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Feb 19, 2017

आनंद -वर्षा को चित्रित करते हाइगा

आनंद-वर्षा को चित्रित करते हाइगा
-डा.सुरेन्द्र वर्मा

हाइगा आनंदिका (हाइगा- संग्रह ) -डॉ.सुधा गुप्ता
निरुपमा प्रकाशन, मेरठ/2016/ मूल्य रु. 240 /- पृष्ठ, 88

हाइगा एक चित्रित और सुलेखित हाइकु है। आदर्श स्थिति यह है कि स्वयं हाइकुकार ही अपनी रचना को चित्रित और सुलेखित करे। एक चित्रमय हाइकु रचे; लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता है। कभी हाइकुकार चित्रकार नहीं होता और कभी चित्रकार हाइकुकार नहीं होता; इसलिए हाइगा को प्राय: अपनी आदर्श स्थिति के
साथ समझौता करना पड़ता है। हाइकु के अनुरूप कोई चित्र ढूँढा जाता है और उसपर हाइकु चस्पाँ कर दिया जाता है। या, किसी कवि के हाइकु को देखकर कोई चित्रकार उस पर एक चित्र बनाने के लिए प्रेरित हो जाता है और हाइकु को हाइगा में तब्दील कर देता है। हिन्दी में अभी तक कम से कम मेरे देखने में कोई भी हाइगा संग्रह नहीं आया जिसे रचनाकार ने स्वयं ही चित्रित और सुलेखित किया हो।
नहीं, हम जल्दबाजी में ऐसा न कहें। डॉ. सुधा गुप्ता के अक्षर बहुत ही सुन्दर और सुडौल होते हैं । उनके एकाधिक हाइकु संग्रह उनकी खुद की हस्तलिपि में प्रकाशित हुए हैं। सभी खुश-ख़त हैं । और एक हाइकु-
संग्रह 'खुशबू का सफ़र 'न सिर्फ उनकी हस्तलिपि में है; बल्कि इसमें हर हाइकु के साथ रचना को दर्शाताएक चित्र भी है। यह 1986 में प्रकाशित हुआ था।  वे तो बस अपने हाइकुओं को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्हें चित्रित भर कर रहीं थीं ।
हाइगा से मेरा परिचय 2007 में हुआ था। अमेरिका से अंग्रेजी में एक, वर्ष में केवल दो बार moonset, the newspaper निकलता है । इसी पत्रिका के 2007 के अंक में मैंने सबसे पहले हाइगा के बारे में जाना । इसमें कुछेक हाइकु, हाइगा के रूप में, प्रकाशित किए गए जिनपर चित्र मूनसेट के कला सम्पादक ने बनाए थे ।
डा. सुधा गुप्ता की हाइगा आनंदिका में आनंद प्रदान करने वाले हाइकु तो हैं ही, इन्हें प्रकाशक और चित्रकार निरुपमा जी ने बड़े प्रेम से चित्रित भी किया है। जो आँखों और मन को भाए वही चित्र अच्छा है।  चित्रकारी के बारे में मेरा बस इतना ही ज्ञान है। इस कसौटी पर  हाइगा आनंदिका   खरी ही उतरती है -ऐसा मैं दावे के साथ कहा सकता हूँ।
ऐसा प्रतीत होता है कि डॉ. गुप्ता की इस आनंदिका में चित्रकार ने मुख्यत: उन्हीं हाइकु रचनाओं को सम्मिलित किया है ,जो प्रकृति विषयक हैं। इसमें कुछ हाइकु काफी पुराने भी हैं। पुराने या नए कोई भी हों डॉ. सुधा गुप्ता के हाइकु, खासतौर पर प्रकृति रूपों को रची गई हाइकु कविताएँ लाजवाब होती हैं। एक उनका बड़ा पुराना लेकिन चिरनवीन हाइकु है-
चिडिय़ा रानी/चार कनी बाजरा/दो घूँट पानी
इसे भी आनंदिका में सम्मिलित कर लिया गया है। लेकिन ऐसे पुराने हाइकु बार बार पढ़ऩे का जी चाहता है। आनंद देते हैं।
अनार झाड़ी/नन्हें फलों से भरी/लाज से झुकी
युवा वैष्णवी/जोगिया भेष धारे/वन में खड़ी
नीले घाघरे/घटाओं की छोरियाँ/इतरा रहीं
गुलमोहर/खिला, खुला है छाता/वन कन्या का
