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Apr 1, 2024

किताबें - उदासी की चुप्पी को झकझोरती संवेदना की गूँज

  - अरुणेन्द्र नाथ वर्मा

तुम क्यों उदास हो (कहानी संग्रह- कुलबीर  बड़ेसरों) हिन्दी में अनुवाद : सुभाष नीरव, संस्करण: 2023, पृष्ठ संख्या 128,  मूल्य 200/-, प्रकाशक : नीरज बुक सेंटर,  सी-22, आर्यनगर, सोसायटी , प्लॉट -91, दिल्ली-110092

कुलबीर बड़ेसरों मूलतः पंजाबी साहित्य व अभिनय कला से जुड़ी हुई हैं। ‘तुम क्यों उदास हो’ पंजाबी भाषा में लिखे गए उनके कहानी संग्रह का हिन्दी- अनुवाद है। अनुवादक हैं सुपरिचित कथाकार एवं कवि सुभाष नीरव।

‘तुम क्यों उदास हो’ संग्रह की कहानियाँ तीन अलग-अलग पृष्ठभूमियों के कथानकों पर आधारित हैं। तीनों कुलबीर के भोगे हुए यथार्थ को प्रतिध्वनित करती हैं। कुलबीर  का निजी जीवन एक विशाल फलक पर उकेरे गए चित्रों से मिलकर बना है, जिनके सारे रंग इन्द्रधनुषी नहीं हैं। कई चित्र भूरे और धूमिल रंगों में भी हैं; लेकिन उनका अपना विशिष्ट सौन्दर्य है। बचपन बिताया उन्होंने धरती की सोंधी महक से गमकते पंजाब में अपने काव्यरसिक पिता की कविताओं का आस्वादन करते हुए। कविता के अंकुर उनके संवेदनशील मन में स्वतः फूट पड़े थे लेकिन कविता का भावनात्मक पक्ष उन्हें बहुत अधिक बाँधकर नहीं रख पाया। यथार्थ की कड़ी भूमि पर चलते जाना उन्हें स्वप्निल उड़ानें भरने से अधिक प्रिय लगा, तभी शब्दों से खेलने की जगह वह पंजाब के रेडियो और दूरदर्शन के नाटकों से गुज़रती हुई मुंबई की फ़िल्मी दुनिया तक का सफ़र पूरा करने के लिए चल पड़ीं। बहुत सारी फिल्मों में अभिनय किया उन्होंने; लेकिन हिन्दी और पंजाबी फिल्मों की रूमानी दुनिया के पीछे छुपे हुए संघर्षों, आँसुओं, ध्वस्त अभिलाषाओं और निष्ठुर चूहादौड़ ने उनके संवेदनशील हृदय को बार-बार झिंझोड़ा। जगमगाते रजतपट की आड़ में जूनियर कलाकारों के आत्मसम्मान और आकांक्षाओं को निष्ठुरता से ठोकर मारती निष्ठुर फ़िल्मी दुनिया का असली चेहरा उनकी कई कहानियों में जीवंत हुआ है।

 इनका एक अन्य संसार भी है, जो पंजाब में जिला होशियारपुर के गाँव बड़ेसरों को कुलदीप के नाम के साथ जोड़कर बहुतों के संज्ञान में आया है। इस पंजाब की सीमाएँ बड़ी भरजाई जी के लन्दन के व्हाईटहाल और मासी जी के कैनेडा तक फैली हुई हैं। कुलदीप की कहानियों का दूसरा आयाम है यह विशाल पंजाब , जो कभी अथक श्रम से कमाए यूरो की थैली हाथों में थामकर घमंड से देखता है, पीछे छूटे अपनों को तो कभी घुट्टी में पिलाई हुई आत्मीयता के चलते स्वजनों की पीड़ा महसूस करके मजबूर हो जाता है। ऐसे बहुरंगी रचना संसार ने कुलबीर  की कहानियों को सहज पठनीय बना दिया है। विषय वैविध्य से इस संग्रह की कहानियों बहुत जीवंत बन गई हैं।

