कल मिर्ज़ा से मुलाक़ात हुई तो वो बहुत उखड़े- उखड़े से नज़र आने लगे। मैं परेशान कि आखिर इन्हें हुआ, तो हुआ क्या, क्यों मुँह फुला कर बैठे है? मैंने कारण पूछा तो कहने लगे- कल सदर बाज़ार में तुमको कितनी आवाज़ दी; लेकिन तुम तो ऐसे अनजान बन कर चले गए, जैसे चुनाव जीतने के बाद उम्मीदवार चला जाता है। मैं तुमको सामाजिक आदमी समझता था; लेकिन तुम तो राजनैतिक प्राणी निकले।
मैं परेशान हैरान कि मिर्ज़ा आवाज़ दे और मैं न पलटूँ? लेकिन कल उनकी आवाज़ पर मैं पलटता तो पलटता कैसे? मैं तो पिछले आठ दिन से सदर बाज़ार गया ही नहीं हूँ। मैंने मिर्ज़ा को बहुत समझाने की कोशिश की कि कल सदर बाज़ार गया ही नहीं था; लेकिन वे तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं। बस एक ही बात कहे जा रहे हैं- मैंने तुमको अपनी आँखों से वहाँ देखा था, जहाँ तुम अपना वही एकमात्र भूरे रंग का सूट पहन कर तेज़ कदमों से जा रहे थे।
अब मिर्ज़ा को समझाऊँ, तो समझाऊँ कैसे, कैसे यकीन दिलाऊँ कि न तो मैं कल सदर बाज़ार गया था और न ही अपना वह एकमात्र सूट ही पहना था; क्योंकि वह सूट तो धोबी को धोने के लिए दिया है । लेकिन मिर्ज़ा तो इस कदर नाराज़ थे, मेरी बात पूरी सुने भी नहीं और चले गए।
वे तो निकल गए; लेकिन मैं यह सोचकर टेंशन में आ गया कि मिर्ज़ा तो पाँच वक्त का नमाज़ी है। वह तो झूठ बोल नहीं सकते। पर ये कैसे हो सकता है कि कल मैं सदर बाज़ार गया और यह बात मु्झे ही मालूम नहीं और गया भी तो वह सूट पहनकर गया, जो मेरे पास है ही नहीं। कल तो मैं अपने घर पर अपनी बीवी के साथ था, अगर मैं सदर में था तो घर में मेरी बीवी के साथ कौन था और अगर मैं घर में था, तो फिर सदर में कौन था? अगर मैं भूरा सूट पहनकर गया था, तो धोबी को किसका भूरा सूट धोने के लिए दिया हूँ? बस तभी दिमाग़ की खिड़की खुली और उसमें समझ की रौशनी आई और सारा मामला साफ़ हो गया कि न मिर्ज़ा झूठे न मैं झूठा। मिर्ज़ा ने मुझे देखा यह भी सच और वह मैं नहीं था, यह भी सच। मिर्ज़ा जिसे 'मैं हूँ' समझ रहे थे, वह मैं नहीं बल्कि मेरा सूट था और आवाज़ मुझे नहीं, मेरे सूट को दी जा रही थी, जिसे मेरा धोबी पहनकर सदर बाज़ार में घूम रहा था।
धोबी के इस कपड़ा पहनो अभियान से कई बार मैं मुसीबत में पड़ चुका हूँ । उसे डाँटा भी और प्यार से भी समझाया कि तुम्हें कपड़े धोने के लिए दिए जाते हैं, पहनने के लिए नहीं; लेकिन वह अपनी आदतों से बाज़ आता ही नहीं है। वह तो मेरे कपड़े पहन मस्त घूम रहा है और यहाँ मेरे मिर्ज़ा जैसे अच्छे लोगों से सम्बंध ख़राब हो रहे हैं। एक दिन तो मेरे बच्चे मेरे धोबी के पीछे पापा- पापा कहकर दौड़ पड़े थे। जब उसने उन्हें गोद में लिया, तब उन्हें पता चला कि ये पापा नहीं है।
एक दिन जब मैं सिर्फ टॉवेल लपेटे छत पर टहल रहा था, तो क्या देखता हूँ- नीचे सड़क पर मेरा धोबी मेरे ही कपड़े पहने शान से चला आ रहा है। मेरी तो जान जल गई। जी कर रहा था कि अभी जाऊँ और अपने कपड़े उतारकर उसे सरे राह नंगा कर दूँ; लेकिन मैं उसे नंगा करने नहीं जा सकता था; क्योंकि उस समय मैं ख़ुद नंगा था।
जब मेरे ढंग के कपड़े मेरा धोबी पहनकर शान से घूमता है, उस वक्त मैं अपने बेढंगे कपड़ों में टहल रहा होता हूँ। जी करता है, अगर अब कभी धोबी मेरे कपड़े पहने दिखा तो उसकी वह हालत करूँगा कि उसका जिस्म कपड़े पहनने लायक ही नहीं रहेगा। और एक दिन यह मौका मेरे को मिल ही गया- मैंने लपककर उसका कॉलर पकड़ लिया। इसपर वह चिल्लाकर बोला- ''कॉलर मत खींचिए। आपका ही कमीज़ है, फट गया, तो उसके ज़िम्मेदार आप ख़ुद होंगे, मैं नहीं।'' उसकी धमकी सुनते ही मेरा हाथ ढीला पड़ गया और वह भाग गया। एक दो बार तो उसने मेरे प्रकाशित लेख की बधाई भी स्वीकार कर ली है।
