उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jun 1, 2024

जीवन दर्शनः इकीगाई (Ikigai) : सोच की खोज

 - विजय जोशी  
 पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

जब आदमी अकेला या कहें खुद के साथ होता है तो तो कई बार उसके मन में अनेक प्रश्न उभरते हैं जैसे मैं क्या हूँ, मैं क्यों हूँ, मेरी  खुशियाँ किस चीज़ में है, क्या मैं अपने वर्तमान से खुश हूँ आदि आदि। ये जिज्ञासाएँ ही जीवन में मस्तूल का कार्य करती हैं, बशर्ते हम शांतिपूर्वक समाधान सोचें और खोजें।
        पिछले दिनों एक ऐसा ही एक अनुभव मिला  मुझे पारसी जीवनशैली आधारित फिल्म मस्का को हाल ही में दुबारा देखने के दौरान, जब एक नए  जीवन दर्शन इकीगाई (Ikigai) से मेरा साक्षात्कार हुआ, जिसमें एक भटकाव भरा जीवन जीते हुए नायक अंत में एक ठहराव पर आ पाता है। इकीगाई में एक सफल, सुचारु, सुखी जीवन जीने का अद्भुत सूत्र समाहित है, जो चार भागों में विभक्त है इस प्रकार: 
1. पसंदगी (Passion) : जीवन में राह या कैरियर चुनते समय यह जानना बेहद जरूरी है कि हमें वास्तव में क्या पसंद है, क्योंकि यही तो हमें सतत उत्साह, उमंग एवं ऊर्जा से सरोबार रखेगा।
2. क्षमता (Competence) : उपरोक्त के साथ यह ज्ञात होना भी आवश्यक है कि हम किसमें अच्छे हैं तथा किस कार्य का संपादन अच्छी तरह से कर सकते हैं, जिसके अभाव में पसंदगी भी अर्थहीन हो जाती है। दोनों का तादात्म्य एवं संतुलन ही प्रगति की पहली सीढ़ी है। 
3. उपलब्धि (Achievement) : ज़िंदगी में पैसे महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। हमारा सम्पूर्ण जीवन यापन इस पर आधारित है। सो प्रथम दोनों आयाम आर्थिक पैमाना तय करने में मददगार होंगे। इसकी उपेक्षा संभव ही नहीं।
4. सामाजिक (Social) : मानव एक समाजिक प्राणी है। यह अवयव है एक वृहद व्यवस्था का। सो इसका प्रभाव भी सन्निहित है इसमें। प्रथम समस्त आयाम निरर्थक हैं यदि समाज को जरूरत ही न हो आपके अवदान की। सो समाज के खाके में ठीक से बैठ पाने की दशा ही सफलता सुनिश्चित करेगी। इस आधार को नकारा नहीं जा सकता।
उपरोक्त दर्शन की खोज जापान के ओकीनावा द्वीप निवासी अकिहीरो हेसगावा ने करते हुए इसका महत्त्व उद्घाटित किया था जिसका सार है : 
-  जीवन को उपयोगी बनाना
- जो काम कर रहे हैं उसे पसंद करना
- अपने काम में आनंद लेना
- खुद के अस्तित्व को अर्थ प्रदान करना
- आसपास अच्छे वातावरण का सृजन
- और इस प्रकार जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करते हुए खुशी के साथ जीना
उपरोक्त बातें ही जापानियों के जीवन को सार्थक सिद्ध करती हैं। हम हिंदुस्तानी इन पलों में कम से कम आत्म निरीक्षण का प्रयास तो कर ही सकते हैं।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

40 comments:

सहज साहित्य said...

पठनीय एवं मनन करने योग्य लेख!🌷👌

Anonymous said...

जीवन में बहुत सारी स्थिति स्वयं निर्मित भी होती तात्कालिक परिस्थितियों पर भी जीवन की स्थितियां तय होती परंतु सकारात्मक सोच धैर्य एवं शांति से उठाए गए कदमों से शांति और प्रगति के आशा की जा सकती है जीवन प्रबंधन भी बहुत ही बड़ा विषय है यह जीवन जीने की कला का महत्व उपरोक्त लेख में व्यक्ति को अपनी भूमिका सुनिश्चित करने का अच्छा सहयोग मिला मिलता है। रामगोपाल ठाकुर 117 अविनाश नगर भोपाल।

Anonymous said...

बहुत अच्छा लेख।
मुकेश श्रीवास्तव

वी.बी.सिंह said...

हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी एक ठहराव सा आता। ऐसे में आप द्वारा वर्णित जीवन जीने की 'इकीगाई' विधि अपनाने पर जीवन पुनर्आनन्दित हो जाएगा। अति सुन्दर व जनोपयोगी लेख। हार्दिक बधाई एवं धन्यवाद। सादर,
वी.बी.सिंह, लखनऊ।


मंगल स्वरूप त्रिवेदी said...

