कौन थी वो ?
डॉ.सुषमा गुप्ता
हालाँकि अब बाहर चटक कँटीली धूप है पर सुबह ऐसा नहीं था।
सुबह 5:30 जब उठी तब भी आकाश कालिमा की चादर उतारने को तैयार न था । मैं मुस्कुराई कि आज ये जनाब भी मुझ-सा आलसी हो रहे हैं। समय सरकता रहा और कालिमा कम होने की बजाय बढ़ने लगी। मंदिर जाने के समय तक बादल छमाछम बरसने लगा। चूँकि आज ऑफिस में भी जरूरी काम था और किन्हीं से मिलने का समय भी तय था, सो देर नहीं कर सकती थी। अतुल बोले -आओ बेलपत्र बाहर से मैं तोड़ देता हूँ और मंदिर भी ले चलता हूँ। अब सुबह-सुबह इतनी मदद मिल जाए, तो और क्या चाहिए।
यूँ तो घर के बाहर बेलपत्र का पेड़ बहुत श्रद्धा से लगवाया था, पर अब आलस है या जाने क्या, चढ़ाती बस सावन-सावन ही हूँ।
सावन में रोज़ ग्यारह बेलपत्र ले जाती हूँ, हर पत्ते पर अँगुली से ॐ उकेरती हूँ और शिवलिंग पर चढ़ा देती हूँ। सालों से यही नियम है
आज एक आंटीजी (जाने कौन थी) मुझे देखकर बोली -"ये क्या लिख रही हो इन पर ?"
मैंने कहा-"ॐ"
"जो कर रही हो बहुत अच्छा है,पर ये आलस क्यों?"
"आलस?"
"हाँ या तो रोली से लिखो या चंदन से ।"
"प्रभु को भाव से मतलब है,पेंसिल ट्रांसपेरेंट है या कलरफुल, उससे क्या फ़र्क पड़ता है ?"
आंटी जी चिढ़ गईं। बोली-"आजकल की छोरियों से तो बहस करा लो बस।"
अब मैं चुप ।
सुबह 5:30 जब उठी तब भी आकाश कालिमा की चादर उतारने को तैयार न था । मैं मुस्कुराई कि आज ये जनाब भी मुझ-सा आलसी हो रहे हैं। समय सरकता रहा और कालिमा कम होने की बजाय बढ़ने लगी। मंदिर जाने के समय तक बादल छमाछम बरसने लगा। चूँकि आज ऑफिस में भी जरूरी काम था और किन्हीं से मिलने का समय भी तय था, सो देर नहीं कर सकती थी। अतुल बोले -आओ बेलपत्र बाहर से मैं तोड़ देता हूँ और मंदिर भी ले चलता हूँ। अब सुबह-सुबह इतनी मदद मिल जाए, तो और क्या चाहिए।
यूँ तो घर के बाहर बेलपत्र का पेड़ बहुत श्रद्धा से लगवाया था, पर अब आलस है या जाने क्या, चढ़ाती बस सावन-सावन ही हूँ।
सावन में रोज़ ग्यारह बेलपत्र ले जाती हूँ, हर पत्ते पर अँगुली से ॐ उकेरती हूँ और शिवलिंग पर चढ़ा देती हूँ। सालों से यही नियम है
आज एक आंटीजी (जाने कौन थी) मुझे देखकर बोली -"ये क्या लिख रही हो इन पर ?"
मैंने कहा-"ॐ"
"जो कर रही हो बहुत अच्छा है,पर ये आलस क्यों?"
"आलस?"
"हाँ या तो रोली से लिखो या चंदन से ।"
"प्रभु को भाव से मतलब है,पेंसिल ट्रांसपेरेंट है या कलरफुल, उससे क्या फ़र्क पड़ता है ?"
आंटी जी चिढ़ गईं। बोली-"आजकल की छोरियों से तो बहस करा लो बस।"
अब मैं चुप ।
एक और नियम भी है पर इसका श्रेय सासू माँ को जाता है। शादी के बाद जब मंदिर
साथ गईं तो उन्होंने ताकीद की कि जो भी बड़े बुजुर्ग मंदिर में हों, पूजा खत्म करके सबके पैर
छुआ करो। मुझे उस वक्त वो तुग़लक़ी फरमान बहुत बुरा लगा। जान न पहचान सबके पैर
छूते फिरो; पर इतनी हिम्मत न थी कि उनका कहा दरकिनार करती। खैर फिर इतने स्नेहिल आशीर्वाद
मिलते कि मुझे खुद ही बहुत अच्छा लगने लगा।सासूमाँ को दिल से धन्यवाद।
आज जब जल चढ़ाकर उन आंटी जी के पैर छुए (जो कुछ पल पहले चिढ़ गई थी)तो वो
अचकचा गई-"अरे मेरे पैर क्यों छूए ?"
