छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति का गढ़ माना जाता है । जहाँ की रंग-परंपरा दुनिया में सबसे पुरानी मानी जाती है। आखिर दुनिया की सबसे प्राचीन और एकमात्र नाट्य शाला छत्तीसगढ़ में जो स्थित है। रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित सीताबोंगरा और जोगमारा गुफा में प्राचीन नाट्य शाला के प्रमाण मिले है जहाँ आधुनिक थियेटर की तरह सीताबोंगरा गुफा के भीतर मंच , बैठक व्यवस्था आदि के साथ शैल चित्र भी मिले हैं । इसीलिए सीताबोंगरा गुफा को छत्तीसगढ़ में रंगकर्म की परंपरा का जीवंत प्रमाण के रूप में देखा जाता है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर से 50 किलोमीटर दूर रामगढ़ की पहाड़ियाँ हैं। इन्ही पहाड़ियों में कुछ गुफाएँ हैं। प्राप्त साक्ष्य और अध्ययन के आधार पर कहा जाता है कि यहीं भगवान राम ने अपने वनवास का कुछ समय पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रामगढ़ के पर्वतों में बिताया था। राम के तपस्वी वेश के कारण दूसरी छोटी गुफा को जोगीमढ़ा कहा जाता है तथा तीसरी गुफा को लक्ष्मण के नाम पर ‘लक्ष्मण गुफा’ का नाम दिया गया है। अनुसंधानों से पता चला है कि लगभग दो हजार साल पूर्व यहाँ नाट्य मण्डप बनाया जाता था, जहाँ अनुमान है कि उस काल में क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन-कीर्तन और नाटक करवाए जाते रहे होंगे।
मुख्यगुफा को सीता बेंगरा के नाम से जाना जाता है, अर्थात सीता का गुफा। यही सीता बेंगरा तीन कमरों वाली विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला के रुप में प्रचारित है जिसे ‘रामगढ़ नाट्यशाला’ या ‘रामगिरि’ पर्वत भी कहते हैं। सरगुजा बोली में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है। यानी यह सीता का कमरा था। प्रवेश द्वार के समीप खंभे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर भगवान राम के चरण चिह्न अंकित हैं। मान्यता है कि ये चरण चिह्न महाकवि कालिदास के समय भी थे। मेघदूतम् में रामगिरि पर अप्सराओं की उपस्थिति का भी उल्लेख मिलता है।
सीता बेंगरा गुफा पत्थरों को गैलरीनुमा आकार में काट कर बनाई गई है। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों में छेद किया गया है। गुफा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। जहाँ लगभग 30 लोग आराम से बैठ सकते हैं। इसके प्रवेश द्वार पर बाई ओर ब्राह्मी लिपि और माघी भाषा में दो पंक्तियाँ लिखी हुई हैं।
पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि सीताबेंगरा नामक गुफा ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी सदी की है। देश ही नहीं संभवत: पूरी दुनिया में इतनी पुरानी और कोई दूसरी नाट्यशाला कहीं नहीं है।1848 में कर्नल आउस्ले ने इस नाट्यशाला को सबसे पहले सबके सामने लाया था। 1903-04 में डॉ. जे. ब्लाश ने इसे आकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में प्रकाशित किया। जिसके अनुसार नाट्यशाला की लंबाई 44.5 फीट और चौड़ाई 15 फीट है। प्रवेश द्वार गोलाकार और लगभग छह फीट ऊँचा व दीवारें लम्बवत् है।
गुफा के बाहर दो फीट चौड़ा गड्ढा भी है जो सामने से पूरी गुफा को घेरता है। मान्यता है कि यही लक्ष्मण रेखा है, इसके बाहर एक पाँव का निशान भी है। इस गुफा के बाहर एक सुरंग है। इसे हथफोड़ सुरंग के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है। इस पहाड़ी में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12- 13वीं सदी की प्रतिमाएँ भी मिली हैं।1906 में पूना से प्रकाशित वी के परांजपे के शोधपरक व्यापक सर्वेक्षण के ‘ए फ़्रेश लाइन ऑफ मेघदूत’ में यह बताया गया है कि रामगढ़ (सरगुजा) ही राम की वनवास स्थली और मेघदूतम की प्रेरणास्नोत रामगिरी है।
इतिहासकार भी रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं। साथ ही संस्कृत के विद्वान् भी रामगढ़ को महाकवि कालिदास की तपोभूमि मानते हैं जहाँ बैठकर उन्होंने अपनी कृति ‘मेघ दूत’ की रचना की थी। मान्यता के अनुसार महाकवि कालिदास ने जब राजा भोज से नाराज हो उज्जयिनी का परित्याग किया था, तब उन्होंने यहीं शरण ली थी और महाकाव्य मेघदूत की रचना इन्हीं पहाड़ियों पर बैठकर की थी।
इसी मान्यता के आधार पर इस स्थान पर प्रति वर्ष आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। देश में संभवत: यह अकेला स्थान है, जहाँ बादलों की पूजा करने की परंपरा प्रचलित है।
रामगिरि के इस अनोखे और एकमात्र नाट्यशाला को देखने के लिए आप बारिश का मौसम चुनेंगे तो आप प्रकृति के बीच वहाँ की सीढ़ियों पर बैठकर उस काल में होने वाले नाट्य अभिनय की कल्पना कर भी सकेंगे। पर्यटन विभाग द्वारा यहाँ आषाड़ के माह में विभिन्न सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे हैं। ( उदंती फीचर्स) ■■
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