आमतौर पर जापान में आयु की दृष्टि से जीवन काफी लंबा होता है। इतने लंबी जीवन को मूल्य और प्रसन्नता के साथ, आनंद के साथ सार्थक रूप से कैसे जिया जाए, इसी सोच के साथ इस सिद्धांत का प्रादुर्भाव हुआ।
सनातन संस्कृति में हम जीवन चतुष्टय पर विशेष बल देते हैं और धर्म ,अर्थ, काम और मोक्ष के अनुरूप जीवन जीने में विश्वास करते हैं। सभी धर्म और संस्कृतियों में एक बात जिस पर सब बोल देते हैं वह यह है कि किस प्रकार जीवन को आनंद के साथ जिया जाए और सार्थक भी किया जाए।
यह जापानी सिद्धांत भी इसी अवधारणा का एक हिस्सा है और हमें यह सीख देता है कि हमें अपने जीवन को मूल्यों एवं आनंद के साथ इस प्रकार जीना चाहिए कि वह सार्थक हो और समाज में उसका महत्वपूर्ण अवदान भी हो।
जीवन मूल्यों से भरे जीवन जीने के सिद्धांत से परिचित कराने के लिए आदरणीय सर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं हृदय से आभार।

Anonymous said...

हाँ इकगाई, मेरा पड़ा हुआ है, सही आंकलन किया अपने! अच्छा लगा!
SN Roy

Anonymous said...

Dr.Surinder kaur
The article is very motivational.Must be a part of curriculum.

Kishore Purswani said...

हेक्टर गार्सिया और फ्रांसेस्क मिरालेस की 'इकिगाई' दुनिया के सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले लोगों की आदतों और विश्वासों का विश्लेषण करके जीवन में अपना उद्देश्य खोजने की जापानी अवधारणा की पड़ताल करती है | डॉ रत्ना वर्मा जीं ने इस पदिति को बहुत ही सरल षब्दों में समझाया है

Hemant Borkar said...

पिताश्री this writeup is a learning for us. Being short and sweet it aptly describes the importance of four elements mentioned. Thanks with warm regards🙏❤️🙏

देवेन्द्र जोशी said...

इकिगाई पुस्तक के रूप में मुझे पढ़ने का सौभाग्य मिलाl यह जीवन सुचारु रूप से जीने की कला है l विजय जोशी जी इसे बहुत ही प्रभावी रूप से संक्षेप में समझाने में सफल हुए हैंl उनका अभिनन्दन!

संदीप जोशी इंदौर said...

अनुकरणीय एवं सार्थक लेख , जीवन मे परिपूर्णता पाने की उल्लेखनीय कुंजी जैसे कि जापानियों की, बहुत ही सारगर्भित पहल भाईसाहब, बहुत धन्यवाद आपका ।

J N Cooper said...

Indeed, "passion" is the key ingredient for happiness and success. Most people work to earn a living. Very few are lucky to have a job that also satisfies their passion. Lack of passion leads to drudgery and steals ones happiness. If you are unable to do what you like, then develop a liking for what u do. Happiness follows.
Passion, infuses positive attitude which in return builds competence.

Sharad Jaiswal said...

अनुकरणीय लेख, निश्चित ही इसका अनुपालन करने से व्यक्ति की दिशा और दशा बदल जायेगी ।

रवीन्द्र निगम भेल भोपाल said...

अनुकरणीय आलेख, 🌹सफलता के द्वन्द्व मे इच्छा शक्ति, सामर्थ/क्षमता, उपलब्धि व सामाजिक ग्राह्यता अत्यंत आवश्यक है जिसकी उपरोक्त झलकी यहाँ प्रस्तुत है सादर🙏

Jayesh J said...

Passion to achieve competence and social......great article sir.....which combines four important factors ....JJ

सुरेश कासलीवाल said...

अपनी पसंद/नापसंद को ध्यान में रखते हुए बौद्धिक और आर्थिक क्षमता के अनुसार समाजोपयोगी जीवन जीने का दर्शन इकीगाई का परिचय कराने के लिए धन्यवाद।

विजय जोशी said...

आ. कासलीवाल जी,
ये फ़िल्म देखिये जहां से ये विचार आया मुझे। हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

Dear Jayesh, Thanks very much. Regards

विजय जोशी said...

प्रिय महेश,
हार्दिक आभार सहित सस्नेह

विजय जोशी said...
This comment has been removed by the author.
विजय जोशी said...

भाई रवींद्र,
निष्कर्ष हेतु हार्दिक आभार। धन्यवाद सहित

विजय जोशी said...

