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Oct 3, 2018

शार्त्र

शार्त्र
-डॉ. शैलजा सक्सेना (केनेडा)
मैं रिसेप्शन पर जब उसे लेने आई तो वह आवश्यक दफ्तरी कागज़ों को भर करफाइल और अपनी बेचैनी सँभालने की चेष्टा में कुर्सी में सधी बैठी थी। काले चमड़े से मढ़ा शरीरचमकती सफेद आँखें और चमकते सफेद दाँत। थोड़ा भारी शरीर। काले बालों के बीच हाइलाइट की हुई लाल लटें। मुझे किसी ने बताया था कि अफ्रीकी महिलाएँ प्रायविग पहनती हैं। उसके सुन्दर बालों को देख कर मैं क्षण भर को सोच में पड़ गई कि क्या यह भी विग हैअगर सुन्दरता में शरीर के गोरे होने की शर्त न मानें तो उसे सुन्दर कहा जा सकता था।
मैं उसे "हलोकह करमौसम का हाल पूछतीसाक्षात्कार के कमरे में ले आई। हमारी बातचीत अंग्रेज़ी में हो रही थी। नाम पूछने पर बताया, "शार्त्र लूले"
"इसका अर्थ क्या होता है?" मैंने पूछा।
वह बोली, "प्रसन्नताखुशी..."
"क्या तुम खुश हो?" मैंने हँस कर मज़ाक किया।
"आपको क्या लगता है?" उसने भी हँस कर कहा।
बात आगे बढ़ाते हुए मैंने उस से अपने बारे में कुछ बताने के लिये कहा। उसकी आँखॆं क्षण भर को अतीत के किसी पृष्ठ पर ठहरींस्वयं को स्थिर कर के उसने कहा, "यह मेरा पहला इंटरव्यू है पर मैं इस नौकरी के लिये आवश्यक सभी शर्तें पूरी करने में समर्थ हूँ
"इस से पहले क्या कहीं भी काम नहीं किया?"
"अगर बीमार माँ की दिन -रात की देखभाल को आप काम मानें तो कह सकती हूँ कि काम किया है।"
तो यह निजी सहायक (पर्सनल सपोर्ट वर्करका कोर्स कब किया?" वह इसी पद की नौकरी के लिये हमारी हेल्थ केयर (स्वास्थ्य-देखभालकम्पनी में आवेदन देने आई थी ।
"माँ की देख-भाल ठीक से कर सकूँइसीलिए यह कोर्स किया था। अभी कुछ दिन हुए उनका देहान्त हो गया तो सोचा कि क्यों न किसी और के ही काम आऊँ। स्कूल में आप के दफ्तर का नाम बताया गया था सो आवेदन भरा और अब आप के सामने बैठी हूँ।रुक-रुक कर यह बात बताते हुए उसका चेहरा लाल हो गया। ऐसा लगा था कि अपने बारे में इतनी सी बात बताना भी उसके लिये मानो भारी हो रहा हो।
"तुम्हारी माँ के लिये मुझे अफसोस है।मैं औपचारिकता निभाते हुए बोली ।
उसकी सफेद आँखों में मेरी काली दुनियादारी ज़रूर चुभी होगी तभी वह कुछ रुक कर बोली, "मेरी माँ अफ़सोस करने की नहीं, गर्व करने योग्य महिला थीं।"
मुझे अपनी कहनी पर कुछ संकोच हुआ। हमारी औपचारिकताएँ केवल बेमानी शब्द हैं पर हम सब उन्हें कहने के आदी हैं और मज़ा यह कि सुनने वाले के कानों को भी ये अर्थहीन शब्द बुरे नहीं लगते पर इस लड़की को यह बात चुभी! यानी  इसके लिये शब्दों का महत्त्व है!
मैंने कुर्सी में सीधे होकर बैठते हुए पूछा, "उन्हें क्या रोग हुआ था?"
