खारून नदी की सभ्यता से आरंभ होगा
छत्तीसगढ़ का इतिहास
तरीघाट
विनोद साव
सावन माह का यह पहला दिन था। थोड़ी फुहार थी इसलिए हवा ठंडी बह रही थी। पाटन का यह
इलाका चिरपरिचित इलाका था। गाँव कस्बों में गौरवपथ बन गए है। इस इलाके के सेनानियों ने
स्वाधीनता संग्राम में लड़ाइयाँ लड़ी थीं। गौरवपथ जिस चौराहे से शुरू होता है वह
आत्मानंद चौक कहलाता है। यहाँ स्वामी आत्मानंद की मूर्ति लगी हुई है जो एक बड़े समाज
सुधारक थे।
पाटन की सीमा पार करते हुए हम अटारी गाँव जाने वाली उस सड़क पर आ गए थे जिसके
शिकारी पारा में कभी तीजनबाई रहा करती थी। बारह साल की उम्र में तब उनकी पंडवानी
का स्वर पहले यही गूँजता था। उन्होंने यहाँ से पंडवानी गायन शुरू किया था। यहाँ से
तेलीगुंडरा गाँव का एक रास्ता फूटता है जहाँ दानवीर दाऊ रामचंद साहू रहा करते थे, जिन्होंने स्कूल-
निर्माण व शिक्षा के विकास के लिए अपनी बावन एकड़ जमीन बरसों पहले दान कर दी थी। अब
समय है ,जब किसी स्कूल का नाम दाऊजी के नाम से कर दिया जाए। आज उनका दशगात्र
कार्यक्रम था। वहाँ सांसद ताम्रध्वज साहू
और क्षेत्रीय विद्यायक भूपेश बघेल भी थे। दाऊ जी के गाँव में उन्हें अपने
श्रद्धा-सुमन व्यक्त करके हम लौट रहे थे। तब एक तिराहे पर गुमठी में हमने अच्छी
चाय पी ली थी। गुमठी वाले ने बताया कि बाईं ओर का रास्ता सीधे तरीघाट को जाता है।
इन कलाकृतियों को दस हजार सालपुराना बताया जा रहा है |
तरीघाट गाँव सड़क पर ही है खारून नदी के किनारे बसा गाँव। नदी के इस पार दुर्ग
जिला और उस पार रायपुर जिला। यह सड़क सीधे अभनपुर राजिम जाने के लिए निकल पड़ती है।
उत्खनन का क्षेत्र पूछे जाने पर एक महिला ने दाईं ओर रास्ता सुझाया तब हम लगभग
किलोमीटर भर आगे बढ़ चले थे। हरियाली -भरा एक परिसर आ गया था। यहाँ देखकर सुखद आश्चर्य हुआ ! मंदिर के प्रवेशद्वार पर गाँधी जी का
सन्देश दिखा। लोहे
की एक गोल पट्टी थी ,जिस पर ऊपर लाल अक्षरों से लिखा था ‘जय महामाया’ और उसके नीचे हरे
अक्षरों में लिखा था-‘आदमी के स्वयं के ज़मीर से बड़ी
दुनिया में कोई अदालत नहीं।’- महात्मा गाँधी।
मंदिर के पुजारी ने हमें उत्खनन क्षेत्र का रास्ता दिखा दिया था।यहाँ बिजली
खंभे के लिए गड्ढे की खुदाई करते हुए अचानक मजदूरों को एक ताँबे के पात्र में 200
प्राचीन सिक्के मिले। इन सिक्कों को ग्रामीणों ने कलेक्टरेट में आयोजित जनदर्शन
कार्यक्रम में जिला प्रशासन को सौंपा। इन सिक्कों के मिलने के बाद तरीघाट बड़ा
व्यापारिक केन्द्र होने के पुरातत्त्व विभाग का दावा और भी मजबूत हो गया है। इस
दौरान ही मजदूरों को ताँबे के छोटे पात्र में प्राचीन सिक्का मिला। उप संचालक पुरातत्त्व
विभाग रायपुर जे.आर. भगत ने बताया कि सिक्के
मुगलकालीन व कम से कम 500 साल पुराने हैं।
खुदाई में मिले सोने के सिक्के |
रावण की पुरानी मूर्ति के चारों ओर उत्खनन क्षेत्र फैला पसरा था।यहाँ देखरेख
करने वाले खूंटियारे जी मिले उन्होंने बताया-‘वे अनुसूचित जाति के हैं। राजनीति शास्त्र में एम.ए. हैं ,पर अभी ठीक ठाक नौकरी न मिल पाने
के कारण यहाँ चौकीदारी कर रहे हैं। यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा उत्खनन क्षेत्र है।
