1.महातपा
- ज्योत्स्ना प्रदीप
सिया बड़ी उदास है ।
न आस है न श्वास है ।।
अशोक के
तले रही ।
व्यथा कहाँ कभी कही ।।
सभी लगे विशाल थे ।
बड़े कई सवाल थे ।।
पिया- पिया पुकार के ।
सिया थकी न हार के ।।
पिया ,पिता न साथ रे ।
कहाँ अजेय नाथ रे ।।
धरा-सुता जया बड़ी ।
समेट पीर की घड़ी ।।
सहें कहे न
वेदना ।
हिया, जिया न भेदना ।।
‘पिया-पिया’ सदा जपा ।
सुकोमला महातपा ।।
रहे सभी डरे -डरे ।
सदेह भी मरे- मरे ।।
रक्षा करे सम्मान की ।
बड़ी महान जानकी ।।
2. हरी-भरी धरा करें
हिमाद्रि जो व्यथा सहे।
किसे वही कथा कहे।।
हरी भरी नहीं धरा।
विहंग का हिया भरा।।
न छाँव है
न ठौर है।
न पेड़ है
न बौर है।।
न हास है न नीर है।
बयार भी अधीर है।।
चली नही उसाँस है ।
भला कहाँ विकास है।।
नदी
लुटी-पिटी घटी ।
कहाँ -कहाँ नहीं बँटी ।।
तरंग गंग-अंग की।
रही नहीं भुजंग-सी।।
मिटी नदी वसुंधरा।
इन्हें कभी नहीं तरा।।
दया नहीं तजें कभी।
न ज्ञान ही न मर्म ही।।
सुधा भरें उसे तरें।
हरी भरी धरा करें ।।
सम्पर्कः मकान न.-32,
गली न.-9, न्यू
गुरु नानक नगर, गुलाब
देवी रोड, जालंधर, पंजाब
144013
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