- डॉ. रत्ना वर्मा
यह खबर पाँच सितारा ‘सद्भावना वृद्धाश्रम’ के बारे में है जो मानवसेवा चैरिटेबल ट्रस्ट राजकोट- जामनगर हाईवे पर 30 एकड़ की विशाल जमीन पर बनाया जा रहा है, जिसकी अनुमानित लागत 300 करोड़ रुपये है। इसमें 11-11 मंजिल वाली 7 इमारतें होंगी, जिनमें कुल 1400 कमरे होंगे और वहाँ 5000 बुजुर्ग रह सकेंगे। दो मंजिला डायनिंग हॉल, एक लाइब्रेरी, एक योग रूम और एक प्रार्थना- कक्ष भी होगा। इस समाचार में पाँच सितारा वाली बात ने ध्यान आकर्षित किया और सबसे पहले यही विचार मन में कौंधा कि चलो देश में लगातार बढ़ रही बुजुर्गों की संख्या के लिए कुछ लोगों ने, कम से कम उनके बेहतर रहने लायक ठिकाना बनाने के बारे में सोचा तो।
अकेले जीवन गुजार रहे वृद्ध माता- पिता के लिए अफसोस के साथ यह कहा जाता है- देखो इनके बच्चों को, जो बुढ़ापे में मरने के लिए वृद्धाश्रम में छोड़कर खुद आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं। चूँकि हमारे देश में सयुंक्त परिवार की परंपरा तो पहले ही खत्म हो चुकी है और एकल परिवारों में बुजुर्गों के लिए जगह ही नहीं होती। यह स्थिति सचमुच दुखद है। जिन माता- पिता ने हर कष्ट सहकर अपने बच्चों के लिए सारे साधन उपलब्ध कराए, जब वही बच्चे बुढ़ापे में उनको बेसहारा छोड़ जाते हैं, तब मानवता कलंकित होती है, जबकि हमारी भारतीय संस्कृति में माता- पिता की सेवा भगवान की पूजा की तरह माना जाता है। इन सबके साथ यह भी देखने में आता है कि आज के बदलते सामाजिक दौर में अब कुछ परिवारों में माता- पिता स्वयं ही अकेलेपन की यह जिंदगी चुनने को बाध्य हैं। उनका कहना है- हमने अपने बच्चों को लायक बनाकर, उनको इतनी स्वतंत्रता दी है कि वे अपनी पसंद के अनुसार जिंदगी गुजार सकें। वे यह बिल्कुल नहीं चाहते कि उनका बुढ़ापा, उनके बच्चों की तरक्की में आड़े आए, वे अकेलेपन में ही खुशियाँ ढूँढ लेते हैं।
लेकिन जीवन का दूसरा पहलू इतना सीधा और सरल नहीं है; क्योंकि देश में बढ़ रहे वृद्धाश्रमों की संख्या और वहाँ रहने वालों बुजुर्गों की बदतर हालत को देखकर, इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि अपने बच्चों और परिजनों से दूर ऐसे हजारों लाखों बुजुर्ग इतने अकेले, बीमार और अवसाद से घिरे होते हैं कि अपना बुढ़ापा एक बोझ की तरह गुजरता है और वे बस मौत का इंतजार कर रहे होते हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि उनके बच्चे या तो उनका अंतिम संस्कार करने आते हैं या उनकी छोड़ी गई सम्पति में हिस्सा माँगने।
इस प्रकार की विसंगतियों के बीच उपर्युक्त पाँच सितारा आश्रम की खबर एक तरह से खुश करने वाली तो मानी ही जाएगी। यह अच्छी खबर इसलिए भी है; क्योंकि भारत एजिंग रिपोर्ट 2023 के अनुसार इस समय गैर-सरकारी संगठनों और चैरिटेबल संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे लगभग 728 वृद्धाश्रम हैं, जिनमें से गिनती के कुछ को छोड़कर शेष आश्रमों के बुनियादी ढाँचे और सेवाओं की स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। ऐसे में यदि बेहतर सुविधाओं वाले आश्रमों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, तो बदतर स्थिति में जीवन गुजार रहे वृद्धों के लिए यह एक शुभ संकेत है।
