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Apr 1, 2024

चिंतनः मन थोड़ा बदल जाए तो...

-  सीताराम गुप्ता

प्रसिद्ध उर्दू शायर शुजाअ खावर साहब का एक शेर है – 

थोड़ा-सा बदल जाए, तो बस ताज हो और तख़्त, 

इस दिल का मगर क्या करें सुनता नहीं कमबख़्त। 

यदि हमारा मन थोड़ा सा बदल जाए, तो सचमुच कमाल हो जाए। क्या करें इस मन का? यह मन है कि मानता ही नहीं। यह मन ही है, जो हमें अपने अनुसार चलाता है लेकिन यदि हम मन को अपनी बात सुना सकें, इसे थोड़ा मना सकें और अपने अनुसार चला सकें तो यही मन हमें जीवन के हर क्षेत्र में अपार सफलता और खुशियाँ दिलवा सकता है। हमारे जीवन में क्रांति उत्पन्न कर सकता है। 

कालिदास कहते हैं - नास्त्यगतिर्मनोरथानां अर्थात् मन की इच्छा के समक्ष कुछ भी अगम्य नहीं है। मन , जो चाहे कर सकता है और मन को बदलना, मन पर नियंत्रण कर इसको अपेक्षित दिशा में ले जाना, थोड़ा कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। एक बार इस मन को अपने नियंत्रण में ले लिया, इसकी चंचलता पर क़ाबू पा लिया तो जीवन में कुछ भी करना असंभव नहीं रह जाएगा। कहा गया है मन के हारे हार है मन के जीते जीत। वास्तव में जीवन में हम न तो हारते हैं और न ही असफल होते हैं अपितु यह हमारा मन है, जो हमारी हार-जीत अथवा सफलता-असफलता के लिए उत्तरदायी होता है। हार-जीत अथवा सफलता-असफलता की अनुभूति भी मन के कारण ही होती है अन्यथा जीवन में न तो हार-जीत होती है और न ही सफलता-असफलता ही।

 हार-जीत अथवा सफलता-असफलता मन की विभिन्न स्थितियाँ है। एक बच्चा परीक्षा में चालीस प्रतिशत अंक लेकर पास होता है और ख़ुश है लेकिन दूसरे बच्चे के अस्सी प्रतिशत अंक आने पर भी वो दुखी है। यहाँ सफलता अथवा ख़ुशी अंकों के आधार पर नहीं अपितु मन की स्थिति पर निर्भर है। हार-जीत ही क्या किसी भी प्रकार का सुख-दुख, लाभ-हानि, आरोग्य अथवा रुग्णता सब मन की स्थिति पर निर्भर करता है। मन न केवल प्रसन्नता अथवा दुख का कारण बनता है अपितु मन द्वारा ही अपेक्षित प्रसन्नता व सफलता भी प्राप्त की जा सकती है। मन की स्थिति अथवा सोच को परिवर्तित करके न केवल वर्तमान स्थिति में परिवर्तन संभव है अपितु नई लाभप्रद स्थितियों का निर्माण भी संभव है।

  सोच क्या है और इसका प्रभाव कैसे पड़ता है? हमारे शरीर को कई प्रकार से विभाजित और वर्गीकृत किया गया है। इसे कई भागों, कई परतों अथवा कोशों में विभाजित किया गया है लेकिन यहाँ हम मोटे तौर पर शरीर को तीन भागों में विश्लेषित करेंगे। एक है हमारा स्थूल शरीर अथवा भौतिक शरीर (फिजिकल बॉडी), दूसरा है कारण शरीर अथवा मानसिक शरीर अर्थात् ‘मन’ (मेंटल बॉडी अर्थात् माइंड) और तीसरा है सूक्ष्म शरीर अथवा आध्यात्मिक शरीर या ‘चेतना’ (स्पिरिच्युअल बॉडी अथवा कांशियसनेस या सोल)। कारण शरीर अथवा हमारा मन हमारे हाड़-मांस द्वारा निर्मित भौतिक शरीर और हमारी चेतना के मध्य सेतु का काम करता है, हमारे स्थूल शरीर को हमारी चेतना से जोड़ता है और हमारी चेतना ही तमाम संभावनाओं का विपुल क्षेत्र है।