"पुरानी बातें याद करने का और वर्तमान को भूलने का रोग हो गया था उसे, वही जिसे "अल्ज़ाइमरकहते हैं आप लोग।"
मैंने उसके रेज़्यूम (बायोडाटाको देखते हुए पूछा, "तुमने तो नर्सिंग कोर्स किया है अपने देश में?"
उसकी आँखों में कई छायाएँ आईं और गईं। आदमी ज़मीन बदल सकता हैपहनावा बदल सकता हैसंबंध बदल सकता हैभाषा बदल सकता है, पर मन का रहस्य खोलने वाली अपनी आँखें नहीं बदल पातामन में छुपी बातें भी नहीं बदल पाता। ये बातें मन में चुभे काँटों की तरह होती है जिन पर चलते उसकी भावनाओं के पैर लहूलुहान होते हैं और खून के धब्बे कभी-कभी उसकी आँखों से झाँक ही जाते हैं। शार्त्र की आँखों में अतीत के खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे। उसके चेहरे पर अतीत की हल्की सिकुड़ने पड़ने लगींइंटरव्यू की यह माँग थी कि वह अपनी पढ़ाई और नौकरी के अनुभव को बताये लेकिन वो शायद अपने पुराने दर्द में उलझ रही थी कि कितना खोले और कितनी बँधी रहे! 
ठीक इसी समय सुबह से छाये बादलों के बीच से निकलधूप का एक टुकड़ा खिड़की से कूद उसकी कुरसी के पास आ कर पसर गया और धूपछाँव का एक अनोखा खॆल उस कमरे में चलने लगा।
"हाँकिया थामाँ के कहने पर ही...वह वाक्य आधा छोड़ कर ही चुप हो गई।
"नर्स के ऊँचे सोपान के बाद पर्सनल सपोर्ट वर्करबन कर कैसा लगेगाक्या फिर से नर्स बनना चाहोगी?" मैंने उसे कुरेदा।
"कुछ नहीं लगेगा मुझेसोपान ऊँचा हो या नीचाआदमी को केवल खड़े रहने की जगह चाहिये ताकि वह दुनिया के धक्कों से गिर न पड़े। आपके दूसरे प्रश्न के उत्तर में यही कहना चाहती हूँ कि मैं नर्स नहीं बनना चाहती।"
"ऐसा क्योंतुम्हारी कुछ अल्पकालीन या दीर्घकालीन योजनाएँउद्देश्य भी तो होंगे?"
"मेरे उद्देश्य...ठंडी साँस ले कर वह बोली, "मैं बिना शर्तों के मनुष्य  की तरह स्वतंत्र जी सकूँ...अभी तो बस यही मेरी योजना है और यही मेरा उद्देश्य।"
मैंने ऐसे उत्तर की आशा नहीं की थी। नौकरी के साक्षात्कार में इस तरह का दार्शनिक उत्तर कोई देगाऐसी अपेक्षा किसी से कहाँ की जाती है? पर देखें तो बात सच है। जीने की सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि मनुष्यमनुष्य की तरह स्वतंत्रता सेइज़्ज़त के साथ जी सके... हम पचासों तरीके के सपने देखते हैंअपने विकास के नाम पर इन सपनों के पीछे भागते कोल्हू के बैल बन जाते हैंस्वार्थ में अंधे हो कर न जाने कितने अनुचित काम करते हुए अपने को गिराते हैंअपने किए को उचित सिद्ध करने के लिये व्यावसायिकता की परिभाषाएँ गढ़ते हैंबाज़ारी नीतियाँ गढ़ते हैंफिर किसी दिन यह गढ़न टूटती हैअतृप्ति की थकावट से चूर आत्मा पूछती है, "क्या तुम सच ही मनुष्य बन कर जिए?  और हम कहते हैं।।सफल मनुष्य बनने के लिये यह सब करना ज़रूरी था..."
