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Apr 1, 2024

अनकहीः बूँद- बूँद पानी बचाना होगा...

 - डॉ. रत्ना वर्मा

पानी अमृत था कभी, सूखी नदियाँ ताल ।

दर-दर हैं सब खोजते, जीना हुआ मुहाल ।।

गर्मी ने अभी पूरी तरह से दस्तक भी नहीं दी है कि पानी की समस्या की खबरें आनी शुरू हो गई हैं। मार्च माह के पहले ही सप्ताह में यह प्रमुख खबर थी कि बेंगलूरु शहर पानी की समस्या से जूझ रहा है। बेंगलूरु देश भर में एक ऐसा शहर है, जहाँ के बारे में यह जग प्रसिद्ध था कि वहाँ हर मौसम में साथ में छाता लेकर चलना पड़ता है - कब तेज धूप हो जाए, कब बारिश हो जाए; किसी को पता नहीं चलता था। लोग वहाँ के मौसम को रहने के लिए सबसे अनुकूल मानते थे। वहाँ का मौसम ऐसा इसलिए था; क्योंकि यह शहर कभी हज़ार झीलों वाला शहर कहलाता था, जिनमें से कुछ झीलें आठवीं शताब्दी और उससे भी पहले की थीं।  लेकिन, विकास की बयार ने सब कुछ बदल दिया। झीलों और बगीचों के शहर से देशी सिलिकॉन वैली बनने तक के सफर में बेंगलूरु ने अपना काफी कुछ खो दिया है।

यह विडम्बना है कि जिस शहर को बनाने में झीलों का महत्त्वपूर्ण हाथ रहा, वही झीलें अब उनके लिए मुसीबत बन गई हैं। झीलों के पानी को नियंत्रित करने के लिए पानी के निकास का रास्ता होना चाहिए;  लेकिन आज बची हुई झीलें गाद से भरी हुई हैं, और उनमें जल निकासी का रास्ता नहीं है बेंगलुरु में पानी की स्थिति इतनी बदतर नहीं होती, अगर शहर ने अपनी हजार झीलों की उपेक्षा न की होती। अब गंभीर जल संकट के बीच, कर्नाटक जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड ने कार धोने, बागवानी, भवन- निर्माण, पानी के फव्वारे, सड़क निर्माण और रखरखाव के लिए पीने के पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही, स्पष्ट तौर पर कहा है कि आदेश का उल्लंघन करने पर 5000 रुपये का जुर्माना देना पड़ेगा।

वह दिन दूर नहीं, जब धीरे- धीरे इस प्रकार की खबरें देश के सभी हिस्सों से आनी शुरू हो जाएँगी। अमूमन हर बरस ही पानी की समस्या से हम सब जूझते हैं। ढेरों उपाय, ढेरों नसीहतें देते गर्मी बीत जाती है और जब तक गर्मी रहती है, तब तक लोग जागरूक होने की थोड़ी- सी जिम्मेदारी निभाते हैं। कुछ समय के लिए कार की धुलाई करना बंद कर देते हैं, आँगन की धुलाई रोज नहीं करते, शॉवर से नहाना बंद करते हैं...नल टपकने पर चिंतित हो जाते हैं... पर यह सब कुछ दिन तक रहता है, उसके बाद फिर वही ढाक के तीन पात...  चाहे सरकार हो, प्रशासन हो या हम स्वयं। सबको पता है कि पानी की कमी के पीछे क्या कारण हैं और किन उपायों के जरिए पानी बचाया जा सकता है, लेकिन उन उपायों को लागू करने के लिए न कोई कठोर नियम या कानून बनाए जाते हैं, न ही उनपर अमल करने के लिए सख्ती बरती जाती।

जैसे आप जब अपना घर बनाना शुरू करते हैं तो  सबसे पहले ये देखते है कि पानी का सबसे अच्छा स्रोत कहाँ हैं, ताकि वहाँ बोरिंग करवा सकें। उसी समय वे यह नहीं सोच पाते कि उनका बोर कभी न सूखे, इसके लिए उन्हें वॉटर हारवेस्टिंग सिस्टम भी लगाना अनिवार्य है । आप ही सोचिए ,अगर  प्रत्येक घर में अगर एक बोर होगा, तो धरती भी कहाँ तक सबकी प्यास बुझा पाएगी। यदि एकमात्र इसी एक नियम को भी सख्ती से लागू कर दिया जाए,  तो वर्षा -जल का संचयन करके पानी की इस किल्लत से कुछ सीमा तक राहत पाई जा सकती है। ऐसा भी नहीं है कि पानी बचाने के लिए कुछ किया नहीं जा रहा है - पानी बचाओ अभियान जैसे अनेक कार्यक्रम और योजनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर बहुत तेजी से चल रही हैं। वर्षा के पानी का संचयन करो, पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ, प्रदूषण कम करो जैसे अनेक कार्यक्रम निरंतर चल रहे हैं। हमारी  शिक्षण- संस्थाओं ने भी एक विषय के रूप में  इन्हें शामिल किया है;  परंतु  जितनी जागरूकता  आनी चाहिए, वह दिखाई नहीं देती। सबकी समस्या दरअसल यही है, हम कभी गंभीर होते ही नहीं। तो जरूरत गंभीर होने की है।

