लंदन में टैक्सी चलाने वाले लोगों पर किए गए टेस्ट से पता चला है कि उनके मस्तिष्क का आकार बढ़ गया है। रास्तों के नाम याद करते- करते उन्होंने अपने दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।
लंदन में टैक्सी ड्राइवर बनने का मतलब केवल ट्रैफिक के नियमों को याद करना ही नहीं होता, बल्कि हर गली- सड़क का नाम भी याद करना होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो ये ड्राइवर अपने दिमाग का आम इंसान से ज्यादा प्रयोग करते हैं। दरअसल इन ड्राइवरों को सैलानियों को ध्यान में रखते हुए सभी पर्यटन स्थलों और साथ ही दस किलोमीटर के घेरे में करीब 25 हजार सड़कों के नाम याद करने होते हैं। लंदन के ड्राइवरों ने इसे नालेज यानी ज्ञान का नाम दिया है। इस ज्ञान को हासिल करने में चार साल का वक्त लग जाता है और आधे ही लोग इसे ठीक तरह से ग्रहण कर पाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवर केवल लाइसेन्स ही प्राप्त नहीं करते हैं, बल्कि वे अपना दिमाग भी बाकियों की तुलना में ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के न्यूरोसाइंटिस्ट्स के एक दल ने पाया कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवरों के मस्तिष्क में ग्रे मैटर अन्य ड्राइवरों की तुलना में ज्यादा था। रिपोर्ट लिखने वाली एलेनोर मेगवायर ने बताया, हम जानते हैं कि मस्तिष्क का वह हिस्सा जो रास्ते याद करने में हमारी मदद करता है उसे हिपोकैम्पस कहा जाता है। सिर्फ वे ड्राइवर जो टेस्ट पास कर सके- जो नालेज हासिल कर सके- सिर्फ उन्हीं के मस्तिष्क में हमें कुछ बदलाव दिखे और ये बदलाव खास तौर से हिपोकैम्पस में देखे गए।
एलेनोर मेगवायर की टीम ने 79 ड्राइवरों पर प्रयोग किए। इन में से केवल 39 ही टेस्ट पास कर सके। इसके अलावा अन्य 31 लोगों को भी प्रयोग में शामिल किया गया। सभी 110 लोग एक ही आयु वर्ग के और एक जैसे बौद्धिक स्तर के थे। इन सब के मस्तिष्क का एमआरआई किया गया। परिणाम एक जैसे ही दिखे। लेकिन फिर तीन चार साल बाद जब दोबारा स्कैन किया गया तब परिणाम अलग दिखे। जिन लोगों ने टेस्ट पास किया था उनके मस्तिष्क में हिपोकैम्पस का आकार बढ़ गया था।
लंदन में टैक्सी ड्राइवर बनने का मतलब केवल ट्रैफिक के नियमों को याद करना ही नहीं होता, बल्कि हर गली- सड़क का नाम भी याद करना होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो ये ड्राइवर अपने दिमाग का आम इंसान से ज्यादा प्रयोग करते हैं। दरअसल इन ड्राइवरों को सैलानियों को ध्यान में रखते हुए सभी पर्यटन स्थलों और साथ ही दस किलोमीटर के घेरे में करीब 25 हजार सड़कों के नाम याद करने होते हैं। लंदन के ड्राइवरों ने इसे नालेज यानी ज्ञान का नाम दिया है। इस ज्ञान को हासिल करने में चार साल का वक्त लग जाता है और आधे ही लोग इसे ठीक तरह से ग्रहण कर पाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवर केवल लाइसेन्स ही प्राप्त नहीं करते हैं, बल्कि वे अपना दिमाग भी बाकियों की तुलना में ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के न्यूरोसाइंटिस्ट्स के एक दल ने पाया कि टेस्ट पास करने वाले ड्राइवरों के मस्तिष्क में ग्रे मैटर अन्य ड्राइवरों की तुलना में ज्यादा था। रिपोर्ट लिखने वाली एलेनोर मेगवायर ने बताया, हम जानते हैं कि मस्तिष्क का वह हिस्सा जो रास्ते याद करने में हमारी मदद करता है उसे हिपोकैम्पस कहा जाता है। सिर्फ वे ड्राइवर जो टेस्ट पास कर सके- जो नालेज हासिल कर सके- सिर्फ उन्हीं के मस्तिष्क में हमें कुछ बदलाव दिखे और ये बदलाव खास तौर से हिपोकैम्पस में देखे गए।
एलेनोर मेगवायर की टीम ने 79 ड्राइवरों पर प्रयोग किए। इन में से केवल 39 ही टेस्ट पास कर सके। इसके अलावा अन्य 31 लोगों को भी प्रयोग में शामिल किया गया। सभी 110 लोग एक ही आयु वर्ग के और एक जैसे बौद्धिक स्तर के थे। इन सब के मस्तिष्क का एमआरआई किया गया। परिणाम एक जैसे ही दिखे। लेकिन फिर तीन चार साल बाद जब दोबारा स्कैन किया गया तब परिणाम अलग दिखे। जिन लोगों ने टेस्ट पास किया था उनके मस्तिष्क में हिपोकैम्पस का आकार बढ़ गया था।
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