चित्रः बसंत साहू, धमतरी (छत्तीसगढ़) |
भूमि की देखभाल करो तो भूमि तुम्हारी देखभाल करेगी, भूमि को नष्ट करो, तो वह तुम्हें नष्ट कर देगी। - एक आदिवासी कहावत
इस अंक में
पर्यावरण विशेष
अनकहीः जीना दुश्वार हो गया...- डॉ. रत्ना वर्मा
पर्यावरणः हिमालय पर तापमान बढ़ने के खतरे - प्रमोद भार्गव
शब्द चित्रः हाँ धरती हूँ मैं - पुष्पा मेहरा
आलेखः विश्व में पसरती रेतीली समस्या - निर्देश निधि
प्रकृतिः हमारे पास कितने पेड़ हैं? - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी
जलवायु परिवर्तनः मौसम को कृत्रिम रूप से बदलने के खतरे - भारत डोगरा
प्रदूषणः ई-कचरे का वैज्ञानिक निपटान - सुदर्शन सोलंकी
अनुसंधानः ग्लोबल वार्मिंग नापने की एक नई तकनीक - आमोद कारखानीस
चिंतनः खत्म हो रही है पृथ्वी की संपदा - निशांत
दो लघु कविताएँः 1. निवेदन, 2. बस यूँ ही - भीकम सिंह
अध्ययनः पक्षियों के विलुप्ति के पीछे दोषी मनुष्य है
दोहेः नभ बिखराते रंग - डॉ. उपमा शर्मा
लघुकथाः प्रमाणपत्र - प्रेम जनमेजय
कविताः उसकी चुप्पी - डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
कहानीः विश्वास की जीत - टि्वंकल तोमर सिंह
व्यंग्यः ठंडा- ठंडा कूल- कूल - विनोद साव
कविताः चलो लगा दें इक पेड़ - राजेश पाठक
माहियाः गर्मी के धूप हुए - रश्मि विभा त्रिपाठी
हाइबनः जीवन-धारा - डॉ. सुरंगमा यादव
प्रेरकः पीया चाहे प्रेम रस – ब्रजभूषण
किताबेंः साहित्य की गहनतम अनुभूतियों का रसपान कराती पुस्तक - डॉ. सुरंगमा यादव
4 comments:
एक सार्थक अंक के लिए बधाई भी और शुभकामनाएँ भी
बहुत सुंदर अंक। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
सार्थक सुंदर अंक के लिए बधाई।
बहुत सुंदर सार्थक अंक हेतु हार्दिक बधाई।
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