कछौटा कसे/शीशम सी युवती/धान रोपती 
झरोखे बैठी/फुलकारी काढ़ती/प्रकृति -वधू
इससे अच्छा प्रकृति का नारी-सुलभ वर्णन और क्या हो सकता है ? पढ़ते ही कभी प्रकृति का नारी के बहाने और कभी नारी का प्रकृति के बहाने जीवंत चित्र खिंच जाता है। सुधा जी ने शायद ही प्रकृति का कोई ऐसा पहलू हो जिसे अपने काव्य में छुआ न हो! फूलों और फलों से तो उनका प्यार देखते ही बनता है।
चैती फूल, ट्यूलिप, अनार की कलियाँ, शिरीष की शाखें, लाल करौंदे, कचनार, गुलमोहर, हरित दूर्वा, गेंदे का ठाठ, खूबानी, नारंगी, गेहूँ के धान, आलूचा, निम्बुआ, कनेर, आदि। संक्षेप में सुधा जी की-
आमोद प्रिया/धरा खिलखिलाई/फूलों की हँसी
कनेर खिले/होंगे शिव अर्पित/इस आशा में
फूले निबुआ/फैल गई खुशबू/दूर दराज़
गेंदा के ठाठ/स्वर्ण जागीर बख्शी/ऋतु रानी ने 
हरित दूर्वा/चट्टानों पर बिछी/स्पर्श कोमल
गुलमोहर/धूप छतरी खुली/आग रंग की
ये काँचनार/फूलों से ऐसे लदे/पत्ते गायब 
तुलसी चौरा/घर के आँगन/सजे महके
फूल तो फूल, पक्षी और तितलियाँ भी सुधा जी की निगाह से उड़कर भाग नहीं सकतीं। उन्होंने अपने काव्य में इन्हें भी बखूबी पिरो दिया है। डा. सुधा गुप्ता के यहाँ फूलों का रसपान करने इन्द्रधनुषी पंखों से सजी फूल से फूल तक उड़ती रहती है तितली। (पृष्ठ 28) । सुबह सुबह चिडिय़ाँ बच्चों की तरह शोर मचाती हुई अपने  बस्ते’  खोलती हैं  (30)। मैंना और गिलहरियाँ पेड़ों की शाखाओं पर अपनी उमंग में उछलते कूदते हैं (32-33)।  बाड़ कितनी ही काँटेदार क्यों न हो युवा बकरियाँ उसे बड़े  चाव से’  खा जाती हैं (34)। नदी किनारे बगुला एक पाँव पर  मन मारे’   खडा रहता है (38)। टोंटी में दो बूँद पानी पाकर गौरैया खुश हो जाती है(41)। गोरी गोरी बत्तखें अपनी अलमस्तीमें तालाब में तैरती रहती हैं। किंगफिशर खूब ठण्डे, 'हिम-शीतलपानी में भी अपनी चोंच डुबाने से बाज़ नहीं आता। और तो और, शौकीन भालू को भी सुधा जी चटकारे लेकर बेरियाँ खाते हुए पकड़ ही लेती हैं (56)। गाँव में रहने वाली कोई लड़की जब शहर आती है तो वह एक डरी सहमी हिरनी ही तो कही जाएगी (65)।
डॉ. सुधा गुप्ता, धरती जो सारी प्रकृति का अधिष्ठान है, का गुणगान करने में कोई कोताही नहीं बरततीं -
जीवन देती/बाटती खुशहाली/माँ वसुंधरा
आमोद प्रिया/धरा खिलखिलाती/फूलों की हंसी
पवित्र गन्धा/अक्षत यौवना है/क्वारी (ये) धरा
लौटाती श्रम/रसवंती वसुधा/ब्याजसमेत और बदले में
फागुन आया/धरती का सोहाग/लौटा के लाया
वर्षा हँसती/ओढा हरी चूनरी/वसुंधरा को
चारों ओर/प्रकृति की चूनर/फैली पडी है
धरती पर भी और सुधाजी के काव्य पर भी प्रकृति का ही बोलबाला है। यहाँ नदियाँ है और ठहरे हुए पहाड़ हैं -
जल धाराएँ/करती अभिषेक/वासुदेव का
गाती चट्टाने/सरस जल गीत/निश्छल प्रीत   
रस की झारी/है नाना रूप धारी/मायावी जल
प्रकृति की यह काव्यमय छटा सुधा जी की हाइकु रचनाओं में यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरी पड़ी है। आनंदिका है यह छटा!
सम्पर्क: डा. सुरेन्द्र वर्मा ,10, एच आईजी / 1. सर्कुलर रोड , इलाहाबाद -211001

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