लंबे समय तक ग्रीष्म लहर और सूखे के प्रभाव से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। बार-बार डीहाइड्रेशन (निर्जलन) और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन से किडनी की जीर्ण बीमारियां हो सकती है। लगातार गर्म रातों के कारण नींद की कमी से मानसिक क्षमता घटती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। यह खतरा गर्भ में पल रहे बच्चों को भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान ग्रीष्म लहर जैसी पर्यावरणीय चुनौतियाँ गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती हैं और लंबे समय के उनके स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं।
देखा जाए तो, जलवायु परिवर्तन के दबाव जीन अभिव्यक्ति तक को प्रभावित कर सकते हैं। शोध बताते हैं कि जो बच्चे गर्भ में गर्म और शुष्क परिस्थितियों के संपर्क में आते हैं, उनमें वयस्क होने पर उच्च रक्तचाप की संभावना अधिक होती है।
कुल मिलाकर, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गहरे और दूरगामी हो सकते हैं।
इन खतरों के बावजूद, वर्तमान जलवायु आकलन स्वास्थ्य पर पूरे प्रभाव को सही ढंग से मापने में असफल रहे हैं। वास्तव में वर्षों में विकसित होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को मापना मुश्किल होता है। असंगत स्वास्थ्य डैटा के कारण लंबे समय तक स्वास्थ्य के जोखिमों को ट्रैक करना काफी जटिल कार्य है। उदाहरण के लिए, हम यह तो समझते हैं कि गर्मी शरीर को कैसे प्रभावित करती है, लेकिन यह अलग-अलग लोगों को दीर्घावधि में किस तरह प्रभावित करती है, इसे ट्रैक करना अब भी एक चुनौती बना हुआ है।
इस अंतर को पाटने के लिए, शोधकर्ताओं और जन स्वास्थ्य अधिकारियों को जलवायु प्रभाव से जुड़े अध्ययनों का दायरा बढ़ाना होगा। उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली बीमारियों और मौतों का बोझ मौजूदा अंदाज़ों से कहीं अधिक है। इसलिए, बेहतर स्वास्थ्य डैटा और दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)
1 comment:
संभवतः वृक्षारोपण से कुछ समस्या का निदान हो और बढ़ते तापमान पर अंकुश पाया जा सके!!🙏
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