....और भीतर कहीं कोई ठठा कर हँस पड़ता है ।
हम सब ही तो अगले सोपान पर चढ़ने के लिए भाग रहे हैं दिन रातएक दूसरे को धकियाते हुए! और समाज के इस सारे चक्रव्यूह को तोड़ कर यह आबनूसी औरत कहती है कि मैं केवल मनुष्य की तरह जीना चाहती हूँयह औरत जो नर्स थीअब नर्स नहीं होना चाहती? लोगों के मल-मूत्र साफ़ करउनकी बीमार देहों को नहला करउनके जूठे बर्तन माँज करउनके दवाई की बदबू में लिपटेघाव के पसों से सने गंदे कपड़े धो करउनके चिड़चिड़ेपन से भरी झिड़कियाँ सुन कर शेष जीवन बिता देना चाहती है? आखिर क्योंकोई इस चक्रव्यूह से ऐसी आसानी से निकल कर अपने को अलग और ऊँचा कैसे घोषित कर सकता हैमेरी बुद्धि और भाव अहंकार से दपदपा उठे।
गंभीर स्वर में बोली, "वह सब तो ठीकपर तुमने भविष्य के बारे कुछ नहीं सोचाक्या तुम आगे नहीं बढ़ना चाहतीउच्च पद पर नहीं जाना चाहतीं?"
मेरे अधिकारीपने का उस पर उल्टा असर हुआ। वह लज्जित होने की बजाय अपने नकली बालों को झटका दे कर सीधी बैठ गई।
"नहींमैं आगे नहीं बढ़ना चाहतीकुछ होना नहीं चाहती। पर्सनल सपोर्ट वर्करबनना चाहती थीबन गई। क्या आपकी कंपनी के लिये यह काफ़ी नहीं हैमेरा स्कूल का अनुभव और अपनी माँ के साथ का अनुभव मुझे इस कार्य में सफल बनायेगामैं आपको विश्वास दिला सकती हूँ"बोलते -बोलते वह हाँफने लगी थी ।
"नहीं मैं तुम्हारे अनुभव पर संदेह नहीं कर रही... पर यह तो स्वाभाविक ही है कि आदमी आगे बढ़े।मेरी आवाज़ उसमें कोई सेंध न लगा पाने के कारण मेरे पास ही थक कर लौट आई थी। 
यह इंटरव्यू मेरे लिये एक पहेली बनता जा रहा था। वरना इतने सालों में वही घिसे हुए से प्रश्न होते थे और वही नपे-तुले जवाब। मेरे सवाल अब भी वही थे पर उसके पास नए उत्तर थेवे उत्तर जिनकी मैंने आशा नहीं की थी!
वह शायद कुछ तीखा कहने जा रही थी पर अपनी स्थिति को याद कर सँभल गई। बोली, “पिछले कुछ वर्षों में आगे बढ़ी हुई ज़िन्दगी को बार-बार पीछे पलटते  देखा है मैंने। जीवन में सब कुछ हो कर भी ना-कुछ होते हुए देखा है इसलिये अब कुछ होनेकरने की इच्छा शेष नहीं रह गई है। मेरे इन भावों को आप अपनी भाषा में कोई नाम देना चाहें तो दे सकती हैं पर माँ के जीवन और मृत्यु ने मेरे भीतर बहुत कुछ बदल दिया है।वह क्षण भर रुकी जैसे इस निर्णय पर पहुँच रही हो कि अब अपनी कहानी का कुछ हिस्सा खोले बिना नौकरी की बात आगे नहीं बढ़ेगी।
एक लंबी साँस लेकर उसने बात फिर शुरू की, "उसने मेरे लिए बहुत से सपने बुने थेमुझे ज़बर्दस्ती ‘कम्पाला’ भेजानर्सिंग का कोर्स करने। वो मुझे डॉक्टर बनाना चाहती थी और मैं इसके लिये तैयार नहीं होती थी। उसने बहला-फुसला कर ही नर्सिंग कोर्स कराया क्योंकि उसे उम्मीद थी कि एक बार मैं यह कोर्स करूँगी तो मुझे मेडिकलक्षेत्र में रुचि होने लगेगी। वह डॉक्टरों की कमी से बहुत परेशान हुआ करती थी। वह पुराने दिनों में खोने लगी थी।।
