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Jul 7, 2024

आलेखः राम कथा - अनन्ता

  -  यशवंत कोठारी

राम के चरित्र ने हजारों वर्षों से लेखकों, कवियों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों को आकर्षित किया है, शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जिसमें राम के चरित्र या रामायण की चर्चा न होती हो। राम कथा स्वयं में सम्पूर्ण काव्य है, संपूर्ण कथा है और संपूर्ण नाटक हैं। इस संपूर्णता के कारण ही राम कथा को हरिकथा की तरह ही अनन्ता माना गया है। फादर कामिल बुल्के ने सुदूर देश से आकर राम कथा का गंभीर अध्ययन, अनुशीलन किया और परिणामस्वरूप राम कथा जैसा वृहद ग्रन्थ आकारित हुआ। रामकथा के संपूर्ण परिप्रेक्ष्य को यदि देखा जाए तो ऐसा ग्रन्थ अन्य किसी भाषा में उपलब्ध नहीं हुआ है।

वैदिक साहित्य में रामकथा के पात्रों का वर्णन मिलता है। शायद राम कथा का प्रवचन उन दिनों थोड़ा बहुत रहा होगा। दशरथ, राम आदि के नामों का उल्लेख भी पाया गया है। सीता को कृषि की देवी के रूप में निरूपित किया गया है तथा एक अन्य सीता को सूर्य की पुत्री के रूप में दर्शाया गया है। सीता शब्द भी अनेक बार आया है। वैदिक साहित्य में रामायण से संबंधित पात्रों के नाम अलग-अलग ढंग से विविध रूपों में आते है, मगर ये आपस में संबंधित नहीं है। राम कथा की कथा वस्तु भी कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती है। वाल्मीकि कृत रामायण को सर्व प्रथम तथा प्रामाणिक ग्रन्थ माना जा सकता है। महाभारत में भी राम कथा का वर्णन है। अरण्य पर्व, द्रोणपर्व आदि में रामथा का वर्णन है। बौद्ध साहित्य में भी रामकथा का विस्तृत वर्णन है। वास्तव में दशरथ जातक नामक ग्रन्थ को रामकथा का आधार ग्रन्थ माना जाता है। हजारों विद्वानों ने रामकथा को मूल रूप में व्याख्यायित किया गया है।

आदि कवि वाल्मीकि के जन्म से काफी पहले ही राम कथा का आख्यान प्रचलन में आ चुका था। वाल्मीकि ने इस कथा को आधार बनाकर रामकथा रामायण के रूप में पहली बार विस्तार से तथा समसामयिकता के आधार पर प्रस्तुत किया। रामकथा में मूल स्रोत के लिए, पाश्चत्य विद्वान ए वैबर ने दशरथ जातक को आधार माना है। दूसरा आधार होमर का माना गया है, मगर होमर की मूल कथा रामायण की कथा से काफी अलग है, अतः राम कथा का मूलाधार दो तीन स्वतंत्र आख्यान ही है, जिन्हें बाद में वाल्मीकि ने कथा सूत्र में पिरोकर रामायण के रूप में प्रस्तुत किया।

डॉ. याकोबी ने राम कथा का आधार दो भागों में विभाजित किया है, जिन्हें ऐतिहासिक माना गया है, जबकि दूसरे भाग में जो कथा है, उसका मूल स्रोत वैदिक साहित्य में वर्णित देवताओं की कथाओं को माना है। रामकथा की ऐतिहासिकता को लेकर विद्वानों में मतभेद है। एक तरफ नितान्त कल्पना को सहारा माना गया है तो दूसरी तरफ इसे ऐतिहासिक कथानक मानने वाले लोग हैं।

रामकथा का प्रारंभिक विकास कैसे हुआ होगा? वे कौन से कारक थे, जिन्होनें मिलकर राम कथा का निर्माण किया होगा। वास्तव में रामकथा प्रारंभ से ही हमारी संस्कृति में फैली हुई है। रामकथा तीनों धर्मों यथा ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन में रूपायित की गई। अन्य साहित्य, संस्कृति तथा कला में भी राम कथा प्रभावशाली ढंग से निरूपित की गई।

संस्कृत साहित्य में भी रामकथा का विस्तार से उपयोग किया गया। वाल्मीकि के बाद भी कई कवियों, लेखकों ने रामकथा को आधार बनाया। धार्मिक, साहित्य एवं ललित साहित्य दोनों में ही राम कथा को विकसित किया गया।

अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामकथा को पर्याप्त स्थान दिया गया है। कम्बन कृत रामायण, रंगनाथ कृत द्विपद रामायण, तिक्कन कृत निर्वचनोतर रामायण, मोल्ल रामायण, रघुनाथ रामायण, रामचरितम, आनन्द रामायण, अध्यात्म रामायण, आदि प्रमुख रामकथा ग्रन्थ है।

सिंहली भाषा, कश्मीरी भाषा, असमिया आदि में भी राम कथा का वर्णन है। कृतिवास कृत रामायण बंगाली का प्रमुख रामकथा ग्रन्थ है। हिन्दी व अवधी का प्रसिद्ध रामकथा ग्रन्थ  रामचरित मानस है, जिसके अन्य सभी ग्रन्थ फीके हैं।

रामकथा पर आधारित नरेन्द्र कोहली की उपन्यास शृंखला भी पठनीय है। 

मराठी भाषा में भावार्थ रामायण है जो एकनाथ द्वारा लिखी गयी है। उर्दू फारसी में भी रामकथाएँ लिखी गयी हैं। अलबदायूनी ने रामायण का फारसी में अनुवाद किया है। रामायण मसीही भी जहाँगीर काल में लिखी गई थी ।

तिब्बत रामायण, खोतानी रामायण, हिन्देशिया रामायण, मलयन अर्वाचीन रामकथा, जापान की रामकथा आदि भी उपलब्ध हैं।

रामकथा में कुछ है ऐसा, जो सबको आकर्षित करता है। राजनीति, धर्म, आधुनिकता, देशी-विदेशी सब रामकथा से प्रभावित होते है। दुःख सुख में, जीवन की सांध्य बेला में, असफलता निराशा, हताशा के क्षणों में आज भी हजारों- हजार लोगों का एक मात्र अवलम्बन रामकथा ही है, जो वाल्मीकि कृत रामायण नहीं पढ़ समझ सकते, वे तुलसीकृत या अपनी भाषा की रामकथा पढ़ते हैं, समझते हैं और अपने दुख दर्द को कम करते हैं। राम ही नहीं, रामायण के अन्य पात्र भी चरित्र- चित्रण की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं और जब भी वे पढ़े जाते हैं, तो लगता है कि संपूर्ण घटनाक्रम व्यक्ति के जीवन से ही संबंधित है। इसी कारण व्यक्ति को धार्मिकता के अलावा मनोवैज्ञानिक ढंग से भी रामकथा प्रभावित करती है। धर्म, राजनीति के अलावा रामकथा एक अत्यंत श्रेष्ठ आख्यान है और आने वाले हजारों वर्ष तक यह एक श्रेष्ठ आख्यान रहेगा तथा लेखकों  को अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा।

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