उत्तर दिया “उस दिन लाल बत्ती वाली कार में, बन्दूक धारियों की सुरक्षा के बीच मंत्री भी आये थे।हमारे
विधायक भी उनके स्वागत के लिए एक पाँव पर खड़े थे।
खूब खा पीकर आये होंगे क्योंकि खूब डकार ले रहे थे।भाषण भी सांड की डकार का
आभास दे रहा था।हमें तो बैठने को दरी भी नहीं मिली।लोगों ने जो जूते चप्पल छोड़े थे
उन्हीं पर हम बैठ गए ।
भाषण में उन्होंने हमें भी देश का मालिक ही बताया।कह रहे थे” मतदाता ही इस देश का मालिक है,हम तो उसके छोटे से सेवक हैं।”
अब दोनों एक दूसरेका कन्धा पकड़कर चाय की गुमटी में थे।आर्डर दे रहे थे “दो चाय लाना,कट।याने
एक को दो बनाकर।”
3.भीख
3.भीख
लखमीचंद- यह पाँच वर्ष का लड़का भीख माँगता है? अभी
से ही माता पिता ने भीख माँगने की आदत डाल दी है ? ऐसे
भिखारियों को मैं कभी भीख नहीं देता।
लखमीचंद- इन्हें कोई भी डाँट देता है पर ये अपनी आदत से कभी बाज़ नहीं आते।फिर
शुरू हो जाते हैं।
अधीनस्थ कर्मचारी-हाँ सर, इन लोगों की दुम हिलाने
की आदत पड़ गई है , आसानी से जाती नहीं.?
लखमीचंद- भीख माँगना बुरा है,
अपमानित
होकर होकर पुनः माँगते रहना तो और भी बुरा।
अधीनस्थ कर्मचारी- बिलकुल ठीक सर, आपका विश्लेषण सही है ।
लखमीचंद- आज मंत्रीजी का जन्म दिन है।अभी दस ही तो बजे हैं, चलो फूलों का बढ़िया हार ले चलें।संचालक के पद पर
मेरी पदोन्नति हो जाये तो अच्छा।
अधीनस्थ कर्मचारी- हाँ सर यही उपयुक्त समय होता है कुछ माँगने का। बड़े आदमी हैं, खुश होकर कुछ न कुछ तो दे ही देंगे ।
लखमीचंद- लेकिन ऐसी बात करो तो कभी कभी वह डाँट भी देते हैं ।
अधीनस्थ कर्मचारी- तो क्या हुआ सर, पुराने मंत्री भी डाँट देते थे।लेकिन हमें निवेदन करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए।वह
दें या न दें हमें माँगना नहीं छोड़ना चाहिए।
लखमीचंद- उन्होंने तो मुझे पदोन्नति नहीं दी क्या पता वर्तमान मंत्री भी देते
हैं या नहीं? लेकिन मेरे पिताजी कहा करते
थे अपना काम करते रहना चाहिए, दें उनका भी भला, न दें उनका भी भला ।
लखमीचंद- हाँ सर मेरे पिताजी की भी यही सीख थी, माँगते रहने में कोई बुराई नहीं है ।
4.नींव
4.नींव
अगले दिन नए ठेकेदार ने एक तगारी सीमेंट और तीन तगारी रेत के मसाले से सशंकित
हो ईंटों की जुड़ाई की। बारी बारी से पुन: कई यंत्री आये, सभी ने नींव की दीवार पर एक निगाह डाली और गर्म हो
गए। इस बार ठेकेदार को अंतिम चेतावनी दी “यदि
कल तक काम में पर्याप्त सुधार नहीं किया गया तो काम बंद करवा दिया जायेगा।”
जब नए ठेकेदार के समझ में बात नहीं आई तो उसने एक अनुभवी ठेकेदार से इस समस्या
पर अपनी प्रतिक्रिया चाही।
अनुभवी ठेकेदार भी हँसा और उसने भी घाघ अभियंताओं की तरह नए ठेकेदार को मूर्ख
निरुपित किया किन्तु सुधार की एक तरकीब भी बताई।
अनुभवी ठेकेदार के निर्देशानुसार, नए ठेकेदार ने सभी अभियंताओं के निवास पर रात्रि के प्रथम प्रहर में कुछ भारी
और कुछ ज्यादा भारी लिफाफे पहुँचा दिए। लिफाफे यथायोग्य दिए गये थे।
आगामी दिन नए ठेकेदार ने एक तगारी सीमेंट और बीस तगारी रेत के मसाले से
निश्चिन्त हो ईंटों की जुड़ाई की। बारी बारी से सभी अभियंता निरीक्षण को आये।
मसाले को सभी ने हाथों से रगड़ कर देखा और नए ठेकेदार की भूरि भूरि प्रशंसा की।
जाते जाते सभी ने एक ही टिप्पणी की, “अब आप सही तरीके से काम करना सीखे हो नींव ऐसे ही पुख्ता होती है।”
सम्पर्क: 3/32 छत्रसाल नगर, फेज-2, जे. के. रोड, भोपाल- 462022, मोबाइल-
09826426232
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