रोज़ मिलने वाली एक आंटी बोली-
"रोज़ का नियम है इसका, सबके छूती है,मना करो तो भी नही मानती।"
अब ये सुनना था नई आंटी जी ने तो गले ही लगा लिया और आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।
अपनी मुस्कान भी ये कान तक थी कि चलो आंटी जी गुस्सा नहीं गईं।
रोज़ मिलने वाली एक आंटी बोली-
"रोज़ का नियम है इसका, सबके छूती है,मना करो तो भी नही मानती।"
अब ये सुनना था नई आंटी जी ने तो गले ही लगा लिया और आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।
अपनी मुस्कान भी ये कान तक थी कि चलो आंटी जी गुस्सा नहीं गईं।
जल चढ़ाने का शिवलिंग मंदिर के आँगन में है और बाकी विग्रह अंदर।
जैसे ही अंदर गई कुछ ठिठक गई।
एक औरत माता की प्रतिमा के आगे नतमस्तक लेटी थी। बिल्कुल साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में ।
पास खड़े मैं दुर्गा चालीसा का पाठ करने लगी पर जाने क्यों, कुछ परेशान कर रहा था।
जैसे ही अंदर गई कुछ ठिठक गई।
एक औरत माता की प्रतिमा के आगे नतमस्तक लेटी थी। बिल्कुल साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में ।
पास खड़े मैं दुर्गा चालीसा का पाठ करने लगी पर जाने क्यों, कुछ परेशान कर रहा था।
चालीसा में मन न रमा। सारा ध्यान उसी में जो था। उसके शरीर में हल्का
कंपन साफ ज़ाहिर कर रहा था कि वो रो रही है। चेहरा भी इस कदर दोनों तरफ की
बाजुओं में छिपा था कि कौन है किस उम्र की है कुछ न दिखा। जब तक मैं मंदिर में थी,वो वैसे ही रही।
एक पल लगा पूछूँ क्या हुआ,फिर लगा वो माँ से बात कर रही है उसकी ध्यान तोड़ना ठीक नहीं।
वैसे भी प्रभु से ऐसे संवाद कोई तब ही करता है, जब इंसानों से हार चुका होता है
एक पल लगा पूछूँ क्या हुआ,फिर लगा वो माँ से बात कर रही है उसकी ध्यान तोड़ना ठीक नहीं।
वैसे भी प्रभु से ऐसे संवाद कोई तब ही करता है, जब इंसानों से हार चुका होता है
मन बुझ गया। थकान ने घेर लिया। उदास कदमों से बाहर आ कार में बैठ गई। अतुल के
फोन सुबह नौ से रात नौ तक बंद ही नही होते, वो फोन में व्यस्त थे, फिर कहती भी क्या ।
आधा दिन गुज़र गया, न वो औरत ज़हन से उतरी न मन ठीक हुआ।
उसके शरीर की कंपन .....
आधा दिन गुज़र गया, न वो औरत ज़हन से उतरी न मन ठीक हुआ।
उसके शरीर की कंपन .....
मुस्कान बहुत महँगी नहीं है ज़हान में,पर बात ये है कि वो बस अपनी खुशियों तक सीमित रहे ।
जो ऐसा नही कर पाते,वो शापित होते हैं
वो हँसते तो खूब हैं,मुस्कराते नहीं हैं
वो हँसते तो खूब हैं,मुस्कराते नहीं हैं
काश कि सब मुस्कुरा सकें मीठा-मीठा
कौन थी वो पर...
उसको दुआ दो दोस्तों कि उसके सब दर्द फना हो जाएँ।
उसको दुआ दो दोस्तों कि उसके सब दर्द फना हो जाएँ।
सम्पर्क: 327/सेक्टर 16A, फरीदाबाद-121002 (हरियाणा)
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