"फिर तुमने क्या डॉक्टरी की पढ़ाई की?" मैंने पूछा
"नहींउसकी योजना चल नहीं पाईवह फीकी सी मुस्कुरा दी ।
"क्योंतुमको उसकी योजना समझ आ गई थी क्या?" मैंने वातावरण को हल्का करते हुए मज़ाक किया।
"नहींवह भी नहीं था। वह बहुत सब्र वाली महिला थीं और अपनी बहुत सी बातें मन की पेटी में ऐसे छुपा कर रखती थीं कि उसकी योजनाओं को कोई नहीं समझ पाता था और निश्चित समय पर सही कदम उठा कर वह हम सब घर वालों को हैरान कर देती थी। पर उस बार उसका सोचा हुआ पूरा नहीं हुआ। उसके बाद से उसका सोचा हुआ कुछ भी पूरा नहीं हुआ। तभी तो सोचती हूँ कि योजनाएँ बनाने से भी क्या होता है! मेरी माँ अपने देश में ही रहना चाहती थी और वहीं मरना चाहती थी पर उसका सोचा हुआ कहाँ पूरा हुआ? युगांडा और तंजानिया के युद्ध ने हमें अपने गाँव "मसक्कासे निकाल दिया, "लूलेनाम ने हमें कहाँ-कहाँ नहीं भटकाया"। मेरी आँखों के सवाल को पढ़ते हुए उसने स्पष्ट किया, "परिवार के एक सदस्य तत्कालीन शासक ईदी अमीन से लड़ने वाली यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंटमें सक्रिय थेअतउन्हें पकड़ न पाने पर उनके घरवालों को पकड़ कर उन पर अत्याचार करने की कहानियाँ मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य से आप सुन सकती हैं। माँ भी राजनैतिक कार्यवाहियों में सक्रिय थीयह मैं अभी जान पाई। मैं तो कम्पालारहती थी सो यह सब कैसे जानती... भागने के दिनों में थोड़ा-सा बताया था उसने, बस..."
अब वह जैसे अपने से बात करने लगी।।सारा जीवन मैं उसे गाँव की सीधी, सरल औरत समझती रहीसोचती थी कि उस के दिमाग में मेरी और मेरे भाई की चिन्ताओं और योजनाओं के अलावा कुछ और है ही नहीं! वह हमारी सुरक्षा के लिये ही परेशान रहती है। पिता का देहान्त बहुत पहले हो गया था इसलिये उसका हमारे बारे में चिन्ता करना स्वाभाविक ही था पर मुझे क्या पता था कि उसके दिमाग में हमारी नहीं बल्कि पूरे देश की सुरक्षा की चिन्ता घूम रही थी,देश को ईदी अमीन से छुड़ाने और सुरक्षित करने की योजनाएँ पल रहीं थीं…! हम सोचते थे कि वह हमारे बिना अकेली रह जाती होगी पर मुझे नहीं पता था कि वह कितने बड़े समूह से जुड़ी है और उनके लिए काम करती है।  हम सारे जीवन इस भ्रम में रहते हैं कि हम कम से कम अपने,बिल्कुल अपनों को तो जानते हैं पर सब भ्रम ही है।उसकी नज़रें मुझे जीवन का रहस्य बताते हुए मुझ पर गड़ गईं। गहरी साँस ले कर वह  बोली… "हमें सीमा पार करके भागने में जो मुश्किलें आईंउनके बारे में यहाँ सुरक्षित बैठे हुए कल्पना करना भी असंभव हैकोई सोच भी नहीं सकता। शायद इसीलिए वह छुप कर काम करती थी कि कल को कहीं हम पर कोई आँच ना आये। यहाँ बैठ कर यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो सकता है कि डर का माहौल क्या होता हैघुप्प अँधेरे में एक-एक कदम कैसे चला जाता हैऐसे में किसी पर भी विश्वास करना बहुत मुश्किल होता है। हमें शक़ करने की आदत हो जाती है!" वह बोलते -बोलते फिर ठिठकी और फिर कहीं भटक गई।
