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Jul 7, 2024

रपटः व्यंग्य, परसाई और जबलपुर

बाएं से - विनोद साव, कुंदन सिंह परिहार, सम्मान ग्रहण
करते हुए सपत्नीक रमेश सैनी,
रामस्वरूप दीक्षित और कैलाश मंडलेकर

                   - विनोद साव

व्यंग्य-परसाई-जबलपुर. ऐसा लगता है कि ये तीनों चीजें अन्योन्याश्रित हैं...और इनका प्रेरणा पुंज एक है. संभव हो कि इन तीनों को नर्मदा की आँच ने तपा कर बड़ा किया हो. परसाई की जीवन यात्रा होशंगाबाद से जबलपुर के बीच रही जहाँ नर्मदा ही जीवन रेखा है. परसाई लिखते हैं कि ‘बचपन में एक बार वे नर्मदा में बहते बहते बच गए थे.” वे अपने मिलने वालों से ये भी कहते थे- “हाँ... जबलपुर में दो चीजें प्रसिद्ध हैं, एक भेड़ाघाट और दूसरा मैं.”

नर्मदा की तरह परसाई की रचनाएँ भी ‘धुआँधार’ रहीं. वही तेज और आक्रामकता जो नर्मदा में दिखाई देती है पत्थरों पहाड़ों को काटकर रख देने वाली धार... परसाई के लेखन के बारे में भी यह कहा जाता था - “परसाई जो टूट रहा है, उसे तोड़ डालने को तत्पर थे.” एक ज़माने में रिश्ता लगाने वाले लोग जबलपुर मंडला की बेटियों को बहू बनाने से पहले सोचते थे कि ‘नर्मदा की बेटी है, जरा सोच लीजो.’ छत्तीसगढ़ की सास की बहू का नाम कहीं नर्मदा निकल जाए, तो अपनी आक्रान्ता बहू से पीड़ा- भरे स्वर में सास बोल पड़ती थी “तेंहा नरमदा अस वो... हमन ला धारे धार बोहाबे (तू नर्मदा है, अपनी तेज धार में हम लोगों को बहा देगी).

नर्मदा की दूसरी विशेषता है- हास्य और व्यंग्य प्रेरक होना. जबलपुर में मंचों पर अपनी हास्य प्रस्तुति देने वाले कलाकार- के.के.नायकर, कुलकर्णी बन्धु, रजनीकांत हुए. इनमें नायकर की प्रस्तुति तो विलक्षण रही, जो केवल अपने ही बलबूते हजारों जनता को तीन- तीन घंटे बाँधकर रख लेते थे। ऐसी विनोदप्रियता. मौजमस्ती और उजड्डपन जबलपुर के लोगों में कहीं भी दिख जाते हैं। जबलपुर में आचार्य रजनीश हुए, वे भी बड़े आक्रामक गुरु निकले। उनके प्रवचनों में भी व्यंग्य कूट- कूटकर भरा थ॥ अपने ज्ञान और हास-परिहास के कारण वे विश्वव्यापी हो गए थे। उन्होंने भी समाज की जड़ता- मूर्खता का खूब उपहास उड़ाया और अपने शिष्यों को खूब हँसाया। रजनीश की विद्वत्ता को स्वीकारते हुए भी उनके पेशेवर स्वांग को लक्षित कर परसाई ने कुछ व्यंग्य लिखे, जिनके शीर्षक थे- टॉर्च वाला और साधना का फौजदारी अंत।

जबलपुर में रहकर परसाई ने अपनी व्यंग्य- चेतना और वाम विचारों से समूचे हिंदी साहित्य- संसार का ध्यान खींचा। उनका प्रभाव बहुत दूर तक पड़ा और व्यंग्य लिखने और प्रगतिशील बनने का उत्साह लोगों में खूब दिखा। ‘जसम’ के एक सदस्य कह रहे थे-  “प्रगतिशीलों के पास भी अब परसाई के सिवाय कुछ रह नहीं गया है।”

व्यंग्य लिखने वालों की संख्या किसी पृथक्तावादी क्षेत्र के लिए उठी माँग की तरह आगे बढ़ रही है. अभी के व्यंग्यकारों का हुजूम देखकर श्रीलाल शुक्ल कहते थे-“अब व्यंग्यकारों का इलाका किसी ‘यूनियन टेरीटरी’ की तरह जान पड़ता है...

जबलपुर में परसाई के प्रभामंडल में कई व्यंग्यकार दिखे- इनमें अस्सी बरस के कुंदनसिंह परिहार आज भी सक्रिय हैं। अभी विगत दिनों उन्हें मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन ने अपने सर्वोच्च पुरस्कार ‘भवभूति अलंकरण’ से नवाजा. संभवतः यह सम्मान किसी व्यंग्यकार को पहली बार मिला हो। जबलपुर में विजय कृष्ण ठाकुर और श्रीराम ठाकुर ‘दादा’ भी अच्छे व्यंग्य लेखक थे। यहाँ व्यंग्यकार रमेश सैनी आज भी बड़े सक्रिय हैं, जिनका 75 वाँ जन्मवर्ष जबलपुर के उनके साथियों और व्यंग्यधारा समूह के सदस्यों ने मिलकर मनाया. सैनी जी के रचनाधर्म पर केन्द्रित पत्रिका ‘अनवरत’ का विमोचन हुआ। रमेश सैनी और डॉ.रमेश तिवारी ने मिलकर परसाई पर कई चर्चाएँ आयोजित कीं, जिन्हें ऑनलाइन गोष्ठी के माध्यम से प्रसारित किया जाता रह॥ यह सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल है.

रमेश सैनी जी का एक व्यंग्य- संग्रह है। उसके पृष्ठभाग में परसाई और ज्ञानरंजन जी की टिप्पणियाँ हैं। परसाई जी ने लिखा है- ‘रमेश सैनी की गद्य कृतियों में सहजता है, जो उनके व्यक्तित्व से आती है। वे रोजमर्रा के अनुभवों को लिखते हैं, जिससे उनमें शाब्दिक विश्वसनीयता आ जाती है।” ज्ञानरंजन लिखते हैं - “रमेश सैनी हिंदी के ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य की युगबोधक चेतना के साथ अपना लेखन प्रारंभ किया है। यही बात आमतौर पर समकालीन व्यंग्यकारों में विरल है। यह एक संयमपूर्ण रचनात्मक क्रियाकलाप है। आज विपुल मात्रा में व्यंग्य लिखने के बावजूद, इस शिल्प और कौशल की सब तरफ कमी ह॥ यह एक तरफ परंपरा में नहीं जोड़ता और दूसरी तरफ किसी मूल्यवान उन्मुक्त संसार की रचना भी नहीं करता।”

परसाई पर हुए व्याख्यान सत्र ‘जन्म शताब्दी वर्ष और परसाई की प्रासंगिकता’ विषय पर अध्यक्ष की आसंदी से मैंने अपने ऊपर लिखित विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि खंडवा से पधारे व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर थे। आलोचक राजीव कुमार शुक्ल की विशेष उपस्थिति रही। दो सत्रों का संचालन अभिजित कुमार दुबे (दुर्गापुर) और टीका राम साहू आजाद (नागपुर) ने किया।

कार्यक्रम व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर के सभागार में संपन्न हुआ। सभागार के साथ संलग्न अतिथियों की आवास व्यवस्था ऑफिसर्स गेस्ट हाउस सबके लिए सुविधानुकुल रहा।

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सम्पर्कः मुक्तनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) मो. 9009884014


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