सिरपुर, डमरू, पचराही सहित छत्तीसगढ़ के
सात उत्खनन क्षेत्रों में सबसे बड़ा होगा तरीघाट का उत्खनन क्षेत्र।यहाँ चार टीले
हैं, जिनमें केवल एक टीले की
खुदाई हुई है।यहाँ कल्चुरी, गुप्तवंश, मौर्यकाल, सातवाहन, दुर्ग के राजा जगपाल वंश के समय की स्वर्ण मुद्राएँ, ताम्र सिक्के और ताम्बे
के कलात्मक आभूषण व बर्तन प्राप्त हुए है। साथ में अन्य अवशेष हैं जो भिन्न
मूर्तियों व कलाशिल्पों के हैं। जे. आर. भगत पुरातत्वविद हैं उनकी देखरेख में यहाँ
खुदाई का कार्य चल रहा है। गलियारे के दोनों ओर कमरे निकले हैं। उनके अनुसार यह
क्षेत्र कभी एक बड़ा व्यापारिक परिसर व केन्द्र रहा होगा जहाँ सोने, ताम्बे व अन्य धातुओं से
बनी वस्तुएँ क्रय-विक्रय के लिए आती जाती रही होंगी। पिछले तीन वर्षों से यहाँ
प्राप्त अवशेषों व मुद्राओं को रायपुर के घासीदास संग्रहालय में अभी रखा गया है
जिसे यहाँ नए बने संग्रहालय में ले आया जाएगा तब यहाँ आने वाले इसे देख सकेंगे और
तरीघाट के इतिहास एवं पुरातत्व के बारे में जानकारी ले सकेंगे।‘अब छत्तीसगढ़ का इतिहास डेढ़ हज़ार
साल पुरानी सिरपुर सभ्यता से नहीं बल्कि ढाई हज़ार साल प्राचीन खारून नदी की सभ्यता
तरीघाट से आरम्भ होगा।’
नवनिर्मित संग्रहालय भवन |
उत्खनन क्षेत्र में लेखक |
हम रावण की जिस मूर्ति के चौरे पर खड़े हुए थे उसके बारे में बताया गया कि ‘यह पुरातात्विक नहीं है। पहले
तरीघाट गाँव के लोग यहाँ दशहरा मनाते थे। अब यह संरक्षित क्षेत्र हो गया है। तब
दशहरा दूसरे स्थान पर मनाया जाता है। दस सिरों वाले रावण की यह मूर्ति युद्ध करने
की मुद्रा में बनी है और विशाल धनुष बाण उनके हाथों में है।’ खूंटियारे बता रहे थे कि
‘चरवाहों और मवेशियों के
कारण उत्खनन क्षेत्रों को बड़ा नुकसान पहुँचता है। उनके निशान मिटने लगते हैं।
इन्हें बिना किसी क्षति के सम्हाल पाना बड़ा मुश्किल होता है भैय्या।’ फिर चरवाहों से उनकी
हुज्जत होने लग गई थी।
सभ्यता नदी किनारे पनपती है तो उत्खनन क्षेत्र के पीछे खारून नदी बह रही थी।
दुर्ग जिले के संजारी क्षेत्र से निकलने वाली खारून रायपुर की सीमा से बहती हुई
आगे जाकर सिमगा-सोमनाथ के पास शिवनाथ से मिल जाती है। इस मिलन स्थल पर मेरी एक
कहानी है ‘नदी, मछली और वह।’ तब खारून शिवनाथ में
मिलकर महानदी की संपन्न जलराशि में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करती है। खारुन में
एक शान्ति है जो देखने वालों को अपनी ओर खींचती हैं।
खारून नदी जिसके किनारे पनपी ढाई हजार साल पुरानी सभ्यता |
सूर्यास्त का समय था हम खारून किनारे बैठे हुए थे जिसका नाम है तरीघाट।‘तरी’ के मायने है नीचे। इसका
अर्थ है नीचे का घाट। काम से लौटते मजदूरों किसानों को देख रहे थे जो नदी में बने
बाँधा को पार कर रहे थे अपनी साइकलों को लेकर। हाथ में थैले और सिर पर समान रखे
स्त्रियाँ चली जा रही थीं, कतारबद्ध होकर उस पार। हम देख रहे थे लोकजीवन के रंग को
अपने भीतर किसी लोकगीत की धुन के साथ।
सम्पर्कः मुक्त नगर, दुर्ग मो. 9009884014
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