प्रिय शरद,
हार्दिक धन्यवाद सहित सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय संदीप,
जापान वासी तो आदर्श हैं सब के लिये। हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

Dear Hemant,
Thanks very very much for your continued support to me. Regards

विजय जोशी said...

Dear Prof. Surinder
Thanks very very much for your selfless and sincere support. These days I'm trying to pen down same on the advice of my educationist friends. Regards

विजय जोशी said...

Thanks very very much for your blessings. Kind regards

विजय जोशी said...

भाई मुकेश
लौट आइये अपने नगर में। हार्दिक आभार।

Dil se Dilo tak said...

बिल्कुल सही लिखा है सर पर एक पहलू ये भी है कि 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, किसी को जमीन किसी को आसमान नहीं मिलता'
यदि पसंद का स्पेस नहीं मिलता तो एडेप्टेबिलिटी वाला गुण काम आ जाएगा 🙂 सीमित संसाधनों में अपनी क्षमता का उपयोग करते हुए उपलब्धियां हासिल करते हुए सामाजिक सरोकारों को पूर्ण करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए.. बधाई सर 🙏

विजय जोशी said...

आदरणीय सिंह सा.
आपके स्नेह एवं सद्भावना हेतु हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

Res. Jamshed Ji
You're right. Passion, patience, competence & capability is key to success be it organization or society or personal life.
Thanks very much . Kind regards

विजय जोशी said...

प्रिय राम गोपाल,
हार्दिक आभार सहित सस्नेह

विजय जोशी said...

आदरणीय रामेश्वर जी,
आपने सही सुझाव और सलाह दी। उसी के तहत अब मूलतः नई पीढ़ी अर्थात स्कूली छात्रों एवं अभिभावकों के लिये उपयोगी लेखन हेतु विनम्र प्रयास रत हूं।
उपरोक्त लेख के संदर्भ में पंजाब यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ. सुरिंदर कौर ने भी कहा है कि इस लेख को तो पाठ्यक्रम में होना चाहिये।
कुल मिलाकर ऐसी प्रतिक्रियाएं मेरे मनोबल को कायम रखने में सहायक हैं
सो हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

प्रिय मंगल स्वरूप,
सही कहा आपने। दोनों संस्कृति एक धरातल पर हैं, अंतर केवल आचरण का है। उनकी गहरी आस्था है अपने मूल्यों में और हमारा सोच संकीर्ण और स्वार्थी। यही कारण है कि प्रकृति की अकूत संपदा की उपलब्धता के बाद भी हम वहीं के वहीं हैं।
हार्दिक धन्यवाद सहित सस्नेह

विजय जोशी said...

Sir, You may kindly comment in english language only. Kind regards

विजय जोशी said...

प्रिय रजनीकांत,
बिल्कुल सही कहा। कर्म हमारे हाथ में है सो उसे पूरी ईमानदारी से संपन्न करना चाहिये। हार्दिक धन्यवाद सहित सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय किशोर भाई,
आप सदा सामयिक, सार्थक सलाह देते रहे हैं सदा से। यह मेरे लिये गौरव की बात है।
डॉ. रत्ना वर्मा बहुत विदुषी हैं तथा उन्होंने 2011 से आज तक लगातार अवसर दिया है। 2008 से सतत प्रकाशित e-magazine
उदंती का IT क्षेत्र में अद्भुत योगदान रहा है।
हार्दिक आभार सहित सादर

रवीन्द्र निगम भेल भोपाल said...

सादर अभिवादन🙏

Mandwee Singh said...

आदरणीय सर
सादर प्रणाम
जीवन में आनंद का स्थान सर्वोपरि है। आनंद प्राप्ति हेतु हमें जिन सकारात्मक पहलू पर सफलता पूर्वक जीत हासिल करनी है उस ज्ञानवर्धक ऊर्जा से परिपूर्ण यह आलेख पाठक के लिए शिक्षक स्वरूप है।आपके सारे आलेख समाज को नई दिशा, सकारात्मक सोच,जीने की उत्तम कला से परिपूर्ण करते हैं।आपकी लेखनी उदाहरण शैली में अत्यंत प्रभावशाली और रुचिकर होती है,जो पाठक को आंत तक बांधे रखती है। नित नए विचारों से अवगत करने हेतु आत्मिक आभार। पुनः आगामी आलेख की प्रतीक्षा में
मांडवी

Mandwee Singh said...

अंत तक (ऊपर सुधार हेतु)

विजय जोशी said...

आदरणीया,
सही कहा आपने। सकारात्मक सोच से प्राप्त आनंद अनमोल है। आपकी प्रतिक्रिया भी सदा से सकारात्मकता से परिपूर्ण रही है एवं आप मेरे इस विनम्र सफ़र की मार्गदर्शक। सो हार्दिक आभार सहित सादर