सुविधाओं से युक्त ऐसे आश्रमों की संख्या बढ़ना इसलिए भी जरूरी हो जाता है; क्योंकि इंडिया एजिंग रिपोर्ट में जो आँकड़े दिए गए हैं, वे चौंकाने वाले हैं- भारत में 1 जुलाई 2022 तक 14.9 करोड़ (कुल आबादी का 10.5 प्रतिशत) आबादी बुजुर्गों की थी। 2050 तक आते- आते इनकी आबादी बढ़कर 34.7 करोड़ (कुल आबादी का 20.8 प्रतिशत) तक हो जाएगी। यानी 2050 में हर पाँच में एक शख्स बुजुर्ग होगा। ऐसे में यदि बेहतर सुविधाओं वाले आश्रमों की संख्या में इजाफा होगा, तो बढ़ती बुजुर्ग आबादी सम्मानजनक और आरामदायक जीवन गुजार सकेगी।एक बात मन में खटकती है, जब कुछ लोग सेवा के नाम पर साल में कुछ विशेष अवसरों पर वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के लिए कुछ सहायता पहुँचाते हैं और तस्वीर खिंचवाकर उसका प्रचार करते हुए समाचार पत्रों में फोटो छपवाते हैं कि देखो हमने सेवा का काम किया। इससे तो बेहतर होता, कुछ रचनात्मक काम करते हुए उन्हें स्थायी खुशी देने का प्रयास करते। इसके लिए साल भर के लिए कुछ कार्यक्रम बनाएँ। उनसे मिलें, उनके अनुभव सुने और जो क्रियाशील हैं, उनको कुछ करते रहने के लिए प्रोत्साहित करें; ताकि वे अपने को निष्क्रिय और असहाय महसूस न करें। उनसे मिलकर, बातचीत कर उनकी समस्याओं का पता लगाकर, उन्हें दूर करना ही उनकी सच्ची सेवा होगी। अकेलेपन और उदासी का इलाज सिर्फ पाँच सितारा सुविधा देना भर नहीं है, परिवार और बच्चों से दूर ऐसे बुजुर्ग प्यार, आदर और सम्मान के भूखे होते हैं।
यह सच है कि समाज की मूल, परंपराएँ और मान्यताएँ समय के साथ बदली हैं, आज संयुक्त परिवार और भी छोटे होकर एकल परिवार बन गए हैं, वृद्ध माता - पिता अक्सर अपने जीवन के इस दौर में अकेलापन महसूस करते हैं। ऐसे समय में वे अपनी वृद्धावस्था शांति और आराम से बिताएँ, इसके लिए समाज और परिवार को उनकी भावनाओं और विचारों को समझना होगा। एक समाज तभी प्रगति कर सकता है, जब वह अपनी वृद्धजन आबादी का सम्मान करे और उनके जीवन को सुखद और सुविधाजनक बनाने में योगदान दे। यह भी सत्य है कि जो आज युवा हैं, कल वे बुजुर्ग होंगे, अतः उन्हें ही अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ मूल्य, परंपराएँ और मान्यताएँ स्थापित करनी होंगी, ताकि उनके अपने बच्चे जिम्मेदार तथा भावनात्मक रूप से संवेदनशील बन सकें। आज केवल भौतिक प्रगति ही पर्याप्त नहीं है; मूल्य आधारित समाज का निर्माण करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आत्ममंथन करने की जरूरत है। माता-पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक जुड़ाव, संवाद, और पारस्परिक समझ बढ़ाने से ही इस दिशा में सुधार संभव है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसे परिवार, समाज, और सरकार सभी को मिलकर पूरा करना होगा।
तो आइए नए वर्ष का स्वागत करते हुए सब मिलकर कुछ अच्छा करें, कुछ अच्छा सोचें। सन्तान के मन में माँ-बाप के प्रति सम्मान हो, उनकी चिन्ता हो, यह आज के विषम समय के लिए आवश्यक है। अकबर इलाहाबादी का एक शेर आज भी प्रासंगिक है-
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
10 comments:
माता-पिता और बच्चों के बीच भावनात्मक संबंध और संचार आवश्यक है।
आदरणीया
इस बार बहुत गंभीर विषय को चुना आपने। सबके अंतिम पड़ाव की मंज़िल, पर हम सब बने हुए हैं कलियुग के कालिदास। यह यक्ष प्रश्न ही है। एक ओर जहां विदेशों में यह पड़ाव पूरी तरह सुरक्षित है, वहीं हमारे यहां दयनीय। सच कहें तो अब उत्तरोत्तर :
- बूढ़े मां बाप को घर से निकाल रक्खा है
- अजीब शौक है कुत्तों को पाल रक्खा है
-- स्विजरलैंड में तो अब दोनों पीढ़ी के हितार्थ टाइम बैंक की कल्पना को साकार किया गया है। win win प्रयास। युवा एवं बुज़ुर्ग पीढ़ी दोनों को लाभ।
-- आपके द्वारा उद्धरित प्रयास इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बशर्ते बुज़ुर्ग खर्च उठा पाने की स्थिति में हों।
-- काश भौतिकतावादी इस दौर में संतानें, समाज और शासन मिलजुल कर इस समस्या का हल खोजें
आपकी साहस समाहित लेखनी के प्रति अभिनंदन सहित सादर 🙏🏽
आपने एक गंभीर समस्या को उठाया है, निःसंदेह श्रवण कुमार की परम्परा वाले इस देश में बुजर्ग बहुत उपेक्षित और अकेले होते जा रहे हैं इसके कारण अनेक हो सकते हैं, इस समस्या के समाधान हेतु भी अनेक बिंदुओं से गंभीर प्रयास की आवश्यकता है, आपने सत्य ही कहा है- यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसे परिवार, समाज, और सरकार सभी को मिलकर पूरा करना होगा।
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भावपूर्ण विषय पर गंभीर चिंतन और लेखन ....आपकी सोच बेहद सराहनीय है.....एक ज्वलंत प्रश्न है कि एक उम्र के बाद माता पिता कहां जाएं ।उनकी सेवा ,देखभाल कौन करेगा..? लेकिन ये आपने अच्छा सुझाव दिया है कि उनके लिए भी कुछ क्रियात्मक ,रचनात्मक होना उनके जीवन में खालीपन को भर देगा .....
सामयिक समस्या जो संयुक्त परिवारों के एकल परिवारों में परिवर्तन होने के कारण उत्पन्न हुई है। पाँच सितारा वृद्धाश्रम बन जाने से वृद्धों को भौतिक सुख ते अवश्य मिलेंगे; लेकिन मानसिक सुख, ख़ुशी नहीं मिल सकती। अपनों की दूरी उनके मन के अकेलेपन को कैसे पाट सकती है! रत्ना जी आपने ज्वलंत, विचारणीय प्रश्न पर लेखनी चलाई है, जिसकी आज आवश्यकता है। साधुवाद। सुदर्शन रत्नाकर
आप बिल्कुल सही कह रहे हैं महोदय। कृपया गूगल में साइन इन करें तो आपका नाम दिखाई देगा।
आदरणीय जोशी जी,
आपकी गहन सोच और संवेदनशीलता के लिए हृदय से आभार। स्विट्जरलैंड का "टाइम बैंक" एक अनुकरणीय मॉडल है, जो हमें नई दिशा दिखा सकता है। संभवतः भविष्य में ऐसी सोच विकसित हो l
श्रीवास्तव जी आपने सही कहा श्रवण कुमार वाले देश में बुजुर्गों की स्थिति चिंतनीय है। आपकी सराहना और सहमति के लिए आपका अनेक अनेक धन्यवाद और आभार।
मीनाक्षी जी,
आपकी सराहना और संवेदनशीलता के लिए हृदय से धन्यवाद। निःसंदेह, बुजुर्गों के लिए रचनात्मक और क्रियात्मक पहल उनके जीवन के खालीपन को भरने की एक छोटी सी पहल हो सकती है। सादर।
आदरणीया सुदर्शन रत्नाकर जी,
आपकी सराहना और संवेदनशील दृष्टिकोण के लिए हृदय से आभार। आपकी बात बिल्कुल सही है कि भौतिक सुख अपनों की कमी को पूरा नहीं कर सकता। आपके प्रोत्साहन भरे शब्द प्रेरणादायक हैं। सादर धन्यवाद।
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