जब भी मैं अपने धोबी को अपने कपड़े पहने देखता हूँ, तो मुझे सुना हुआ एक किस्सा याद आ जाता है कि एक साहब अपने रिश्तेदार के घर मेहमान होकर गए और जितने भी दिन रहे, उनकी ही चीज़ें इस्तेमाल करते रहे। उनका रिश्तेदार उनकी इस हरकत से इतना परेशान हो गया था कि एक दिन अपने पड़ोसी को बताने लगा कि यह तो अजीब आदमी है्। इसको दाढ़ी बनानी होती है, तो मेरा शेविंग सेट इस्तेमाल करता है। नहाने के बाद मेरे टॉवेल से बदन पोंछता है, बाहर जाता है, तो मेरे जूते पहनकर जाता है। मुझे यह सब मंजूर है; लेकिन कम से कम पान चबाने के लिए तो मेरे दाँतों का सेट इस्तेमाल न करें, लेकिन वह तो दाँतों का सेट भी मेरा ही इस्तेमाल करता है और मुझ पर मेरे ही दाँत दिखाकर हँसता है।
मुझे मेरे धोबी ने इतना परेशान कर दिया है कि जी करता है- धोबी को धो डालूँ और निचोड़कर सुखा दूँ। उसकी हिम्मत तो दिन- ब- दिन बढ़ती ही जा रही है। एक दिन मैंने उसको अपनी काली पेंट धोने के लिए दी, तो कहता है इसके साथ का सफ़ेद शर्ट भी दीजिए। मैंने कहा- ''अभी सफ़ेद शर्ट इतनी गंदी नहीं हुई है।'' मेरा जवाब सुनकर वह नाराज़ हो गया और कहने लगा- ''कपड़े धुलवाने का यह ठीक तरीका नहीं है। मुझे एक शादी में जाना है। अब वहाँ काली पेंट के ऊपर नीला पीला शर्ट पहनूँगा, तो क्या अच्छा लगेगा?
किसी मनचले ने धोबी के सम्बंध में कहा है- धोबी वह शख्स होता है, जो कपड़ों से पत्थर को फोड़ता है, अतः जब भी धोबी मेरे कपड़े धोकर लाता, मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता कि लो मेरे कपड़े पत्थर फोड़कर आ गए। मेरे कपड़ों की हालत इस बात की गवाह होती कि उन्होंने पत्थर तोड़ा है। कभी शर्ट का कॉलर मुड़ा हुआ हो, तो कभी पेंट फटी हुई होती। एक दिन धोबी मेरा पाजामा धोकर लाया, तो मैं अपना पाजामा देखकर सकते में आ गया, मैंने धोबी से कहा- ''भाई इसमें पहले दो पाँयचे हुआ करते थे। तुम तो एक ही लाए हो, दूसरा कहाँ गया?"
धोबी ने लापरवाही से कहा- "अरे किसी के पास चला गया होगा। मैं फिर जब आऊँगा, तो लेता आऊँगा।'' लेकिन फिर वह कभी उसे लेकर नहीं आया। वह अकेला पाँयचा अपने साथी पाँयचे से बिछड़कर उदास- सा अलमारी में पड़ा रहता है। एक वक्त था, जब दोनों की जोड़ी ने कितनी ही महफ़िलों में धूम मचाई थी, लेकिन इस धोबी की वजह दोनों एक दूसरे से बिछड़ गए। जब भी मैं उस पाजामे को देखता हूँ, तो गाने लगता हूँ “दो हंसो का जोड़ा बिछड़ गयो रे ....”
इस धोबी की हरकतों के कारण मैं कई बार अपमानित हो चुका हूँ। एक बार धोबी कपड़े धोकर लाया, तो उसमें मेरी सफ़ेद शर्ट नहीं थी। मैं जिद में अड़ गया कि मुझे मेरी सफ़ेद शर्ट चाहिए< तो बस चाहिए। तो उसने मुझे एक लाल शर्ट लाकर दे दी कि फ़िलहाल इस शर्ट को बतौर ज़मानत रख लीजिए। मैंने बहुत मना किया कि मुझे किसी और की शर्ट अपने पास नहीं रखनी है: लेकिन वह माना नहीं और वह लाल शर्ट मुझे देकर ही माना। एक दिन मेरे पास कोई धुली हुई शर्ट नहीं थी, तो वही लाल वाली शर्ट पहनकर बाज़ार चला गया। अभी चार कदम ही चला था कि पीछे से एक साहब ने मेरा कॉलर पकड़ लिया और कहा – ''क्यों बे कपड़ा चोर, उतार मेरी शर्ट या चल पुलिस थाने। पुलिस का नाम सुनते ही मेरी तो पुई हो गई। मरता क्या न करता, बीच बाज़ार में शर्ट उतारकर उन साहब को दे दी और खुद नंगा घर आया।
एक दिन तो धोबी ने हद ही कर दी। कपड़े की दुकान पर मुझे कपड़े खरीदते देख लिया। मैं कपड़े लेकर दर्जी की दुकान पर गया, तो दर्जी ने कपड़े लेकर कहा बुधवार को दे दूँगा। मैंने कहा- वह तो ठीक है; पर पहले मेरा नाप तो ले लो। दर्जी बोला- उसकी कोई ज़रूरत नहीं है; क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही आपका धोबी अपना नाप देकर गया है। सच कहता हूँ पाठकों उस दिन से हर रोज़ मैं यही दुआ माँगता हूँ- “या अल्लाह मुझे मेरे धोबी से बचाओ!'
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सम्पर्कः निकट मेडी हेल्थ हास्पिटल , आमानाका , रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) 492010, मो. 9826126781
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