किसको जलाया जाए
डॉ.कविता भट्ट
जब सरस्वती दासी बन; लक्ष्मी का वंदन करती हो
रावण के पद-चिह्नों
का नित अभिनन्दन करती हो
सिन्धु-अराजक, भय-प्रीति दोनों ही निरर्थक हो जाएँ
और व्यवस्था सीता-सी प्रतिपल लाचार सिहरती हो
अब बोलो राम! कैसे आशा का सेतु बनाया जाए
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जाए
जब आँखें षड्यंत्र बुनें; किन्तु अधर मुस्काते हों
भीतर विष-घट, किन्तु शब्द प्रेम-बूँद छलकाते हों
अनाचार-अनुशंसा में नित पुष्प-हार गुणगान करें
हृदय ईर्ष्या से भरे हुए, कंठ मुक्त प्रशंसा गाते हों
क्या मात्र, रावण-दहन का झुनझुना बजाया जाए
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जाए
विराट बाहर का रावण, भीतर का उससे भी भारी
असंख्य शीश हैं, पग-पग पर, बने हुए नित संहारी
सबके दुर्गुण बाँच रहे हम, स्वयं को नहीं खँगाला है
प्रतिदिन मन का वही प्रलाप, बुद्धि बनी भिखारी
कोई रावण नाभि तो खोजो, कोई तीर चलाया जाए
अब बोलो विजयादशमी पर किसको जलाया जाए
सम्पर्कः FDC, PMMMNMTT, द्वितीय तल , प्रशासनिक खण्ड ll,
हे.न.ब.गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल), उत्तराखंड -246174
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