अनंत काल से ही मानव जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है । उसकी इन्हीं लालसाओं ने उसे कुछ समय के लिए घर से बाहर निकलकर प्रकृति को देखने , समझने और महसूस करने के लिए प्रेरित किया । पूर्व काल में जरूरतें उन्हें बाहर दूर- दराज के इलाकों में जाने को बाध्य करती थीं। कभी व्यापार करने के लिए तो कभी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घर से दूर जाना पड़ता था ।
लेकिन आज समय बदल गया है । पर्यटन एक शौक बनकर उभरा है । हालाँकि ये शौक भी आपमें नई ऊर्जा का संचार कर सकने में सक्षम है । ज्ञानार्जन के लिए भी उत्तम है । नए स्थान पर जाकर नए लोगों से मिलना, उनकी संस्कृति की झलक पाना .....भाषा, खान- पान, परिधान, व्यवहार इन सभी का भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित हो जाना लाज़मी है ।
अपनी- अपनी रुचि के अनुसार कोई आस्था के केंद्रों के लिए धार्मिक यात्रा को महत्त्व देते हैं, तो कुछ प्रकृति के सौंदर्य की झलक पाने निकल पड़ते हैं । समुद्र, नदियाँ, पहाड़, वनक्षेत्र सभी आकर्षण का केंद्र हैं ।
वर्तमान युग में जबकि आप घर बैठे- बैठे ही इंटरनेट के माध्यम से प्रत्येक स्थल की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तब कहीं भी आना जाना ज्यादा सुलभ हो गया है ।
पर्यटन आपकी सामाजिक चेतना को भी उन्नत करता है । नए स्थल पर नए लोगों से मिलकर बहुत कुछ सीखने का भी अवसर मिलता है । यह उन स्थलों के लोगों के लिए भी वाणिज्यिक विकास का माध्यम बनता है ।
आदि काल से ही लोग घुमक्कड़ रहे हैं । इसी कारण महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने तो पूरा ‘घुम्मकड़ शास्त्र’ ही लिख डाला था जब उन्होंने अनेकों देशों की यात्रा की और अपने अनुभव उसमें साझा किए ।
पूर्व में घुमक्कड़ व्यक्ति के द्वारा ही एक सभ्यता का दूसरी सभ्यता से परिचय हुआ ।
पर्यटन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य इस भागदौड़ भरी जिंदगी में से कुछ सुकून के पल तलाशना और मनोरंजन करना भी है । जो कि आजकल की परिस्थितियों को देखकर आवश्यक प्रतीत होता है । जीवन की इस आपाधापी में कुछ पल अपने लिए निकाल पाना सबसे मुश्किल कार्य हो गया है, जो कि घर से कहीं दूर प्रकृति के बीच रहकर ही पाए जा सकते हैं ।
पंचभूत से बना यह शरीर, प्रकृति के बीच जाकर उसके साथ तारतम्य बिठाकर जिस मानसिक शांति का अनुभव करता है, वह अनमोल है ।
आपने अक्सर अनुभव किया होगा जब भी आप किसी पर्यटन स्थल से घूमकर कुछ दिनों पश्चात अपने घर लौटते हैं, तब आप एक अलग ही आनंद का अनुभव करते हैं ।
ये कहीं ना कहीं आपके पंच तत्त्वों को भी संतुलित करता है । आपके आकाश तत्त्व को उभारकर आपको अधिक कल्पनाशील बनाता है । आपमें नव विचारों का सृजन करता है। जोश भरता है, साथ ही साथ स्थिरता भी देता है । जल का गुण है- ग्राह्यता....जब वह किसी में प्रकाशित होता है तब वह आसानी से दूसरे लोगों के साथ तालमेल बिठा पाने के योग्य बन जाता है । इस प्रकार समझ को विकसित कर जीवन के नए आयाम खोलता है ।जीवन की नीरसता को पुनः एक सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान करता है ।
तो ज़रूरी है समय- समय पर जीवन की एकरसता को भंग कर, अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए , अपने परिवार के साथ मूल्यवान समय व्यतीत करने के लिए किसी पसंदीदा स्थल पर भ्रमण के लिए निकलें और वहाँ से प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा से अपने भावी जीवन की मजबूत और सुंदर नींव रखें ।
"सैर करने को निकले घर से हम,
तन्हाइयाँ लेकर ;
मगर लौटे तो ढेरों खुशनुमा यादें,
सँजो लाए ।"
सम्पर्कः अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ,8604634044
4 comments:
बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई
आपका हृदय तल से आभार
बहुत बढ़िया । सुदर्शन रत्नाकर
जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका आदरणीय
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