कुलबीर  का तीसरा संसार है, एक नारी का। लेखक हो, अभिनेता हो या दुनिया घूमता हुआ एक सैलानी, इन सारे मुखौटों के पीछे एक संवेदनशील नारी का चेहरा है। कुलबीर  के इन तीनों संसारों का जायजा लेने पर सबसे अधिक मर्मस्पर्शी लगती हैं फ़िल्मी दुनिया वाली कहानियाँ। वे उस बेमुरव्वत संसार की कहानियाँ हैं , जो फर्श से अर्श तक पहुँचने के सपने देखती लाखों आँखों में आँसू भर देने से झिझकता नहीं। जगमगाते सितारे बन पाने की जगह जुगनुओं की तरह टिमटिमा कर रह गए अभागों के आक्रोश को एक झन्नाटेदार थप्पड़ में समेट लेने वाली कहानी ‘आक्रोश’ हो या ‘मजबूरी’ में हर तरह की हेठी सहने वाली जूनियर कलाकार नीति की मन मसोसती दास्तान, दोनों कड़वे यथार्थ को खूबसूरती से दिखाती हैं। खूबसूरती और कड़वापन परस्पर विरोधी तत्त्व लग सकते हैं; लेकिन सोने और सुहागे को अलग अलग करके देखना समझदारों का काम नहीं।

फ़िल्म-जगत से जुड़ी इस लेखिका की कहानियों में आज के पंजाब की माटी की सुगंध भी है; लेकिन इस पंजाब की सीमाएँ ‘कैनेडा’ से लेकर होशियारपुर के ‘पिंड’ बडेसरों तक फैली हुई हैं। सात समन्दरों के बीच की दूरी कुलबीर की किस्सागोई में सिमटकर नामालूम-सी हो जाती है। नारी-विमर्श का झंडा फहराते हुए विद्रोह के स्वर गुँजाना कुलबीर की शैली नहीं। कुछ कहने को आतुर; लेकिन कुछ भी न कह पाने की विवशता में जकड़ी हुई नारी पात्र के मन में गहरी डुबकी लगाने वाला ही किसी कहानी का अंत इन शब्दों में कर सकता है- “पहली बार मेरे एक्सीडेंट की बात सुनते हुए किसी ने कहा है ‘फिर’, नहीं तो –‘उसके होंठ काँपे और आँखें भर आईं। बेड पर लेटे हुए उसको लगा सामने बैठी हुई औरत और कोई नहीं, वह खुद ही थी.’ न कह पाना बहुत कुछ कह पाने से अधिक प्रभावशाली कैसे हो सकता है इसे ‘फिर’ कहानी को पढ़कर ही महसूस किया जा सकता है। असल में, इस संग्रह की लगभग सभी कहानियाँ समझी जाने वाली नहीं अपितु महसूस की जाने वाली हैं। नारी मन की परतों को भेदकर उसकी उच्छवास संवेदना की सतह पर लाना ही कुलबीर  का नारी-विमर्श है। मद्धिम आग में पकाई हुई संवेदना की ऊष्मा नारी-विमर्श के कई गरजने-बरसने वाले झंडाबरदारों की गरज-बरस पर भारी पड़ सकती है, इसका एहसास कुलबीर की कई कहानियों से होता है।

पुरुष पात्रों की तरह इन कहानियों के नारी पात्र भी तरह तरह के साँचों में ढले हुए हैं। एक तरफ है ‘बहू-सास’ की उदास तरुणी बलबीर और दूसरी तरफ है ‘दो औरतें’ की हरलीन। दोनों की मानसिकता बहुत फर्क है, समानता है,तो बस यह कि दोनों को एक सशक्त कलम ने अपनी नायिका चुना है। इस संग्रह की सारी कहानियाँ पठनीय हैं। पाठक के मन को छू लेने का सिलसिला पहली कहानी ‘तुम क्यों उदास हो’ से लेकर लगभग अंत में आई ‘बकबक’ तक बना हुआ है।

पंजाबी की इन कहानियों को हिन्दी भाषी पाठकों तक लाने में अनुवादक सुभाष नीरव ने उनकी मौलिक सुन्दरता खूब बनाए रखी है। पंजाबी हो या हिन्दी, टकसाली शब्दों का इस्तेमाल सुन्दर शैली को सहज पठनीयता की चुन्नी ओढ़ाकर और खूबसूरत बना देता है। सुभाष इस सच्चाई से परिचित हैं।

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सम्पर्कः D -295, सेक्टर 47, नोएडा, ई मेल:  arungraphicsverma@gmail.com, मो. 9811631141  


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