 यह तो सर्वविदित है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों और जलस्रोतों के पास ही हुआ है। सिंधु घाटी सभ्यता का विकास सिंधु नदी, मिस्र की सभ्यता नील नदी, चीन की सभ्यता येलो और यांगत्जे नदियों के पास हुआ है। सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों के उत्खनन से उस जमाने में भी वाटर हार्वेस्टिंग और ड्रेनेज की उत्कृष्ट तकनीक मौजूद होने के प्रमाण मिलते हैं। यही नहीं हमारी परम्पराओं, उत्सव और मान्यताओं का नाता मौसम और पानी से जुड़ा हुआ है, इसीलिए पानी के संरक्षण को लेकर हमारे पूर्वज जागरूक थे और उन्होंने तालाब, कुएँ और बावड़ियों के निर्माण को समाज का आवश्यक हिस्सा बनाया था। पानी तब भी हमारे जीवन के लिए पूजनीय था, आज भी है;  पर आज  हमने पानी का सम्मान करना छोड़ दिया हैं। विकास के नाम पर उद्योग- धंधों और शहरीकरण के दबाव में तालाबों और जलाशयों को हमने नष्ट ही कर दिया है। कुछ जलाशयों पर अवैध कब्जा करके बिल्डिंग खड़ी कर दी जाती है।  नतीजा सबके सामने है । इस समय हम और आप पानी की गंभीर किल्लत झेल ही रहे हैं. हमारी आने वाली पीढ़ी कैसे इसका सामना करेगी, यह चिंतनीय है। इससे बचने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास और उपाय करने होंगे।

 पानी बचाने के लिए प्राकृतिक उपायों के साथ साथ उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले पानी की जरूरत को रोकना होगा। इसके लिए रिसाइक्लिंग टेक्नोलॉजी का सहारा लेना होगा। साथ ही घरों में होने वाले पानी की बर्बादी पर अंकुश लगाना होगा। फिलहाल तो इतना ही कि पानी के इस भीषण संकट से जूझना है, तो  सरकार के साथ-साथ सभी नागरिकों की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि सब मिलकर पानी की भरपूर बचत करें. , उतना ही उपयोग करें, जितनी आवश्यकता हो। इसके लिए सिर्फ गर्मी ही नहीं, साल भर पानी बचाना होगा। तो आइए, अपने पर्यावरण को, अपनी धरती को फिर से हरा- भरा बना कर पानी को संरक्षित करें।

मानव रखना याद तू, जल जीवन का मूल ।

बूँद-बूँद सँभालना, रखना यही उसूल ।।

19 comments:

विजय जोशी said...

आदरणीया,
बहुत गहन गम्भीर विषय पर कलम उठाई आपने इस बार। अब से 25 वर्ष पूर्व भेंट के दौरान अंतरराष्ट्रीय जल पुरुष राजेंद्र सिंह जी के शब्द आज भी मुझे याद हैं कि यदि हम न चेते तो एक दिन हमें पानी दूध के भाव मिलेगा। सो हम देख ही रहे हैं Bisleri एक लीटर की बोतल की कीमत।
उनका अगला वाक्य था : और फिर भी न चेते तो पानी एक दिन मिलेगा घी के भाव।
वे तो आज भी भागीरथ की तरह प्राणपण से लगे हैं अपने पानी बचाओ मिशन में। पर हम सब ठहरे कलियुग के कालिदास। जिस डाल पर बैठें हैं उसे ही काट रहे हैं।
ईश्वर सद्बुद्धि दे हमारी पीढ़ी को वरना एक दिन हमारी अपनी संतानें हमें कोसेंगी।
आपके साहसिक अभियान को प्रणाम सहित सादर

रत्ना वर्मा said...