     मन की शक्ति द्वारा जब हम इस अपरिमित ऊर्जा के स्रोत से जुड़ जाते हैं तो जीवन में कुछ भी कर गुज़रना या पा लेना असंभव नहीं रहता। मन में इच्छा उत्पन्न होने की देर है पूरा होने में नहीं। भौतिक शरीर में वांछित सकारात्मक परिवर्तन के साथ-साथ संपूर्ण भौतिक जगत में किसी भी वस्तु की प्राप्ति सुलभ है मन की शक्ति के द्वारा। मन की शक्ति अथवा मन की एकाग्रता के द्वारा अर्थात् मन को केवल एक स्थान, एक स्थिति या एक बिंदु पर केंद्रित करके भौतिक जगत की हर वस्तु की प्राप्ति संभव है। लेकिन मन तो बड़ा चंचल है इसमें परस्पर विरोधी विचारों का ताना-बाना चलता ही रहता है फिर इसे एक विचार पर  कैसे केंद्रित करें और वो भी उपयोगी विचार पर?

     मन में उठने वाले विचारों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं। सकारात्मक विचार तथा नकारात्मक विचार। हमारे दोनों प्रकार के विचारों का कारण है हमारा परिवेश, हमारे संस्कार तथा हमारी शिक्षा-दीक्षा। इन्हीं तत्त्वों से हमारे विचारों की उत्पत्ति प्रभावित होती है। समय के अनुसार भी इनमें परिवर्तन होता रहता है। क्योंकि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है अतः वह अपने विवेक द्वारा अच्छे या बुरे विचारों में अर्थात् सकारात्मक या नकारात्मक विचारों में अतंर करके अपने लिए सकारात्मक विचारों का चुनाव कर सकता है। विचारों का चुनाव ही सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। विचार ही हमारी नियति के निर्धारक तत्त्व होते हैं। सही सकारात्मक विचार के चुनाव के उपरांत उस विचार को एक सपने के रूप में लें। किसी विचार या घटना का चुनाव करने के उपरांत दिन-रात, सोते-जागते, उठते-बैठते उसी का सपना देखें। उस विचार को बीज की तरह बो दें। मन में उसे दृढ़तर करते जाएँ।

     आप , जो भी हृदय से चाहते हैं, आपका जीवन के प्रति , जो दृष्टिकोण है यदि आज उसको एक सपने के रूप में ले सकते हैं, उसका बार-बार ख़्वाब देखने की ताक़त पैदा कर सकते हैं तो आप उसे निश्चित रूप से प्राप्त भी कर सकते हैं। प्रायः कहा जाता है कि व्यक्ति का मनचाहा नहीं होता लेकिन वास्तविकता यही है कि व्यक्ति का मनचाहा ही होता है और केवल मनचाहा ही होता है। क्या मटर के बीज बोने से चने के पौधे उग सकते हैं? नहीं, बिलकुल नहीं। यदि मटर के बीज बोने पर चने के पौधे उग आते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हमें या तो बीजों की पहचान नहीं है या फिर हमने कौन से बीज बोए थे, यह भूल गए हैं। हमें सोच-समझकर सही बीज बोने चाहिए और कौन से बीज बोए थे यह भी याद रखना चाहिए।