अपनी माँ के बारे में शायद बहुत कम बोली होगी वो इस अपरिचित देश मेंआज इस कमरे के एकान्त मेंमुझ अजनबी के कुछ कुरेदने पर उसके मन से पिछले कई महीनों में इकठ्ठे होते विचित्र अनुभव बह निकले। वह अपनी माँ की बीमारी की कहानी आगे बढाते हुए बोली, “बाद में तो वह मुझे पहचानती भी नहीं थीन कभी आवाज़ देतीबस अजाने से नाम पुकारतीअजानी बातें करतीमेरे साथ रह कर भी मेरे साथ नहीं थी वह.. भला हो उसके रोग काजो मैं उसको कुछ जान पाई वरना कहाँ जान पाती कि मेरी माँ गाँव की एक भोली सी स्त्री नहींबहुत सी बातों की जानकार और बहुत कुछ में निपुण देश की एक सेनानी भी…" अपने वाक्य को अधूरा छोड़ कर वह अपनी नम आँखों को झुठलाती हुई- सी हँस पड़ी। बात समाप्त करने की मुद्रा में बोली, "अब आप बताइए कि अपनी ऐसी माँ के लिये मैं गर्व करूँ या शोकजीवन के इस उतार-चढ़ाव को देख कर हँसूँ या रोऊँमुझेहँसना अच्छा लगता है सो वही करने की चेष्टा करती हूँ। जीवन के हर हाल में हँस सकने की चेष्टा !!" 
मैं उस की कहानी से सम्मोहित सी बैठी थीतुरंत कुछ कह नहीं पाई। वह अपनी बात सुना सकने के लिये धन्यवाद देते हुए उठने लगी.." नौकरी तो अब आप मुझे देंगी नहींआप का इतना समय नष्ट कियामाफ कीजिएगा।"
"पर नौकरी देने का फैसला तो मेरा हैयह निर्णय तुमने कैसे ले लियाऔर रही बात समय की, …तो हर अच्छी कंपनी, अपने कर्मचारियों और आवेदनकर्ताओं से अच्छे संबंध बनाने और उन्हें जानने की चेष्टा करती है।“ मैंने उसकी आँखों में उभरते शंका के बादलों को अपनी हँसी की धूप से उड़ा दिया।
मैं तुम्हें आवश्यक कार्यवाही कर के सूचित करूँगीपरंतु आसार अच्छे ही हैंतुम में योग्यता और क्षमता के साथ-साथ सेवा की इच्छा भी दिखाई देती हैजो इस प्रकार के काम की पहली शर्त है।कहती हुई मैं भी कुर्सी से उठ खड़ी हुई। दरवाज़े तक उसे छोड़ कर मैं पलटने ही वाली थी कि कुछ याद आने से ठिठक कर रुक गई.. मुझे रुकता देख कर शार्त्र भी रुक गईउस की आँखों में प्रश्न था।
"तुम्हारे सबसे पहले प्रश्न का उत्तर देना तो भूले ही जा रही थी..तुम  सचमुच शार्त्रयानी  खुश होक्यों कि तुम जीवन के प्राप्य को आदर देना जानती हो।मेरी बात सुन वह मुस्कुरा दी। उसकी आँखों की चमक जैसे दुगनी हो गई। ऐसा लगा जैसे आबनूसी रंग के बीच उजाले का कोई झरना बह निकला हो...

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