हार्दिक धन्यवाद l आपका कथन एकदम सही है अदरणीय जोशी जी l समस्या तो सब समझते हैं पर पहला कदम उठाने की जहमत कोई नहीं उठाना चाहताl आप जैसे मनीषी ही पानी बचाओ मिशन को जन जन का मिशन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं l

Meenakshi Sharma "Manasvi" said...

आपका लेख आज अनेकों स्थानों पर होने वाली इस कठिन समस्या को उजागर करने के साथ साथ समाधान की दिशा में चलते हुए जल की एक एक बूंद को संरक्षित करने के उपाय भी बतलाता है ।
यदि आज नहीं सोचा गया तो बहुत देर हो जायेगी ....कंक्रीट के जंगलों को बसते देख सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं और ये भूल ही जाते हैं की यदि मिट्टी, को स्थान नहीं मिला तो जल भी नहीं रहेगा .....

Anonymous said...

आपने ज्वलंत समस्या एवं उसके समाधान को बड़े सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। यदि आज कारगर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढ़ियाँ क्या करेंगी, यह प्रश्न पीड़ा देता है। हमसे किसी न किसी को तो भागीरथ बनना ही होगा ।लोग व्यर्थ पानी बहाने के दुष्परिणाम जानते हुए भी चेतते क्यों नहीं? चिंता का विषय तो है ही। सुदर्शन रत्नाकर

रत्ना वर्मा said...

शुक्रिया मीनाक्षी जी। आपने बिल्कुल सही फरमाया।अब भी नहीं सोचेंगे तो फिर कब? आपकी सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

रत्ना वर्मा said...

आपका हृदय से धन्यवाद सुदर्शन जी।आपने समय निकालकर अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराया इसके लिए आभार। अब हम सबको मिलकर इस विषय पर सोचना ही होगा।

देवेंद्र जोशी said...

बहुत दुःख की बात है कि अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों को भी यह बात अभी तक समझ में नहीं आयी कि पानी को किफायत से बरतना चाहिएl आशा है आपका लेख कुछ लोगों की आंखे खोलेगाl

मुकेश कुमार सिंह said...

बहुत ही दुख की बात है कि समझ तो सभी रहे है परंतु मान कोई नहीं रहा है।
सच तो यह है कि पानी को बचाया जा सकता है परंतु पानी को बनाया नहीं जा सकता है।

रत्ना वर्मा said...

मुकेश जी आपने बहुत ही पते की बात कही है कि 'पानी को बचाया जा सकता है परंतु पानी को बनाया नहीं जा सकता है'। इन पंक्तियों को मैं हमेशा याद रखूंँगी। इस टिप्पणी के लिए आभार के साथ आपका हार्दिक धन्यवाद।

Anonymous said...

बिलकुल सही लेख, Somehow preserving water is stil not in our DNA because it comes free.

रत्ना वर्मा said...

अदरणीय आपने बड़ी सटीक बात कही... काश कोई चमत्कार हो जाए और जल संरक्षण मनुष्य के DNA में समा जाए...

विनोद साव said...

कहते हैं भारत में कोई भी नदी अब आचमन के लायक रह नहीं गई है. संपादिका ने मानवीय मुद्दे के अमानवीय होते रुप को उठाया है.

Basant Raghav said...

जरूरी लेख।

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत सार्थक आलेख, हम सभी को सबसे पहले जागरुक होना होगा । एक विचारपरक और सशक्त रचना के लिए बहुत बधाई आपको

रत्ना वर्मा said...

शुक्रिया बसंत जी 🙏

रत्ना वर्मा said...

आपका हृदय से धन्यवाद प्रियंका जी। यह बीड़ा हम सबको मिलकर उठाना होगा 🙏

रत्ना वर्मा said...

विनोद जी आपने बिल्कुल सही बात कही है। नदी हमारे लिए पूजनीय हैं, पर पवित्र नदियों की पूजा- अर्चना के नाम पर हमने उनका क्या हाल किया ही सभी जानते हैं। प्रतिक्रिया के लिए आभार के साथ आपका हार्दिक धन्यवादl 🙏

रमेशराज तेवरीकार said...

पानी की समस्या को लेकर सुंदर सामयिक लेख

Anonymous said...

रत्ना जी यह सामयिक लेख पढ़ कर मन क्षुब्ध हुआ । इस सब के ज़िम्मेवार भी तो हम ही हैं । अमेरिका में भी कई राज्यों में गर्मियों में यार्ड में पानी देने की मनाही हो जाती है । यह संकट विचारणीय है । आपने यह मुद्दा उठाया , आपको साधुवाद ।