     ऐसा ही हमें अपने विचारों के साथ करना चाहिए। हमें न केवल सोच-समझकर उपयोगी विचारों का चयन करना चाहिए अपितु उन्हें याद भी रखना चाहिए। उन्हें बार-बार दोहराते रहना चाहिए। हमारा मनचाहा कभी नहीं होता, यह हमें इसलिए लगता है कि हमारा अपने विचारों पर नियंत्रण नहीं होता। हम , जो चाहते हैं, प्रायः उसका विरोधी विचार हमारे मन पर उससे भी अधिक तीव्रता से प्रभावी हो जाता है और , जो अधिक प्रभावशाली विचार होता है, वही हमारे जीवन की वास्तविकता बन जाता है। यदि हमारा अपने मन पर नियंत्रण हो, तो हम ऐसे विचारों की पहचान कर उनसे बच सकते हैं। इसलिए हमें हर समय अपने विचारों पर नजर रखनी चाहिए और अनपेक्षित विचारों को मन से निकाल देना चाहिए। इसका भी एक तरीक़ा है और वो है जब भी कोई अनचाहा विचार प्रभावी होने लगे फ़ौरन उसका विरोधी विचार, जो स्वयं के लिए उपयोगी हो मन में ले आएँ।

     वास्तव में हम ऐसा कोई स्वप्न देख ही नहीं सकते जिसको पूरा करने की सामर्थ्य या क्षमता हममें न हो। हमारे अंदर किसी विचार, किसी स्वप्न के बीज हैं तो उनको कार्यरूप में परिणत करने की योग्यता भी हममें है। इसके लिए समस्त ब्रह्माण्डीय शक्तियाँ हमारा सहयोग करती हैं ताकि हमारे सपने अथवा विचार वास्तविकता में परिवर्तित हो सकें। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि-

 जेहि का जेहि पर सत्य सनेहू, 

सो तेहि मिलहिं न कछु संदेहू। 

जिसे हम मन से प्यार करते हैं उसे अवश्य पा लेते हैं। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि जिसे या जिस वस्तु को पाना हो उसे मन से प्यार कीजिए। सच्चा प्यार, अच्छे मित्र, धन-दौलत अथवा मान-प्रतिष्ठा सच्चे मन से चाहने पर कुछ भी असंभव नहीं।

   हमारी वर्तमान स्थिति वास्तव में हमारे पिछले चिंतन अथवा हमारी पिछली सोच का परिणाम मात्र है। जिसे हम कर्म का सिद्धांत कहते हैं वह भी यही है। हम , जो कर्म करते हैं अथवा हमने , जो कर्म किए हैं, वे हमारी सोच द्वारा ही निर्धारित होते हैं। अतः सोच द्वारा कर्म तथा कर्म द्वारा अपने जीवन को अपेक्षित आकार देना हमारे अपने हाथों में ही है। और यह संभव है सकारात्मक सोच द्वारा और सकारात्मक सोच संभव है मन पर नियंत्रण द्वारा। सरल सूत्र है: मन को मनाइए सफलता पाइए, मन को मनाइए प्रभावशाली व्यक्तित्व पाइए अथवा मन को मनाइए अच्छा स्वास्थ्य पाइए। मन की शक्ति द्वारा हम क्या-क्या पा सकते हैं इस सूची की कोई सीमा नहीं है।

   इस प्रकार मन पर नियंत्रण और विचारों के सुसंस्कार द्वारा मनोवृत्तियों का रूपातंरण कर हम जीवन के हर क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करने में सक्षम हैं। मित्रो! तख़्तो-ताज की प्राप्ति अर्थात् जीवन में सुख-समृद्धि, प्रतिष्ठा, प्रभावशाली व्यक्तित्व, अच्छा स्वास्थ्य या आरोग्य तथा मनोनुकूल परिस्थितियाँ चाहते हो तो आज ही मन को अपने नियंत्रण में करने का प्रयास कीजिए और उसे विवश कर दीजिए कि वो आपकी बात सुने। उससे अपनी बात कहते रहिए, कहते रहिए। वो कब तक आपकी बात नहीं मानेगा? और एक बार उसने आपकी बात मान ली तो परिस्थितियाँ अपने आप अनुकूल होती चली जाएँगी। बस एक ही बात का ध्यान रखना ज़रूरी है और वह यह  है कि हर बात अथवा हर विचार सकारात्मक, सार्थक व उपयोगी हो। ■

सम्पर्कः ए.डी. 106 सी., पीतमपुरा, दिल्ली – 110034, मोबा. नं. 9555622323, Email : srgupta54@yahoo.co.in


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