उदंती, जुलाई 2012 |
कैसा छंद बना देती हैं, बरसातें बौछारों वाली,
निगल-निगल जाती हैं बैरिन, नभ की छवियाँ तारों वाली!
- माखनलाल चतुर्वेदी
संस्मरण: बिन पानी सब सून... - डा. रत्ना वर्मा
मौसम: मानसून की कहानी - नवनीत कुमार गुप्ता
यात्रा वृतांत: अकथ कहानी प्रेम की... -चन्द्र कुमार
जीवनशैली: बूंदों में जाने क्या नशा है... - सुजाता साहा
फूड प्रोसेसिंग: भोजन के पोषक तत्व कहां... - भारत डोगरा
कविता: पानी - अख्तर अली
मानसून: मोर पपीहा बोलन लागे... - आर. वर्मा
खोज: 10 नए अनोखे प्राणी - उदंती
शोध: तेज होता है टैक्सी चलाने वालों का दिमाग
कालजयी कहानियाँ: उसने कहा था - चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
लघुकथाएं: 1. सदुपयोग 2. समय चक्र 3. दो रुपए के अखबार -बालकृष्ण गुप्ता गुरु
जन्म शताब्दी वर्ष: मैं क्यों लिखता हूँ? - सआदत हसन मंटो
व्यंग्य: हुए जिन्दगी से जुदा, आ लगे कतार में - जवाहर चौधरी
गजल: आँखें भी थक गयीं - डा. गीता गुप्त
विचार : मैं तो नहीं पढूंगी ... - डा. ऋतु पल्लवी
प्रेरक कथा: खाली डिब्बा
ब्लाग बुलेटिन से: कोलंबस होना अच्छा... - रश्मि प्रभा
वाह भई वाह
ताँका: पावस - रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
आपके पत्र
रंग बिरंगी दुनिया
3 comments:
बहुत अच्छा लगा यहाँ आ कर। अभी कम समय ही बैठ पाती हूँ इस लिये सभी को पढ नही पाती। धन्यवाद कुछ दिन मे सब को पढती हूँ
‘उदंती’ का नया अंक देखा। हमेशा की तरह यहाँ आकर अच्छा ही लगा । स्वास्थ्य की कुछ समस्याओं के चलते सभी तो अभी नहीं पढ़ पाई, पर फिर भी जितना पढ़ा, अच्छा लगा । ताँका मैं लिखती नहीं, पर भाई काम्बोज जी की कविताएँ मुझे हमेशा से बहुत पसन्द रही। जापानी ही सही, पर ताँका है तो कविता की एक शैली ही...काम्बोज जी को उनके खूबसूरत ताँका के लिए बधाई ।
एक बार फिर ‘उसने कहा था’ पढ़ कर आनन्द मिला, आभार ।
पानी की सामयिक समस्या आपने बड़ी खूबी से सामने रखी है, बधाई ।
आप के अच्छे सम्पादन पर मेरी शुभकामनाएँ ।
प्रेम गुप्ता ‘मानी’
उत्तम रचनाओं के साथ सहेजा गया उत्त्म अंक। अपने प्रिय लेखकों रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ और रश्मिप्रभा जी के साथ-साथ अन्य लेखकों को पढ़ना सुखद रहा।
डॉ रत्ना वर्मा को एक उच्च स्तर की पत्रिका के लिए बधाई और शुभकामनाएँ!
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