आक्सीजन पार्लर की शुरूआत - डॉ. अर्पिता अग्रवाल
जब आसमान पर पानी बरसाने वाले बादलों की छटा
घिरती है तब धरती रंग-बिरंगी होती है। हरियाली छा जाती है और फूल खिलते हें। बीज अंकुरित
होते हैं और पेड़ बनते हैं , जिनसे हमें अगले चक्र के लिए फिर
से बीज मिलते हैं। पृथ्वी पर हर चीका एक
दूसरे से जुड़ी है और सभी चीज़ों का चक्र इस पृथ्वी पर चलता रहता है। बड़े वृक्ष
अपनी जड़ों में आसमान के पानी को रोक कर पूरे वर्ष हरे- भरे रहते हैं। वृक्ष
भूमिगत जल की मात्रा को भी स्थिर करते हैं। ये उपजाऊ मिट्टी को बह जाने से रोकते
हैं। वृक्ष हमें भोजन देते हैं, छाया देते
हैं और पर्यावरण को गर्म होने से बचाते हैं साथ ही वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण
को रोकते हैं। वृक्ष वर्षा लाने में सहायक होते हैं। वृक्षों द्वारा वाष्पीकरण के कारिए
पानी आसमान में पहुँचता रहता हैं और बादलों से बारिश के रूप में पुन: पृथ्वी पर आ
जाता है, इस तरह बादलों से बरसा पानी
हरियाली लाता है और हरे वृक्ष पानी को बादलों में पहुँचाते हैं और पानी का चक्र
चलता रहता है।
आज अतीत को याद करना प्रासंगिक इसलिए है; क्योंकि
प्रदूषण की मार से मनुष्य का अंग -प्रत्यंग कराह रहा हैं। प्रकृति
जिन पाँच तत्त्वों की
बनी है उन्हीं से मानव का निर्माण हुआ है।
प्रकृति इन पाँच तत्त्वों
की निरंतर आपूर्ति करती है। पृथ्वी की
हरियाली, आकाश का नीलापन, हवा का
जादुई स्पर्श, सूर्य की सतरंगी किरणों का एहसास व
पानी की बूँदों की ठंडक सब कुछ मुफ्त में ही उपलब्ध है; लेकिन सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत
मानव ने अपने सुखोपभोग की आशा में प्रकृति की स्वास्थ्य प्रदायिनी शक्ति से अपने
को वंचित कर रखा है। हवा, मिट्टी, पानी
जहाँ दूषित हो गए हैं वहीं सूर्य का प्रकाश और खुला आकाश भी मिलना मुश्किल हो रहा
है। बंद एयरकंडीशनर कमरे से बंद एयरकंडीशनर वाहनों और बंद एयरकंडीशनर ऑफिस के
बीच ज़िंदगी
भागती दौड़ती रहती है। रही सही कसर जंक फूड, फास्टफूड
ने पूरी कर दी है। एयरकंडीशनरों से निकली गर्मी, घटती
हरियाली, निरंतर बढ़ते वाहनों द्वारा निकले
धुएँ तथा ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं के निर्माण- कार्यों ने हवा की गुणवत्ता इतनी
खराब कर दी है कि छोटे -छोटे बच्चों के फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आ रही है।
प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल व इस्तेमाल के बाद उसे कूड़े में जलाने से हवा ज़हरीली हो रही
है। अब अतीत ही लौटेगा लेकिन एक नये रूप में। हमारे
बुजुर्ग पेड़ों की छाँव में बैठकर हाथ के पंखों से हवा करते थे और नीम के घने
वृक्ष थोड़ी-थोड़ी दूर पर पाए जाते थे। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी से त्रस्त होकर
मनुष्य शीघ्र ही गंगा व अन्य पावन नदियों के किनारे बने ऑक्सीजन
पार्लरों में पेड़ों के नीचे, प्रकृति के
सान्निध्य में आराम से बैठकर हाथ के पंखों से हवा करेगा।
आजकल एक नयी चीज़ चल रही है, सडक़ों का चौड़ीकरण। कहाँ तक चौड़ी करेंगे सडक़ें, वाहन बढ़ते ही जा रहे हैं जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है, नई बनी चौड़ी सडक़ पुन: कुछ सालों बाद जाम से जूझने लगती है। चौड़ीकरण की आवश्यकता हाइवे पर है लेकिन शहरों के अंदर जहाँ जरूरत नहीं है वहाँ भी करोड़ों रूपये खर्च कर चौड़े-चौड़े डिवाइडर बनाए जा रहे हैं और उन पर पौधों के छोटे-बड़े गमले रखे जा रहे हैं, यह सब सौंदर्यीकरण के लिए हो रहा है। इसका एक बदसूरत पहलू यह है कि सडक़ों के दोनों ओर के कई सौ वृक्ष काट दिए जाते हैं। लोग यह देखकर दु:खी तो होते हैं ; लेकिन काम से फुर्सत मिले, तभी तो इन अधिकारियों से पूछेंगें कि किन बुद्धिमानों ने ये योजनाएँ बनाई हैं।
इन योजनाओं का विरोध होना ही चाहिए या फिर इतना
तो कहना ही चाहिए कि आप सौंदर्यीकरण करें, चौड़ीकरण
करें ; लेकिन
पेड़ नहीं कटेंगें। कम से कम शहर के भीतर तो नहीं। दिन प्रतिदिन पेड़ों की संख्या
कम होती जा रही है। गर्मी व प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, एयर
कंडीशनरों की संख्या बढ़ती जा रही है,
जिनसे निकली गर्मी वातावरण को और अधिक गर्म कर रही है। सुबह से रात तक एयर कंडीशनर
में रहने से स्वास्थ्य का नुकसान द्रुतगति से हो रहा है। हम प्राकृतिक एयर कंडीशनर
तो नष्ट कर रहे हैं और कृत्रिम एयर कंडीशनर लगवा रहे हैं। वृक्ष न सिर्फ़ प्राकृतिक एयर कंडीशनर है बल्कि ये
तो पृथ्वी के फेफड़े हैं। जब ये नष्ट होंगे तो मनुष्य के फेफड़े कैसे ठीक रह सकते
हैं। फिर तो ऑक्सीजन
पार्लरों में जाने की शुरूआत समझो होने ही वाली है। सारी तेज़ी भूलकर पेड़ों के
नीचे खाट पर लेटने की तैयारी.......।
सम्पर्क: 120-बी/2, साकेत, मेरठ-
250003, यू.पी.
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